मौर्य काल में धार्मिक दशा
मौर्य काल भारतीय इतिहास का एक महत्वपूर्ण समय था। जिसमें धार्मिक विविधता और विभिन्न सम्प्रदायों का उत्थान हुआ। इस काल में बौद्ध धर्म, जैन धर्म, आजीवक सम्प्रदाय और भक्ति सम्प्रदाय का प्रमुख स्थान था। विशेष रूप से सम्राट अशोक के शासन में बौद्ध धर्म को संरक्षण मिला और इसके प्रचार-प्रसार के लिए उन्होंने अनेक प्रयास किए। इसके साथ ही, आजीवक और निर्ग्रन्थ (जैन धर्म) भी इस काल के महत्वपूर्ण धर्म थे। मौर्य काल में धार्मिक सहिष्णुता के कारण इन सम्प्रदायों को फलने-फूलने का अवसर मिला। इस लेख में हम मौर्य काल के प्रमुख धर्म और सम्प्रदायों के बारे में विस्तार से जानेंगे। हम देखेंगे कि कैसे इन धर्मों ने भारतीय समाज को प्रभावित किया।
वैदिक या ब्राह्मण धर्म
मौर्य काल के दौरान ब्राह्मण धर्म का प्रभाव समाज के उच्च वर्गों में अधिक था। इस धर्म में विभिन्न देवताओं की पूजा की जाती थी। इस काल में कई प्रकार के यज्ञ भी किए जाते थे। चन्द्रगुप्त मौर्य ने शुरुआत में ब्राह्मण धर्म का पालन किया था। महावंश के अनुसार, बिंदुसार ने साठ हजार ब्राह्मणों के प्रति अपनी उदारता दिखाई थी।
अर्थशास्त्र में कई देवी-देवताओं का उल्लेख मिलता है, जैसे- अपराजित, जयन्त, अश्विन्, शिव, दुर्गा, सरस्वती, अग्नि, सोम, कृष्ण आदि। यज्ञों के दौरान पशु बलि भी दी जाती थी। हालांकि, अशोक के पहले शिलालेख से यह पता चलता है कि अशोक ने पशु बलि को रोकने के लिए आदेश जारी किया था।
सन्यासियों और श्रमणों का जीवन
ब्राह्मण धर्म के अनुयायी एक विशेष वर्ग के सन्यासियों का भी पालन करते थे। ये सन्यासी जंगलों में रहकर कठोर साधना और तपस्या करते थे। इन्हें ‘श्रमण‘ कहा जाता था। यूनानी लेखकों ने इन सन्यासियों के ज्ञान और सदाचार की बहुत प्रशंसा की है।
मेगस्थनीज के अनुसार, मंडनिस नामक एक श्रमण ने अपने ज्ञान से सिकंदर को प्रभावित किया था।
पूजा पद्धतियाँ और विश्वास
मौर्य काल में केवल देवी-देवताओं की पूजा नहीं होती थी।बल्कि, प्राकृतिक तत्वों जैसे अग्नि, नदी, समुद्र, पर्वत, नाग आदि की भी पूजा की जाती थी। लोग तीर्थयात्रा पर जाते थे और ज्योतिषियों, भविष्यवक्ताओं, शकुन विचारकों का समाज में महत्वपूर्ण स्थान था।

यक्ष और यक्षणी की पूजा
मौर्य काल में यक्ष और यक्षणी की पूजा भी एक महत्वपूर्ण धार्मिक प्रथा थी। यक्ष और यक्षणी देवता-देवी के रूप में प्रकृति के विभिन्न रूपों की पूजा की जाती थी। यक्षों को मुख्य रूप से समृद्धि और वनस्पतियों से जोड़ा जाता था, जबकि यक्षणी की पूजा विशेष रूप से घरों और परिवारों की रक्षा के लिए की जाती थी। मौर्य काल में इनकी पूजा की परंपरा बहुत प्रचलित थी, और उनके मंदिरों का निर्माण भी हुआ होगा क्योंकि, हमें यक्ष और यक्षणी की मूर्तियां मिली हैं। मौर्य सम्राटों ने यक्षों और यक्षणियों की पूजा को भी प्रोत्साहित किया, जो एक प्राचीन भारतीय धार्मिक विश्वास का हिस्सा था।
