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हम्पी के विट्ठल मंदिर में मंदिर की गाड़ी |
विजयनगर साम्राज्य की स्थापना, समयावधि और संस्थापक
विजयनगर साम्राज्य का उदय 14वीं शताब्दी में दक्षिण भारत के राजनीतिक और सांस्कृतिक पुनरुत्थान के प्रतीक के रूप में हुआ। 1336 ईस्वी में हरिहर प्रथम और बुक्का प्रथम, दो भाईयों ने विजयनगर साम्राज्य की स्थापना की, जो संगम वंश के अंतर्गत आता था। यह साम्राज्य लगभग 300 वर्षों तक चला और अपने उत्कृष्ट प्रशासन, सांस्कृतिक योगदान, आर्थिक समृद्धि और धर्मनिरपेक्ष नीतियों के लिए जाना जाता है। राजधानी हम्पी, तुंगभद्रा नदी के किनारे स्थित थी और अपने समय में यह दुनिया के सबसे समृद्ध और विशाल शहरों में गिनी जाती थी। इस साम्राज्य का पतन 1565 ईस्वी में तालीकोटा की लड़ाई के बाद हुआ, लेकिन इसकी सांस्कृतिक धरोहर आज भी भारतीय इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान रखती है।
विजयनगर साम्राज्य की स्थापना की पृष्ठभूमि
विजयनगर साम्राज्य की स्थापना एक महत्वपूर्ण राजनीतिक परिवर्तन का परिणाम थी। इस समय दिल्ली सल्तनत के आक्रमणों ने दक्षिण भारतीय राज्यों को कमज़ोर कर दिया था, जिससे क्षेत्र में अस्थिरता फैल गई थी। दिल्ली के सुल्तान मोहम्मद बिन तुगलक के आक्रमणों के बाद, हरिहर और बुक्का ने स्वतंत्रता की मांग की। पहले वे दिल्ली सल्तनत के अधीनस्थ अधिकारी थे और वारंगल के काकतीय शासन से जुड़े हुए थे। हालांकि, विद्यारण्य स्वामी (जो उस समय के प्रमुख संत थे) के मार्गदर्शन में उन्होंने हिंदू धर्म की रक्षा और पुनर्स्थापना के लिए विजयनगर साम्राज्य की नींव रखी। विद्यारण्य स्वामी ने इस साम्राज्य को वैदिक संस्कार और धार्मिक पुनर्जागरण का केंद्र बनाने में मुख्य भूमिका निभाई।
हरिहर और बुक्का का प्रारंभिक शासन
विजयनगर साम्राज्य के पहले शासक हरिहर प्रथम (1336-1356 ई.) ने दक्षिण भारत के कई हिस्सों को अपने अधीन किया और अपनी राजधानी हम्पी को संरक्षित किया। हरिहर का प्रशासनिक मॉडल कुशल और केंद्रीकृत था। उन्होंने मजबूत किलों का निर्माण किया और साम्राज्य की सीमाओं को मजबूत किया। उनके भाई बुक्का प्रथम (1356-1377 ई.) के काल में साम्राज्य का विस्तार तेजी से हुआ। बुक्का ने मदुरै सल्तनत को पराजित कर तमिलनाडु और कर्नाटक के बड़े हिस्सों पर विजय प्राप्त की। इसके अलावा, बुक्का ने बहमनी सल्तनत के साथ भी कई लड़ाइयाँ लड़ीं, जिनमें सबसे प्रमुख रायचूर दोआब के लिए संघर्ष था।
बुक्का के शासनकाल के दौरान एक और महत्वपूर्ण घटना मदुरै सल्तनत का पतन थी। मदुरै सल्तनत के शासकों ने लंबे समय तक दक्षिण के हिंदू राजाओं को परेशान किया था, लेकिन बुक्का ने 1370 ईस्वी में इस सल्तनत को पराजित कर दिया और इसे विजयनगर साम्राज्य में मिला लिया। इसके साथ ही, बुक्का ने ओडिशा और आंध्र प्रदेश के कुछ हिस्सों को भी अपने साम्राज्य में शामिल किया।
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विजयनगर साम्राज्य |
सैन्य शक्ति और विस्तार
विजयनगर साम्राज्य की सैन्य शक्ति इसकी मजबूती का एक प्रमुख कारक थी। साम्राज्य की सेना में पैदल सेना, अश्वारोही सेना, हाथियों और तोपखाने का कुशल संयोजन था। विजयनगर सेना की एक खासियत थी उसकी अनुशासित और रणनीतिक युद्ध शैली। हरिहर और बुक्का दोनों ने कन्नड़, तेलुगु, तमिल और मराठा सैनिकों को अपनी सेना में शामिल किया, जिससे सेना बहुभाषी और विविध हो गई।
विजयनगर साम्राज्य की स्थिरता और समृद्धि के पीछे उसकी सैन्य शक्ति और इसके सफल विजय अभियान थे। यह साम्राज्य तुंगभद्रा और कृष्णा नदियों के बीच विस्तृत उपजाऊ क्षेत्र को नियंत्रित करता था, जिसे रायचूर दोआब कहा जाता था। यह क्षेत्र बहमनी सल्तनत और विजयनगर के बीच एक निरंतर संघर्ष का कारण था। बुक्का के समय में इस क्षेत्र पर विजयनगर का अधिकार हुआ, जिससे साम्राज्य की अर्थव्यवस्था को एक बड़ा बढ़ावा मिला।
राजनीतिक और धार्मिक नीति
विजयनगर साम्राज्य एक धर्मनिरपेक्ष राज्य था, जहाँ हिंदू, जैन और इस्लामी धर्मों के अनुयायियों को सहिष्णुता के साथ देखा गया। साम्राज्य के शासकों ने हिंदू धर्म का प्रोत्साहन दिया, लेकिन धार्मिक अल्पसंख्यकों के प्रति भी सहिष्णुता दिखाई। इसका सबसे प्रमुख उदाहरण बुक्का प्रथम का शासन है, जिन्होंने विजयनगर में इस्लाम और जैन धर्म के अनुयायियों को संरक्षण दिया।
साम्राज्य के शासकों ने मंदिरों और धार्मिक संस्थानों का संरक्षण किया और उनके निर्माण में योगदान दिया। विद्यारण्य स्वामी के मार्गदर्शन में धार्मिक सुधार और मंदिर निर्माण का एक नया दौर शुरू हुआ। हम्पी में विट्ठल और विरुपाक्ष मंदिर जैसे विशाल मंदिरों का निर्माण इसी युग में हुआ।
साम्राज्य की राजनीतिक संरचना
विजयनगर साम्राज्य की राजनीतिक संरचना केंद्रीकृत थी, जिसमें राजा की भूमिका सर्वोपरि थी। शासक की सहायता के लिए एक मंत्रिपरिषद और नौकरशाही की विस्तृत प्रणाली स्थापित थी। यह प्रणाली प्रभावी रूप से विभिन्न प्रांतों पर शासन करती थी। हरिहर और बुक्का ने साम्राज्य को प्रांतों (नाडु) में विभाजित किया, जहाँ प्रांतीय अधिकारियों की नियुक्ति की जाती थी। प्रांतीय अधिकारी राजा को कर और सैनिक सहायता प्रदान करते थे। विजयनगर साम्राज्य की प्रशासनिक नीति में कर्नाटक, आंध्र और तमिल क्षेत्रों की स्थानीय परंपराओं का भी समावेश था।
विदेशी यात्री और विजयनगर साम्राज्य
विजयनगर साम्राज्य की समृद्धि का वर्णन कई विदेशी यात्रियों के लेखों में मिलता है। 15वीं शताब्दी के पुर्तगाली यात्री डॉमिंगो पाइस ने विजयनगर को ‘दुनिया का सबसे बड़ा और समृद्ध शहर’ कहा। उन्होंने हम्पी के विशाल बाजारों, समृद्ध व्यापारिक समुदाय और शाही दरबार की विलासिता का वर्णन किया। इसके अलावा, फारसी यात्री अब्दुल रज्जाक भी विजयनगर की शाही भव्यता से अत्यंत प्रभावित थे। उनके अनुसार, विजयनगर का दरबार इतना भव्य था कि इसे उस समय के किसी भी मुस्लिम सल्तनत के बराबर रखा जा सकता था।