इस काल में ब्राह्मण धर्म के साथ-साथ बौद्ध और जैन धर्म भी प्रचलित थे। सम्राटों की सहिष्णुता की नीति के कारण सभी धर्मों को विकसित होने का अवसर मिला। विभिन्न देवी-देवताओं की पूजा, यज्ञ, और सन्यासियों का जीवन इस समय के धार्मिक जीवन का हिस्सा थे
मौर्य काल में प्रमुख धर्म और सम्प्रदाय
मौर्य काल में भारतीय समाज में कई धर्म और सम्प्रदाय प्रचलित थे। इस समय के सम्राटों, विशेष रूप से अशोक के शासन में, धार्मिक सहिष्णुता की नीति अपनाई गई थी। इससे न केवल पारंपरिक वैदिक धर्म को बढ़ावा मिला, बल्कि नए सम्प्रदायों ने भी अपनी जड़ें जमाई। बौद्ध धर्म, आजीवक, निर्ग्रन्थ (जैन धर्म), और भक्ति सम्प्रदाय के उदय ने मौर्य काल के धार्मिक जीवन को विविधता प्रदान की।

बौद्ध धर्म का प्रचार और अशोक का योगदान
बौद्ध धर्म को मौर्य सम्राट अशोक के शासन में महत्वपूर्ण संरक्षण प्राप्त हुआ। अशोक ने यह स्पष्ट रूप से कहा था, “जो कुछ बुद्ध ने कहा है, वह सत्य है।” अशोक ने बौद्ध धर्म के प्रचार में अपनी पूरी शक्ति और संसाधनों का उपयोग किया। इसके फलस्वरूप, बौद्ध धर्म ने भारत की सीमाओं को पार किया और पश्चिमी एशिया, श्रीलंका, और अन्य क्षेत्रों में फैल गया।
अशोक के समय में पाटलिपुत्र में तीसरी बौद्ध संगीति आयोजित हुई थी। इस संगीति के बाद, विभिन्न दिशाओं में प्रचारक भेजे गए। महावंश में इन भिक्षुओं के नाम इस प्रकार मिलते हैं:
धर्म प्रचारक देश
1. मज्जन्तिक – कश्मीर और गन्धार
2. महारक्षित – यवन देश
3. मज्जिम – हिमालय देश
4. धर्मरक्षित – अपरान्तक
5. महाधर्मरक्षित – महाराष्ट्र
6. महादेव – महिषमण्डल (मैसूर या मान्धाता)
7. रक्षित – वनवासी (उत्तरी कन्नड़)
8. सोन और उत्तर – सुवर्णभूमि
9. महेंद्र और संघमित्रा – लंका
परंपरा के अनुसार, अशोक ने 84,000 स्तूपों का निर्माण भी करवाया था, जो बौद्ध धर्म के महत्व को दर्शाते हैं। अशोक के उत्तराधिकारी शालिशूक भी बौद्ध धर्म के अनुयायी थे और उन्होंने उसी के समान धम्मविजय की थी।

आजीवक सम्प्रदाय
आजीविक या ‘आजीवक‘ एक प्राचीन भारतीय दर्शन था, जो दुनिया के पहले नास्तिकवादी या भौतिकवादी विचारधाराओं में से एक माना जाता है। इसका मतलब है कि इसमें भगवान या आत्मा जैसी अवधारणाओं को नकारा जाता था, और यह मानता था कि जीवन का उद्देश्य केवल भौतिक दुनिया और उसके नियमों को समझना है। यह सम्प्रदाय भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण दर्शन था, जो तात्त्विक दृष्टिकोण से बहुत अलग था।