विजयनगर का सांस्कृतिक योगदान
विजयनगर साम्राज्य का एक महत्वपूर्ण पहलू इसका सांस्कृतिक योगदान था। हरिहर और बुक्का ने तेलुगु, कन्नड़, तमिल और संस्कृत भाषाओं में साहित्य को प्रोत्साहन दिया। संगीत, नृत्य और कला को भी संरक्षित किया गया। विजयनगर के शासकों ने सांस्कृतिक गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए अनेक विद्वानों और कलाकारों को संरक्षण दिया।
राजनीतिक संरचना और शासन प्रणाली: विजयनगर साम्राज्य की केंद्रीय और प्रांतीय शासन व्यवस्था
विजयनगर साम्राज्य का शासन तंत्र अपनी कुशल प्रशासनिक व्यवस्था और राजनीतिक संरचना के लिए प्रसिद्ध था। यह साम्राज्य लगभग 300 वर्षों तक दक्षिण भारत के सबसे शक्तिशाली साम्राज्यों में से एक रहा। इसके केंद्र और प्रांतों के बीच सुगम और प्रभावी प्रशासन ने इसकी दीर्घकालिक स्थिरता और समृद्धि को सुनिश्चित किया।
केंद्रीय शासन प्रणाली
विजयनगर साम्राज्य की केंद्रीय शासन प्रणाली अत्यंत व्यवस्थित और सुसंगठित थी, जिसमें राजा की भूमिका प्रमुख थी।
1. राजा की शक्ति और भूमिका:
राजा साम्राज्य का सर्वोच्च शासक था, जिसकी शक्ति सभी राजनीतिक, धार्मिक और सैन्य निर्णयों में निहित थी। राजा के अधिकारों में न्यायिक, कार्यकारी, और सैन्य मामलों का नियंत्रण शामिल था। राजा की शक्ति को अधिक मजबूत बनाने के लिए उसे कई प्रमुख अधिकारियों की सहायता प्राप्त थी, जिनमें प्रमुख थे: कुलपति (कुलपति), मुख्य मंत्री (वज़ीर), और सेनापति। राजा के पास एक राजकीय दरबार था, जहाँ विभिन्न मंत्रियों और सलाहकारों की उपस्थिति होती थी।
2. मंत्रिपरिषद:
मंत्रिपरिषद में प्रधान मंत्री (वज़ीर), कोषाध्यक्ष, और सेनापति जैसे महत्वपूर्ण पदों पर अधिकारी होते थे। इन मंत्रियों का कार्य साम्राज्य की नीतियों को तैयार करना, शासन के विभिन्न पहलुओं की देखरेख करना, और राजा को सलाह देना था। इस परिषद में एक विशेष पद दंडी था, जो राज्य के विभिन्न प्रशासनिक और न्यायिक कार्यों की निगरानी करता था।
3. प्रशासनिक विभाग:
साम्राज्य में विभिन्न प्रशासनिक विभाग थे, जिनकी जिम्मेदारी विशेष कार्यों की देखरेख करना थी:
– वित्त विभाग: राजस्व, कर संग्रहण और साम्राज्य के खजाने का प्रबंधन करता था। कोषाध्यक्ष इस विभाग के प्रमुख होते थे।
– सैन्य विभाग: सेना की भर्ती, प्रशिक्षण और संचालन का काम करता था। सेनापति इस विभाग के प्रमुख होते थे।
– न्याय विभाग: कानून व्यवस्था और न्यायिक मामलों का समाधान करता था। मुख्य न्यायाधीश न्यायिक प्रणाली की देखरेख करता था।
– आंतरिक विभाग: सार्वजनिक कार्य, निर्माण और रखरखाव का प्रबंधन करता था।
प्रांतीय शासन प्रणाली
प्रांतीय शासन प्रणाली ने साम्राज्य के विशाल क्षेत्र को व्यवस्थित और कुशलतापूर्वक नियंत्रित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। साम्राज्य को कई प्रांतों में विभाजित किया गया था, जिन्हें नाडु कहा जाता था।
1. प्रांतीय संरचना:
प्रत्येक प्रांत का प्रशासन एक नायब (प्रांतीय गवर्नर) द्वारा किया जाता था। नायब ने प्रांत के भीतर सभी प्रशासनिक और सैन्य कार्यों की देखरेख की। नायब को राजा के द्वारा नियुक्त किया जाता था और उसे प्रांत के मामलों में पूर्ण अधिकार प्राप्त था।
2. प्रांतीय गवर्नर:
प्रांतीय गवर्नर के अधीन उप-नायब और स्थानीय अधिकारी होते थे, जो प्रांत के विभिन्न जिलों और नगरों का प्रशासन संभालते थे। ये अधिकारी स्थानीय मुद्दों के समाधान और कर संग्रहण का कार्य करते थे। प्रांतीय गवर्नर ने राजा को प्रांत के प्रशासन और विकास की रिपोर्ट प्रस्तुत की।
3. कर और राजस्व प्रणाली:
प्रांतों में कर और राजस्व प्रणाली को व्यवस्थित और कुशलतापूर्वक प्रबंधित किया गया। राजस्व अधिकारी स्थानीय किसानों और व्यापारियों से कर वसूलते थे। इन करों का उपयोग साम्राज्य की भलाई और विकास के लिए किया जाता था। कर संग्रहण में भूमि कर, वाणिज्य कर, और विशेष कर शामिल थे।
4. स्थानीय सामंतों का प्रशासन:
प्रांतीय प्रशासन के अंतर्गत स्थानीय सामंत और जमींदार भी होते थे, जिन्होंने अपने क्षेत्रों में स्वायत्तता प्राप्त की थी। ये स्थानीय प्रमुख साम्राज्य के अधीन रहते हुए स्थानीय प्रशासन का काम देखते थे और साम्राज्य को कर प्रदान करते थे।
राजनीतिक व्यवस्था के विशेष पहलू
1. नगरपालिकाओं और स्थानीय निकायों का निर्माण:
विजयनगर साम्राज्य ने नगरपालिकाओं और स्थानीय निकायों का निर्माण किया, जो शहरों और कस्बों के प्रशासन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते थे। इन निकायों ने स्थानीय विकास, सार्वजनिक सेवाओं, और नागरिक सुविधाओं का प्रबंधन किया।
2. सैन्य व्यवस्था:
विजयनगर साम्राज्य की सैन्य व्यवस्था में एक विशेष प्रकार की फौजी भर्ती प्रणाली थी, जिसमें सैन्य बलों की संख्या और संरचना को नियंत्रित किया गया। राज्यपाल और सैन्य प्रमुख ने सैन्य अभियान और रक्षा की योजनाओं को लागू किया।
3. डाक और संचार प्रणाली:
साम्राज्य के भीतर कुशल संचार सुनिश्चित करने के लिए डाक प्रणाली की स्थापना की गई थी। डाक मार्गों और संचार नेटवर्क ने साम्राज्य की दूरदराज क्षेत्रों में भी कुशल शासन और प्रशासन की सुविधा प्रदान की।
आर्थिक समृद्धि: विजयनगर साम्राज्य की आर्थिक उन्नति और व्यापारिक संबंध
विजयनगर साम्राज्य ने दक्षिण भारत में एक महत्वपूर्ण आर्थिक उन्नति की, जिसने उसे एक समृद्ध और स्थिर साम्राज्य बना दिया। इसका आर्थिक समृद्धि विभिन्न क्षेत्रों में योगदान से हुई, जिनमें कृषि, व्यापार, वस्त्र उद्योग, और वैश्विक व्यापारिक संबंध शामिल हैं।
कृषि
1. कृषि की महत्वता और तकनीक:
– कृषि क्षेत्र: विजयनगर साम्राज्य के अंतर्गत आने वाले क्षेत्रों में कृषि मुख्य आर्थिक गतिविधि थी। यहाँ की भूमि उर्वर थी और धान, गहूं, बाजरा, ज्वार, तंबाकू, और ताड़ के पेड़ जैसी फसलों की खेती होती थी। इस समय के दौरान कृषि को प्रोत्साहित करने के लिए विभिन्न सुधार किए गए।
– सिंचाई प्रणाली: साम्राज्य के तहत सिंचाई के लिए कई तकनीकों का उपयोग किया गया, जैसे कि कुंआ, तालाब, और नहरें। तुंगभद्र नदी और कृष्णा नदी के पास के क्षेत्रों में विशेष रूप से सिंचाई प्रणालियाँ विकसित की गईं। कृष्णदेवराय के शासनकाल में सिंचाई के लिए बड़े पैमाने पर सिंचाई परियोजनाओं का कार्यान्वयन किया गया, जैसे कि हंपी में जलाशयों का निर्माण।
– कृषि सुधार: कृषकों की स्थिति सुधारने के लिए भूमि सुधार और नई तकनीकों को अपनाया गया। कृष्णदेवराय के शासनकाल में विशेष रूप से कृषि क्षेत्र में कई सुधार किए गए, जिनसे उत्पादन में वृद्धि हुई। कृषकों को उचित सहेज और ऋण की सुविधा प्रदान की गई।
2. कृषि उत्पादन और राजस्व:
– राजस्व व्यवस्था: साम्राज्य की राजस्व व्यवस्था बहुत सुसंगठित थी। अन्नादान के रूप में कृषि राजस्व एक महत्वपूर्ण स्रोत था। कृषि करों का संग्रह स्थानीय स्तर पर किया जाता था और यह साम्राज्य की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान करता था। एक समय में, कृष्णदेवराय ने कृषि भूमि की माप-तौल के लिए सुधारात्मक उपाय किए, जिससे करों की सटीकता सुनिश्चित की जा सके।
– निर्यात: उच्च गुणवत्ता वाले कृषि उत्पादों का निर्यात बड़े पैमाने पर किया जाता था। धान, मसाले, और ताड़ की उत्पादकता ने साम्राज्य को आर्थिक लाभ पहुँचाया। इन उत्पादों का निर्यात अरब देशों और मलाबार के व्यापारिक केंद्रों के माध्यम से किया जाता था।
व्यापार
1. आंतरिक और बाहरी व्यापार:
– आंतरिक व्यापार: विजयनगर साम्राज्य में एक विस्तृत आंतरिक व्यापार नेटवर्क था। साम्राज्य की राजधानी हंपी और अन्य प्रमुख शहर जैसे कडप्पा, बेल्लारी, और कोलार व्यापारिक केंद्र थे। यहाँ पर विभिन्न वस्तुओं का व्यापार होता था, जिसमें खाद्य पदार्थ, वस्त्र, और धातु शामिल थे। हंपी में एक बड़ा बाजार था, जो विभिन्न वस्तुओं की बिक्री के लिए प्रसिद्ध था।
– बाहरी व्यापार: साम्राज्य ने विदेशों के साथ भी व्यापारिक संबंध बनाए। व्यापारिक संपर्क मुख्यतः अरब देशों, पुर्तगाल, पूर्वी अफ्रीका, और सुदूर पूर्व (जापान, चीन) के साथ थे। व्यापारिक संपर्कों ने विजयनगर साम्राज्य की वैश्विक स्थिति को सुदृढ़ किया।
2. व्यापारिक मार्ग और पत्ते:
– सागर मार्ग: विजयनगर साम्राज्य का व्यापारिक संबंध समुद्री मार्गों के माध्यम से भी था। गोवा, कालीकट, और मलाबार जैसे प्रमुख बंदरगाह शहर व्यापार के केंद्र थे। इन बंदरगाहों ने विदेशों से व्यापारिक संबंधों को प्रोत्साहित किया। कालीकट और गोवा में व्यापारिक संपर्कों ने साम्राज्य को एक वैश्विक व्यापारिक नेटवर्क से जोड़ा।
– वाणिज्यिक वस्तुएं: मुख्य निर्यात वस्त्रों में सिल्क, सामग्री, मसाले (जैसे काली मिर्च, इलायची) शामिल थे। विजयनगर के वस्त्र, विशेष रूप से कांचीपुरम और हंपी की सिल्क साड़ियों ने वैश्विक बाजार में पहचान बनाई।
वस्त्र उद्योग
1. वस्त्र उत्पादन:
– उत्पादन केंद्र: विजयनगर साम्राज्य में वस्त्र उद्योग विशेष रूप से विकसित था। कांचीपुरम, हंपी, बेल्लारी, और श्रीशैलम वस्त्र उत्पादन के प्रमुख केंद्र थे। यहाँ पर सिल्क और कपड़े का उत्पादन बड़े पैमाने पर होता था। कांचीपुरम की सिल्क साड़ियों की उच्च गुणवत्ता और उत्कृष्ट डिजाइन ने उन्हें विश्व स्तर पर प्रसिद्ध किया।
– सिल्क वस्त्र: सिल्क वस्त्रों का उत्पादन उच्च गुणवत्ता और विविधता के लिए प्रसिद्ध था। इन वस्त्रों की उत्पादन प्रक्रिया में अत्यधिक कुशल कारीगरों की भागीदारी थी। कांचीपुरम की साड़ियाँ विशेष रूप से नारी सम्मान की प्रतीक मानी जाती हैं।
2. वस्त्र व्यापार:
– स्थानीय और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार: विजयनगर साम्राज्य के वस्त्रों का व्यापार न केवल स्थानीय बाजारों में, बल्कि अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में भी किया जाता था। वस्त्रों का निर्यात भारत के विभिन्न हिस्सों और विदेशी देशों जैसे कि पुर्तगाल, अरब देशों, और चीन तक किया जाता था।
– वस्त्र व्यापार के प्रभाव: वस्त्र उद्योग ने साम्राज्य की आर्थिक स्थिति को मजबूत किया और व्यापारिक नेटवर्क को बढ़ाया। वस्त्र व्यापार ने साम्राज्य को आर्थिक स्थिरता और समृद्धि प्रदान की।
आर्थिक उन्नति और व्यापारिक संबंध
1. व्यापारिक नेटवर्क:
– आर्थिक समृद्धि: विजयनगर साम्राज्य ने अपने व्यापारिक नेटवर्क के माध्यम से वैश्विक व्यापार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। साम्राज्य के व्यापारिक संपर्कों ने उसे एक समृद्ध और स्थिर आर्थिक स्थिति प्रदान की। व्यापारिक नेटवर्क ने साम्राज्य की अंतर्राष्ट्रीय स्थिति को सुदृढ़ किया और विभिन्न वैश्विक बाजारों में साम्राज्य की पहचान को बढ़ाया।
– वाणिज्यिक आदान-प्रदान: विदेशी व्यापारियों के साथ व्यापारिक संबंधों ने साम्राज्य के वाणिज्यिक आदान-प्रदान को बढ़ावा दिया। साम्राज्य के व्यापारिक नेटवर्क ने विभिन्न प्रकार के वस्त्रों, मसालों, और धातुओं के आदान-प्रदान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
2. व्यापारिक केंद्र:
– हंपी: हंपी विजयनगर साम्राज्य का एक प्रमुख व्यापारिक केंद्र था। यहाँ पर विभिन्न प्रकार के वस्त्र, मसाले, और अन्य वस्त्रों का व्यापार होता था। हंपी का बाजार और उसका व्यापारिक नेटवर्क साम्राज्य की समृद्धि का प्रमुख संकेत था। हंपी में व्यापारिक गतिविधियों के कारण यह एक प्रमुख आर्थिक और सांस्कृतिक केंद्र बन गया था।