आजीवक सम्प्रदाय की स्थापना मक्खलिगोसाल ने की थी। वे बुद्ध और महावीर के समकालीन थे। मौर्य काल तक आते-आते, यह सम्प्रदाय बहुत प्रभावशाली बन चुका था। अशोक के सातवें स्तम्भ-लेख में आजीवकों का उल्लेख किया गया है। उन्होंने महामात्रों को आजीवक संप्रदाय के हितों का ध्यान रखने का आदेश दिया था।
अशोक ने अपने अभिषेक के 12वें वर्ष में इस सम्प्रदाय के सन्यासियों के लिए बराबर पहाड़ी पर चार गुफाएं बनवाई थीं। अशोक के पौत्र दशरथ ने भी नागार्जुनी पहाड़ी पर तीन गुफा-विहार बनवाए थे। बराबर की लोमश-ऋषि गुफा में अशोक का अभिलेख गायब था, जबकि बाकी तीन गुफाओं—सुदामा गुफा, कर्ण-चौपड़ गुफा, और विश्व-झोपड़ी गुफा—में अशोक के अभिलेख मिले थे। इसका मतलब है कि इनमें से कुछ गुफाओं में अशोक के शासन से जुड़े महत्वपूर्ण लेख मिले, लेकिन लोमश-ऋषि गुफा में वह नहीं थे। इस सम्प्रदाय में ब्राह्मण और ब्राह्मणेतर दोनों वर्गों के सन्यासी शामिल थे।
निर्ग्रन्थ (जैन धर्म)
निर्ग्रन्थ से तात्पर्य जैन धर्म से है। यह भी श्रमणों का एक वर्ग था। जैन धर्म के अनुयायी अपने साधु जीवन और तपस्वी आचरण के लिए प्रसिद्ध थे। अशोक के लेखों में निर्ग्रन्थों का उल्लेख किया गया है। मेगस्थनीज ने इन्हें ‘नग्न साधु‘ कहा था।
किंवदंती के अनुसार, जैन धर्म के महान आचार्य भद्रबाहु ने चन्द्रगुप्त मौर्य को जैन मत में दीक्षित किया था। अशोक का एक उत्तराधिकारी, सम्प्रति, जैन धर्म का संरक्षक था। इस समय जैन धर्म भारत के पश्चिमी क्षेत्रों में फैल चुका था। दिव्यावदान के अनुसार, निर्ग्रन्थ लोग अशोक के समय में उत्तरी बंगाल के पुण्ड्रवर्द्धन प्रदेश में भी निवास करते थे। हालांकि, वे आजीवकों की तरह मौर्य राजाओं से दान प्राप्त नहीं कर सके थे।
भक्ति सम्प्रदाय का उदय
मौर्य काल के अंत में भक्ति सम्प्रदाय का उदय हुआ। इस समय में लोग भगवान बुद्ध की पूजा करते हुए उनके धातु और प्रतीकों की पूजा करने लगे। भक्ति का यह रूप धीरे-धीरे भारतीय समाज में फैल गया। यूनानी लेखकों ने वासुदेव (कृष्ण) की पूजा का उल्लेख हेराक्लीज के नाम से किया है, जो दर्शाता है कि कृष्ण की पूजा का महत्व भी बढ़ने लगा था।
निष्कर्ष
मौर्य काल में धार्मिक जीवन में अनेक महत्वपूर्ण परिवर्तन हुए थे। अशोक के शासन में बौद्ध धर्म को संरक्षण मिला और उसकी शिक्षाएं दूर-दूर तक फैलीं। इसके अलावा, आजीवक, निर्ग्रन्थ (जैन धर्म) और भक्ति सम्प्रदायों का भी इस समय में प्रचलन था। इस समय की धार्मिक सहिष्णुता ने विभिन्न सम्प्रदायों को फलने-फूलने का अवसर दिया और भारतीय समाज में धार्मिक विविधता को बढ़ावा दिया। यक्ष और यक्षणी की पूजा भी इस काल का एक प्रमुख धार्मिक पक्ष था, जो प्राकृतिक शक्तियों और जीवन के चक्र से जुड़ा हुआ था।