– गोवा और कालीकट: ये बंदरगाह शहर व्यापारिक संबंधों के प्रमुख केंद्र थे, जहाँ से विदेशी व्यापारियों के साथ व्यापार किया जाता था। इन शहरों ने विजयनगर साम्राज्य के वैश्विक व्यापारिक संपर्कों को सुदृढ़ किया। गोवा में पुर्तगाली व्यापारियों का प्रमुख व्यापारिक स्थान था और कालीकट के बंदरगाह ने अरब व्यापारियों के साथ महत्वपूर्ण व्यापारिक संपर्क बनाए रखा।
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गजशाला या हाथियों का अस्तबल, जिसे विजयनगर शासकों ने अपने युद्ध हाथियों के लिए बनवाया था |
धार्मिक सहिष्णुता: विजयनगर साम्राज्य में हिंदू धर्म और अन्य धर्मों के प्रति सहिष्णुता, मंदिर निर्माण और धार्मिक नीतियाँ
विजयनगर साम्राज्य का इतिहास केवल सैन्य विजय और आर्थिक समृद्धि के लिए नहीं जाना जाता, बल्कि इसकी धार्मिक सहिष्णुता और सांस्कृतिक विविधता के लिए भी प्रसिद्ध है। इस साम्राज्य ने न केवल हिंदू धर्म की समृद्धि को बढ़ावा दिया, बल्कि अन्य धर्मों के प्रति भी सहिष्णुता और सम्मान दिखाया। यहाँ हम विजयनगर साम्राज्य की धार्मिक सहिष्णुता, मंदिर निर्माण, और धार्मिक नीतियों का विस्तृत ऐतिहासिक विश्लेषण करेंगे।
हिंदू धर्म की समृद्धि
1. धार्मिक संरक्षण और प्रोत्साहन:
– राजा का समर्थन: विजयनगर साम्राज्य के शासक, विशेषकर हरिहर I और बुक्का I से लेकर कृष्णदेवराय तक, ने हिंदू धर्म को प्रोत्साहित किया और धार्मिक संस्थाओं को संरक्षण दिया। हरिहर और बुक्का ने प्रारंभिक दिनों में हिंदू धर्म की पुनर्निर्माण नीति अपनाई, जिससे धर्म के प्रति पुनर्जीवित समर्पण देखा गया। उन्होंने महत्वपूर्ण हिंदू तीर्थ स्थलों का पुनर्निर्माण किया और धार्मिक शिक्षाओं को प्रोत्साहित किया।
– मंदिर निर्माण: साम्राज्य के प्रमुख शासकों ने कई महत्वपूर्ण हिंदू मंदिरों का निर्माण और पुनर्निर्माण किया। इनमें विठोब मंदिर (जो कि भगवान विठोबा को समर्पित था) और हजारा राम मंदिर शामिल हैं। कृष्णदेवराय ने स्वयं को भगवान वीरभद्र का अवतार मानते हुए मंदिरों के पुनर्निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इस अवधि में मंदिरों का निर्माण न केवल धार्मिक स्थल के रूप में बल्कि सांस्कृतिक और राजनीतिक शक्ति के प्रतीक के रूप में भी किया गया।
2. धार्मिक आयोजन और संस्कार:
– धार्मिक त्योहार: साम्राज्य के दौरान महत्वपूर्ण हिंदू त्योहारों जैसे दशहरा, नवरात्रि, और दीवाली को बड़े धूमधाम से मनाया जाता था। कृष्णदेवराय ने दशहरा के दौरान विशेष भव्य आयोजन किए, जिसमें विजयनगर साम्राज्य की सांस्कृतिक समृद्धि का प्रदर्शन हुआ। दशहरा के त्योहार के दौरान, विशेष रूप से एक भव्य मेले का आयोजन किया जाता था, जिसमें विभिन्न सांस्कृतिक और धार्मिक गतिविधियाँ होती थीं।
– पुजारियों और साधुओं का सम्मान: शासकों ने पुजारियों, साधुओं और धार्मिक शिक्षकों को उच्च सम्मान दिया। कृष्णदेवराय ने मंदिरों और धार्मिक संस्थानों को नियमित दान और समर्थन प्रदान किया, जिससे धार्मिक गतिविधियों को बढ़ावा मिला। उन्होंने धार्मिक शिक्षकों के लिए अनुदान प्रदान किए और उनके लिए विशेष सम्मान की व्यवस्था की।
अन्य धर्मों के प्रति सहिष्णुता
1. इस्लाम और मुसलमानों का सम्मान:
– मुसलमानों का संरक्षण: विजयनगर साम्राज्य ने मुसलमान व्यापारियों और समुदायों के प्रति सहिष्णुता का व्यवहार किया। कृष्णदेवराय के शासनकाल में मुसलमान व्यापारियों को व्यापार के लिए विशेष सुविधाएँ प्रदान की गईं। साम्राज्य ने मुसलमानों के लिए सुरक्षा और सम्मान की गारंटी दी, जो व्यापारिक और सांस्कृतिक आदान-प्रदान के लिए अनुकूल वातावरण प्रदान करता था।
– मुस्लिम वास्तुकला: साम्राज्य के काल में मुस्लिम वास्तुकला के प्रभाव को भी देखा जा सकता है। उदाहरण के तौर पर, ताजुल मस्जिद और बिडर की वास्तुकला में मुस्लिम शिल्पकला के तत्वों को शामिल किया गया। यह दर्शाता है कि विजयनगर साम्राज्य ने मुस्लिम संस्कृति और धर्म के प्रति सम्मान बनाए रखा।
2. जैन धर्म और बौद्ध धर्म:
– जैन धर्म: जैन धर्म के अनुयायियों को भी संरक्षण और सम्मान प्राप्त हुआ। हंपी और शिवगंगा में जैन मंदिरों का निर्माण और पुनर्निर्माण किया गया। शिवगंगा में जैन पंथ के अनुयायियों ने एक महत्वपूर्ण धार्मिक केंद्र स्थापित किया। जैन धर्म के अनुयायियों ने साम्राज्य की धार्मिक विविधता को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
– बौद्ध धर्म: जबकि बौद्ध धर्म साम्राज्य के दौरान प्रमुख नहीं था, फिर भी उसे सहिष्णुता के साथ देखा गया। बौद्ध धर्म के अनुयायियों को धार्मिक स्वतंत्रता और सम्मान प्राप्त हुआ। साम्राज्य ने बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए धार्मिक स्थलों और संसाधनों की व्यवस्था की।
धार्मिक नीतियाँ और सामाजिक समरसता
1. धार्मिक सहिष्णुता की नीतियाँ:
– राजनीतिक और धार्मिक नीति: विजयनगर साम्राज्य की धार्मिक नीतियाँ धार्मिक विविधता को स्वीकार करती थीं। शासकों ने न केवल हिंदू धर्म को बढ़ावा दिया, बल्कि अन्य धर्मों के अनुयायियों के साथ भी सम्मानपूर्वक व्यवहार किया। कृष्णदेवराय ने विभिन्न धार्मिक समूहों के बीच सौहार्द बनाए रखने के लिए सक्रिय प्रयास किए। उन्होंने धार्मिक समरसता को प्रोत्साहित करने के लिए विभिन्न धार्मिक समुदायों के बीच संवाद और सहयोग को बढ़ावा दिया।
– धार्मिक विवादों का समाधान: धार्मिक विवादों और संघर्षों को शांतिपूर्ण ढंग से हल करने के लिए साम्राज्य में विभिन्न उपाय किए गए। इसमें धार्मिक नेताओं और विद्वानों के मध्य संवाद और मध्यस्थता शामिल थी। यह दृष्टिकोण सामाजिक स्थिरता और शांति बनाए रखने में सहायक था।
2. सामाजिक और सांस्कृतिक समरसता:
– धार्मिक भिन्नताओं को स्वीकार्यता: विजयनगर साम्राज्य ने धार्मिक भिन्नताओं को स्वीकार किया और समाज में सांस्कृतिक विविधता को बढ़ावा दिया। यह दृष्टिकोण समाज में शांति और सामाजिक स्थिरता को बनाए रखने में सहायक था। साम्राज्य के शासकों ने विभिन्न धार्मिक समूहों के बीच सौहार्दपूर्ण संबंध बनाए रखने के लिए प्रयास किए।
– सांस्कृतिक आयोजनों में विविधता: साम्राज्य के दौरान सांस्कृतिक आयोजनों और समारोहों में धार्मिक विविधताओं का सम्मान किया गया। यह धार्मिक सहिष्णुता और सांस्कृतिक समरसता को बढ़ावा देने में सहायक था। साम्राज्य के शासकों ने विभिन्न धार्मिक समुदायों के सांस्कृतिक आयोजनों का समर्थन किया और इन आयोजनों को प्रोत्साहित किया।
मंदिर निर्माण और धार्मिक संरचनाएँ
1. प्रमुख मंदिर निर्माण:
– विठोब मंदिर: हंपी में स्थित विठोब मंदिर साम्राज्य के प्रमुख धार्मिक स्थलों में से एक था। इस मंदिर का निर्माण कृष्णदेवराय के शासनकाल में हुआ और यह भगवान विठोबा को समर्पित था। मंदिर की भव्यता और वास्तुकला ने इसे हिंदू धर्म का महत्वपूर्ण स्थल बना दिया। मंदिर की संरचना और डिजाइन में धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व को दर्शाया गया।
– हजारा राम मंदिर: हजारा राम मंदिर का निर्माण कृष्णदेवराय के शासनकाल में हुआ। यह मंदिर हिंदू धर्म की वास्तुकला और धार्मिक कला का उत्कृष्ट उदाहरण है। मंदिर के अंदर की चित्रकला और शिल्पकला ने धार्मिक कथाओं और आस्थाओं को जीवंत रूप में प्रस्तुत किया।
2. मंदिर वास्तुकला और कला:
– वास्तुकला की विशेषताएँ: विजयनगर साम्राज्य के मंदिरों की वास्तुकला में भव्यता और विविधता देखी जा सकती है। मंदिरों में उकेरे गए चित्र और मूर्तियाँ धार्मिक कला के उत्कृष्ट उदाहरण हैं। हंपी के मंदिरों में विशेष रूप से जटिल शिल्प और चित्रण देखने को मिलते हैं। मंदिरों के निर्माण में उत्कृष्ट शिल्पकला और वास्तुकला का प्रदर्शन किया गया।
– धार्मिक कला और शिल्प: मंदिरों में उकेरे गए धार्मिक चित्र और मूर्तियाँ धार्मिक कला और शिल्प के प्रमुख उदाहरण हैं। इन चित्रों और मूर्तियों ने धार्मिक कथाओं और आस्थाओं को अभिव्यक्त किया। मंदिरों की दीवारों और स्तंभों पर उकेरे गए चित्र धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व को दर्शाते हैं।
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हजारा राम मंदिर की बाहरी दीवार पर उभरी हुई क्षैतिज भित्तिचित्रें, साम्राज्य में जीवन को दर्शाती हैं |
कला और वास्तुकला का उत्कर्ष: विजयनगर साम्राज्य के मंदिरों, महलों और वास्तुकला की विशेषताएँ
विजयनगर साम्राज्य का शासकीय और सांस्कृतिक उत्कर्ष न केवल उसकी राजनीतिक और सैन्य ताकत के कारण प्रसिद्ध है, बल्कि उसकी कला और वास्तुकला के अद्वितीय योगदान के कारण भी है। इस साम्राज्य ने वास्तुकला और कला के क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण विकास किए, जिनमें प्रमुख मंदिरों, महलों और अन्य संरचनाओं का निर्माण शामिल है।
विट्ठल मंदिर
1. मंदिर का महत्व:
– स्थान और निर्माण: विट्ठल मंदिर, जो हंपी में स्थित है, विजयनगर साम्राज्य के सबसे प्रसिद्ध और भव्य धार्मिक स्थलों में से एक है। इस मंदिर का निर्माण कृष्णदेवराय के शासनकाल के दौरान हुआ था और यह भगवान विठोबा को समर्पित है।
– वास्तुकला: विट्ठल मंदिर की वास्तुकला में भव्यता और विशिष्टता की झलक मिलती है। इस मंदिर का डिजाइन दक्षिण भारतीय वास्तुकला की उत्कृष्टता को दर्शाता है। मंदिर की भव्य और जटिल सजावट इसे अद्वितीय बनाती है।
2. मंदिर की विशेषताएँ:
– रथ (चवदी) और नृत्य मंडप: विट्ठल मंदिर में रथ और नृत्य मंडप की विशेषता है, जिसमें रथ की संरचना और नृत्य मंडप की भव्यता इस मंदिर की प्रमुख विशेषताएँ हैं। यह नृत्य मंडप मंदिर की धार्मिक और सांस्कृतिक गतिविधियों का महत्वपूर्ण हिस्सा था।
– संगीत स्तंभ (म्यूज़िकल पिलर): मंदिर में स्थित संगीत स्तंभ (म्यूज़िकल पिलर) एक अद्वितीय वास्तुकला और शिल्प का उदाहरण है। यह स्तंभ विभिन्न ध्वनियों का उत्पादन करता है और इसे वास्तुकला की एक उत्कृष्ट कृति माना जाता है।
हजारा राम मंदिर
1. मंदिर का महत्व:
– स्थान और निर्माण: हजारा राम मंदिर भी हंपी में स्थित है और इसे कृष्णदेवराय के शासनकाल के दौरान बनाया गया था। यह मंदिर विशेष रूप से हिंदू धर्म की धार्मिक कला और वास्तुकला का महत्वपूर्ण उदाहरण है।
– वास्तुकला: हजारा राम मंदिर की वास्तुकला में जटिल शिल्प और चित्रण की विशेषताएँ हैं। इसका डिजाइन हिंदू धर्म की धार्मिक कथा और आस्थाओं को दर्शाता है।
2. मंदिर की विशेषताएँ:
– शिल्प और चित्रण: हजारा राम मंदिर की दीवारों पर उकेरे गए चित्र और मूर्तियाँ धार्मिक कथाओं और पौराणिक गाथाओं को दर्शाते हैं। इन चित्रों और मूर्तियों में भगवान राम और उनके जीवन के विभिन्न पहलुओं को प्रदर्शित किया गया है।
– निर्माण की तकनीक: मंदिर के निर्माण में प्रयुक्त तकनीक और सामग्री इस काल की वास्तुकला की भव्यता को दर्शाते हैं। मंदिर की संरचना और शिल्प कला इस काल के स्थापत्य कला के उत्कृष्ट उदाहरण हैं।
अन्य महत्वपूर्ण संरचनाएँ
1. पाटालेश्वर मंदिर:
– स्थान और निर्माण: पाटालेश्वर मंदिर हंपी में स्थित है और यह भगवान शिव को समर्पित है। यह मंदिर अपने विशेष वास्तुकला और शिल्प के लिए प्रसिद्ध है।
– वास्तुकला: मंदिर की वास्तुकला में उत्तम शिल्प और डिजाइन की झलक मिलती है। इसके निर्माण में प्रयुक्त सामग्री और तकनीक इस काल की कला और वास्तुकला के उत्कृष्ट उदाहरण हैं।
2. ज़ेनाना एन्क्लेव:
– स्थान और महत्व: ज़ेनाना एन्क्लेव हंपी के महल परिसर का हिस्सा था और यह साम्राज्य की रानियों और महिला सदस्यों के निवास के लिए निर्मित था।
– वास्तुकला और शिल्प: ज़ेनाना एन्क्लेव की वास्तुकला में जटिल शिल्प और डिजाइन की विशेषताएँ हैं। यहाँ के महलों और संरचनाओं में उकेरे गए चित्र और सजावट इस काल की शाही वास्तुकला का प्रतिनिधित्व करते हैं।
3. राजा की महल:
– स्थान और निर्माण: राजा की महल हंपी के मुख्य शाही परिसर का हिस्सा था और इसे शाही परिवार के निवास के लिए डिजाइन किया गया था।
– वास्तुकला: महल की वास्तुकला में भव्यता और विशेष डिजाइनों की झलक मिलती है। महल के विभिन्न भागों की संरचना और सजावट इस काल की शाही संस्कृति और वास्तुकला को दर्शाते हैं।
सांस्कृतिक और धार्मिक कला
1. चित्रण और मूर्तिकला:
– चित्रण: विजयनगर साम्राज्य के मंदिरों में उकेरे गए चित्र धार्मिक और सांस्कृतिक कथाओं को दर्शाते हैं। ये चित्र धार्मिक आस्थाओं और सांस्कृतिक परंपराओं का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं।
– मूर्तिकला: मूर्तियों में उपयोग की गई तकनीक और डिजाइन इस काल की शिल्प कला के उत्कृष्ट उदाहरण हैं। मूर्तिकला के ये उदाहरण दक्षिण भारतीय कला की भव्यता को प्रदर्शित करते हैं।
2. वास्तुकला के तत्व:
– शिल्प और डिजाइन: विजयनगर साम्राज्य की वास्तुकला में प्रयुक्त शिल्प और डिजाइन इस काल की कला और स्थापत्य की उत्कृष्टता को दर्शाते हैं। मंदिरों और महलों की संरचना और सजावट इस काल की स्थापत्य कला के प्रमुख उदाहरण हैं।
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विजयनगर के कवि मंजराजा द्वारा कन्नड़ में काव्यात्मक शिलालेख |
साहित्य और संस्कृति का स्वर्ण युग: तेलुगु, कन्नड़, संस्कृत और तमिल साहित्य का विकास; संगीत और नाट्य कला का समृद्धिकरण
विजयनगर साम्राज्य के शासनकाल को दक्षिण भारत में साहित्य और संस्कृति के विकास का स्वर्ण युग कहा जाता है। यह काल विभिन्न भाषाओं और कलाओं के विकास का समय था, जिसमें तेलुगु, कन्नड़, संस्कृत, और तमिल साहित्य को विशेष रूप से प्रोत्साहन मिला। साथ ही, संगीत और नाट्यकला की भी समृद्ध परंपरा को बढ़ावा दिया गया। इस साम्राज्य के शासकों ने विभिन्न प्रकार की कलाओं को संरक्षित किया और दक्षिण भारतीय संस्कृति को समृद्ध बनाया।
तेलुगु साहित्य का विकास
विजयनगर साम्राज्य के सबसे प्रसिद्ध शासक, कृष्णदेवराय, स्वयं एक महान कवि और साहित्य प्रेमी थे। उन्होंने अपने शासनकाल में तेलुगु साहित्य को बहुत प्रोत्साहित किया। कृष्णदेवराय की तेलुगु काव्य रचना ‘अमुक्तमाल्यदा‘ तेलुगु साहित्य की एक महत्त्वपूर्ण कृति है, जो कि विष्णु के प्रति उनकी भक्ति को दर्शाती है।
अष्ट दिग्गज:
कृष्णदेवराय के दरबार में आठ महान तेलुगु कवि थे, जिन्हें ‘अष्ट दिग्गज‘ कहा जाता था। इन कवियों ने तेलुगु भाषा में अद्भुत काव्य रचनाएँ कीं और इस भाषा की समृद्धि को नए शिखर पर पहुँचाया। इन कवियों में आलसानी पेद्दन्ना, जो ‘आंध्र कवि पितामह‘ के नाम से जाने जाते थे, विशेष रूप से महत्वपूर्ण थे। उनकी प्रमुख रचना ‘मनुचरित्र‘ विजयनगर काल के तेलुगु साहित्य का एक उत्कृष्ट उदाहरण है।
कन्नड़ साहित्य
कन्नड़ भाषा का साहित्य भी विजयनगर काल में समृद्ध हुआ। इस काल में कई महान कवियों और लेखकों ने कन्नड़ में महत्वपूर्ण ग्रंथों की रचना की। कुमार व्यास ने इस समय में ‘कर्णाटक भारत कथा मंजरी‘ की रचना की, जो महाभारत पर आधारित एक महाकाव्य है। कन्नड़ साहित्य में इस ग्रंथ का अत्यधिक महत्त्व है और इसे कन्नड़ साहित्य के स्वर्ण युग का प्रतीक माना जाता है।
संस्कृत साहित्य
विजयनगर के शासकों ने संस्कृत साहित्य को भी बढ़ावा दिया। संस्कृत साहित्य का विकास मुख्य रूप से कृष्णदेवराय और उनके दरबारी कवियों के संरक्षण में हुआ। कृष्णदेवराय स्वयं संस्कृत के विद्वान थे और उन्होंने कई संस्कृत ग्रंथों की रचना की।
‘जांबवती कल्याण‘, जो भगवान कृष्ण और जांबवती की कथा पर आधारित है, कृष्णदेवराय की एक प्रमुख संस्कृत काव्य रचना है। इसके अलावा, उनके दरबार में संस्कृत के विद्वानों को भी पर्याप्त संरक्षण मिला, जिससे संस्कृत साहित्य का विकास हुआ।
तमिल साहित्य का उत्थान
विजयनगर काल में तमिल साहित्य का उत्थान मुख्य रूप से धार्मिक और भक्ति साहित्य के विकास के रूप में देखा गया। इस काल में तमिल कवियों और विद्वानों को संरक्षण मिला, जिसके कारण तमिल साहित्य में विशेष वृद्धि हुई।
विलप्परु साहित्य: विजयनगर काल में तमिलनाडु के विभिन्न हिस्सों में भक्ति साहित्य का प्रसार हुआ। विशेष रूप से, विलप्परु शैली के भक्ति गीत लोकप्रिय हुए, जो भगवान विष्णु और शिव की स्तुति के लिए लिखे गए थे। यह साहित्य तमिल भाषा में भक्ति आंदोलन का प्रमुख उदाहरण है।
अम्मल साहित्य: इस काल में अम्मल (श्री वैष्णव आचार्य) जैसे विद्वानों ने तमिल और संस्कृत दोनों में साहित्य रचा। उन्होंने धार्मिक और दार्शनिक विषयों पर तमिल में विस्तृत लेखन किया, जिससे तमिल भाषा में धार्मिक साहित्य का विस्तार हुआ।
अरुणगिरिनाथर: एक प्रमुख तमिल कवि थे, जिन्होंने तिरुप्पुग़ल की रचना की। यह काव्य भगवान मुरुगन की स्तुति में लिखा गया था और इसे तमिल भक्ति साहित्य की उत्कृष्ट रचनाओं में गिना जाता है। अरुणगिरिनाथर का काव्य शैली और धार्मिक भावनाओं के प्रति योगदान महत्वपूर्ण था।
सैव साहित्य: विजयनगर काल में सैव धर्म के अनुयायियों ने तमिल साहित्य में कई महत्वपूर्ण योगदान किए। तेवरम और तिरुवाचकम जैसे सैव भक्ति काव्य इस समय के दौरान और अधिक प्रचलित हुए और तमिल साहित्य में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त किया।
संगीत का विकास
संगीत विजयनगर साम्राज्य में कला का एक महत्वपूर्ण अंग था। इस काल में कर्नाटक संगीत की परंपरा को विशेष संरक्षण मिला। पुरंदरदास, जिन्हें कर्नाटक संगीत का ‘पितामह’ माना जाता है, विजयनगर साम्राज्य के समय के एक प्रमुख संगीतकार थे। उन्होंने कर्नाटक संगीत को सरल और सुलभ बनाने के लिए कई महत्त्वपूर्ण सुधार किए। पुरंदरदास ने कर्नाटक संगीत की शिक्षा के लिए कई नए मानक और सिद्धांत प्रस्तुत किए, जिनका उपयोग आज भी संगीत शिक्षा में होता है।
हरिदास परंपरा:
इस समय हरिदास परंपरा का विकास हुआ, जिसमें भक्ति संगीत का प्रमुख स्थान था। भक्ति संगीत के माध्यम से भगवान की आराधना और धार्मिक उपदेश दिए जाते थे। इस परंपरा के अनुयायी पुरंदरदास और अन्य संगीतकारों ने अपने भजनों और कीर्तन के माध्यम से समाज में धार्मिक और सांस्कृतिक जागरूकता का प्रसार किया।
नाट्य कला का समृद्धिकरण
विजयनगर साम्राज्य में नाट्यकला भी अत्यधिक समृद्ध हुई। धार्मिक और सांस्कृतिक आयोजनों के दौरान नाट्य प्रस्तुतियाँ दी जाती थीं। यक्षगान जैसी नाट्यकला का विकास भी इसी समय हुआ। यक्षगान एक पारंपरिक नाट्य रूप है, जिसमें नृत्य, संगीत और अभिनय का सम्मिश्रण होता है। विजयनगर साम्राज्य के शासकों ने इन नाट्य कलाओं को संरक्षण दिया और धार्मिक त्योहारों के अवसर पर भव्य नाट्य प्रस्तुतियों का आयोजन किया जाता था।
विदेशी यात्रियों की दृष्टि से विजयनगर साम्राज्य
विदेशी यात्रियों के यात्रा-विवरणों से हमें विजयनगर साम्राज्य की समृद्धि, शक्ति और सांस्कृतिक विविधता का गहरा ज्ञान मिलता है। इन यात्रियों में पुर्तगाली यात्री डॉमिंगो पाइस और फ़ारसी राजदूत अब्दुल रज्जाक प्रमुख हैं, जिन्होंने विजयनगर की यात्रा की और उस समय के विजयनगर साम्राज्य का गहन विवरण प्रस्तुत किया। इसके अलावा, कई अन्य विदेशी यात्रियों ने भी विजयनगर के बारे में उल्लेखनीय जानकारी दी है, जिनमें निकोलो दी कोंटी और सेबेस्टियन कब्राल शामिल हैं।
डॉमिंगो पाइस (Domingo Paes)
1. विजयनगर साम्राज्य का भव्य राजधानी शहर – हंपी
डॉमिंगो पाइस ने हंपी को एक समृद्ध और शक्तिशाली शहर बताया। उन्होंने शहर की भव्यता, उसकी व्यापकता, और वहाँ की संरचनाओं का विस्तार से वर्णन किया। पाइस के अनुसार, हंपी का बाज़ार बहुत ही जीवंत था, और वहाँ सोने, चांदी, रत्न, घोड़े और अन्य कीमती वस्तुओं का व्यापार होता था। पाइस ने हंपी के राजमहलों, मंदिरों और बागों की भव्यता को भी विस्तार से बताया। उनके अनुसार, शहर में स्तंभों से सजे हुए मंदिर, जलाशयों के पास सुंदर बाग-बगीचे और शाही दरबार के विशाल महल थे।
2. सेना की ताकत
पाइस के विवरणों से विजयनगर साम्राज्य की सैन्य शक्ति का भी पता चलता है। उन्होंने देखा कि राजा कृष्णदेवराय की सेना में पैदल सैनिक, घुड़सवार, और युद्ध हाथी शामिल थे। पाइस ने यह भी कहा कि विजयनगर की सेना में आधुनिक समय के हथियारों और युद्ध रणनीतियों का उपयोग किया जाता था। इसके अलावा, शहर के चारों ओर विशाल दीवारें और किलेबंदी थी, जो इसे दुश्मनों के आक्रमण से सुरक्षित रखती थीं।
3. धार्मिक और सांस्कृतिक जीवन
पाइस ने विजयनगर के धार्मिक जीवन का भी उल्लेख किया। उनके अनुसार, विजयनगर में धार्मिक स्वतंत्रता थी और विभिन्न धर्मों के लोग यहाँ शांतिपूर्वक रहते थे। हिंदू मंदिरों में अनुष्ठान और धार्मिक उत्सव होते थे, जो साम्राज्य की धार्मिक समृद्धि को दर्शाते थे। उन्होंने कृष्णदेवराय के शासनकाल में हिंदू मंदिरों के निर्माण और धार्मिक सहिष्णुता को भी विस्तार से वर्णित किया है।
अब्दुल रज्जाक (Abdur Razzaq)
1. हंपी की समृद्धि और विशालता
अब्दुल रज्जाक विजयनगर की समृद्धि से चकित थे। उनके अनुसार, हंपी अपने समय के सबसे बड़े और भव्य शहरों में से एक था। उन्होंने शहर की भव्य संरचनाओं, विशाल महलों और मंदिरों का वर्णन किया। रज्जाक ने विशेष रूप से यह उल्लेख किया कि विजयनगर की राजधानी इतनी समृद्ध थी कि वहाँ की सड़कों पर कीमती रत्न और सोने की वस्तुएँ देखी जा सकती थीं। शहर की विशालता और व्यापारिक समृद्धि ने उन्हें अत्यधिक प्रभावित किया।
2. धार्मिक सहिष्णुता और न्याय प्रणाली
रज्जाक के अनुसार, विजयनगर में धार्मिक सहिष्णुता थी। उन्होंने बताया कि हिंदू धर्म का यहाँ प्रमुख स्थान था, लेकिन मुसलमानों और अन्य धर्मों के अनुयायियों के साथ भी सम्मानजनक व्यवहार किया जाता था। रज्जाक ने विजयनगर के न्याय और प्रशासन प्रणाली की भी प्रशंसा की। उनके अनुसार, राजा न्यायप्रिय और प्रजा के प्रति संवेदनशील था। विजयनगर के दरबार में विशाल सभा होती थी, जहाँ राजा न्याय करता था और प्रजा के हितों की रक्षा करता था।
निकोलो दी कोंटी (Niccolò de’ Conti)
1. विजयनगर के व्यापार और संस्कृति का वर्णन
निकोलो दी कोंटी, एक इतालवी यात्री, ने भी विजयनगर साम्राज्य की यात्रा की और इसके व्यापारिक संबंधों और सांस्कृतिक जीवन का वर्णन किया। उनके अनुसार, विजयनगर का व्यापार कई देशों के साथ होता था, विशेष रूप से फारस, अरब और अफ्रीका के देशों के साथ। उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि विजयनगर का सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन बहुत समृद्ध था, और यहाँ के लोग संगीत, नृत्य और कला में विशेष रुचि रखते थे।
सेबेस्टियन कब्राल (Sebastião Cabral)
1. विजयनगर की सैन्य व्यवस्था
सेबेस्टियन कब्राल एक और पुर्तगाली यात्री थे, जिन्होंने विजयनगर की सैन्य व्यवस्था और वहाँ की भौगोलिक स्थिति का विस्तृत वर्णन किया। कब्राल ने विजयनगर के दुर्गों और उसकी किलेबंदी का उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि विजयनगर साम्राज्य की सेना में अत्याधुनिक हथियारों और घोड़ों का उपयोग किया जाता था। कब्राल ने यह भी बताया कि विजयनगर में विदेशी सैनिक भी काम करते थे, जो साम्राज्य की सैन्य ताकत को और मजबूत बनाते थे।
साम्राज्य का पतन: तालीकोटा की लड़ाई (1565) और इसके बाद
विजयनगर साम्राज्य का पतन 1565 में तालीकोटा की ऐतिहासिक लड़ाई के साथ जुड़ा हुआ है, जिसने इस विशाल साम्राज्य को नष्ट कर दिया। यह युद्ध दक्षिण भारत की सबसे महत्वपूर्ण घटनाओं में से एक था, जिसने क्षेत्र के राजनीतिक संतुलन को पूरी तरह बदल दिया।
तालीकोटा की लड़ाई (1565)
तालीकोटा की लड़ाई 23 जनवरी 1565 को विजयनगर साम्राज्य और दक्कन सल्तनतों (बिजापुर, अहमदनगर, बीदर और गोलकुंडा) के गठबंधन के बीच लड़ी गई। विजयनगर की सेना का नेतृत्व राजा रामा राय कर रहे थे, जो तुंगभद्रा नदी के निकट तालीकोटा के मैदान में युद्ध के लिए आए थे। दक्कनी सल्तनतों की संयुक्त सेना ने इस युद्ध में विजयनगर के खिलाफ अपनी रणनीतिक श्रेष्ठता का प्रदर्शन किया।
युद्ध का कारण और पृष्ठभूमि
विजयनगर साम्राज्य और बहमनी सल्तनतों के बीच संघर्ष वर्षों से चला आ रहा था। राजा रामा राय ने बहमनी सल्तनतों के आपसी राजनीतिक असंतोष का लाभ उठाकर उनके मामलों में हस्तक्षेप किया और विजयनगर की सीमाओं का विस्तार करने का प्रयास किया। दक्कनी सल्तनतें इस हस्तक्षेप से नाराज थीं, इसलिए उन्होंने आपसी मतभेद भुलाकर विजयनगर के खिलाफ एकजुट हो गए।
युद्ध का विवरण
तालीकोटा की लड़ाई में, विजयनगर की सेना पहले तो सफल होती दिखी, लेकिन जब दक्कनी सेना ने अचानक आक्रमण किया और रामा राय को बंदी बना लिया, तो हालात बदल गए। रामा राय की हत्या के बाद, विजयनगर की सेना में अफरा-तफरी मच गई, जिससे दक्कनी सेना ने इसे पूरी तरह हरा दिया। विजयनगर की यह हार साम्राज्य के पतन की शुरुआत थी।
हंपी की बर्बादी
तालीकोटा की लड़ाई में विजयनगर की हार के बाद, दक्कनी सेना ने विजयनगर की राजधानी हंपी को लूट लिया और उसे पूरी तरह से ध्वस्त कर दिया। हंपी, जो कभी दक्षिण भारत की सबसे समृद्ध और शक्तिशाली राजधानी थी, अब खंडहरों में बदल गई। मंदिरों, महलों, और बाजारों को बर्बाद कर दिया गया, जिससे विजयनगर साम्राज्य का गौरवशाली अतीत भी धूमिल हो गया।
राजनीतिक और सांस्कृतिक प्रभाव
तालीकोटा की लड़ाई और उसके बाद की घटनाओं ने न केवल विजयनगर साम्राज्य के राजनीतिक पतन को जन्म दिया, बल्कि इसके सांस्कृतिक और आर्थिक प्रभावों को भी समाप्त कर दिया। साम्राज्य के शेष हिस्से छोटे-छोटे राज्य में विभाजित हो गए और विजयनगर का प्रभाव धीरे-धीरे दक्षिण भारत में समाप्त हो गया। हालांकि, विजयनगर की सांस्कृतिक धरोहर, मंदिरों की वास्तुकला, साहित्य, और कला के रूप में जीवित रही। इस काल की स्थापत्य कला और सांस्कृतिक योगदान आज भी भारतीय इतिहास में विशेष स्थान रखते हैं।
विरासत: विजयनगर साम्राज्य की विरासत और इसका आधुनिक भारत पर प्रभाव
विजयनगर साम्राज्य का दक्षिण भारत के इतिहास और संस्कृति पर गहरा प्रभाव रहा है। इसके राजनीतिक, सांस्कृतिक और आर्थिक योगदानों ने भारत की विरासत को समृद्ध किया। साम्राज्य के पतन के बाद भी उसकी यादें, स्थापत्य कला, साहित्य और सांस्कृतिक धरोहरें आज तक जीवित हैं, और आधुनिक भारत पर इसका प्रभाव स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है।
स्थापत्य कला और वास्तुकला की विरासत
विजयनगर साम्राज्य की स्थापत्य कला आज भी हंपी के खंडहरों में जीवित है। इसके भव्य मंदिर, महल, और स्तंभ आधुनिक भारतीय स्थापत्य कला को प्रेरित करते हैं। विशेष रूप से, विट्ठल मंदिर और हजारा राम मंदिर जैसे उदाहरणों ने दक्षिण भारतीय मंदिर वास्तुकला में अपना अमूल्य योगदान दिया है।
– युनेस्को की विश्व धरोहर:
विजयनगर साम्राज्य के खंडहर, विशेषकर हंपी, को युनेस्को की विश्व धरोहर स्थल के रूप में मान्यता दी गई है। यह आधुनिक भारत के पर्यटन और सांस्कृतिक संरक्षण प्रयासों का प्रमुख हिस्सा है।
– प्रेरणा का स्रोत:
आज भी भारतीय वास्तुकला के छात्र और शोधकर्ता विजयनगर काल की स्थापत्य कला का अध्ययन करते हैं। इसके स्थापत्य में पत्थरों की जटिल नक्काशी और भव्यता के लिए प्रसिद्ध है, जो आधुनिक समय में भी स्थापत्य और शिल्प कौशल का एक मानक बनी हुई है।
साहित्य और भाषा की धरोहर
विजयनगर साम्राज्य ने दक्षिण भारत की विभिन्न भाषाओं के साहित्यिक विकास में योगदान दिया। विशेषकर तेलुगु, कन्नड़, संस्कृत, और तमिल साहित्य इस काल में खूब फला-फूला।
– तेलुगु साहित्य:
विजयनगर के राजाओं ने तेलुगु कवियों और साहित्यकारों को प्रोत्साहन दिया, जिससे इस भाषा का साहित्यिक विकास हुआ। राजा कृष्णदेव राय स्वयं एक विद्वान कवि थे, और उन्होंने अमुक्तमाल्यदा नामक एक तेलुगु महाकाव्य की रचना की। उनकी साहित्यिक कृतियाँ आज भी आधुनिक तेलुगु साहित्य का अभिन्न हिस्सा मानी जाती हैं।
– कन्नड़ और संस्कृत साहित्य:
कन्नड़ और संस्कृत साहित्य भी इस काल में समृद्ध हुआ। कन्नड़ में कामताशिल्प और संस्कृत में स्मृति ग्रंथों की रचना इस काल की प्रमुख साहित्यिक उपलब्धियाँ थीं। इन कृतियों का प्रभाव आज भी दक्षिण भारत की भाषाई और सांस्कृतिक धरोहर में देखा जा सकता है।
धार्मिक सहिष्णुता और सांस्कृतिक समन्वय
विजयनगर साम्राज्य धार्मिक सहिष्णुता और सांस्कृतिक समन्वय का प्रतीक था। यहाँ हिंदू धर्म के साथ-साथ जैन और इस्लामी संस्कृति के तत्व भी देखने को मिलते हैं। मंदिर निर्माण के साथ-साथ इस्लामी स्थापत्य कला के भी प्रभाव इस साम्राज्य के भवनों और स्थापत्य में देखे जा सकते हैं।
– धार्मिक सहिष्णुता की विरासत:
विजयनगर साम्राज्य की धार्मिक सहिष्णुता ने आधुनिक भारत में भी एक महत्वपूर्ण मूल्य के रूप में अपना स्थान बना लिया है। साम्राज्य ने धार्मिक और सांस्कृतिक विविधता का सम्मान किया, जो आज भारत के बहुलवादी समाज की आधारशिला है।
– सांस्कृतिक समन्वय:
विजयनगर साम्राज्य में विभिन्न संस्कृतियों के मिश्रण से एक समृद्ध सांस्कृतिक परंपरा का निर्माण हुआ, जो आज भी दक्षिण भारतीय नृत्य, संगीत और कला में झलकती है।
कृषि और आर्थिक सुधारों की विरासत
विजयनगर साम्राज्य में कृषि और आर्थिक प्रबंधन की उन्नत प्रणालियाँ लागू की गईं, जो उस समय के लिए अद्वितीय थीं। भूमि सुधार, सिंचाई प्रबंधन, और व्यापारिक नेटवर्क का प्रभाव आज भी भारत की कृषि और व्यापार नीतियों में देखा जा सकता है।
– सिंचाई प्रणाली:
विजयनगर साम्राज्य ने कुशल सिंचाई प्रणाली और जल संरक्षण तकनीकों का विकास किया, जिनका उपयोग आज भी आधुनिक भारतीय कृषि में होता है। हंपी के पास बने जलाशय और बाँध इसके उत्कृष्ट उदाहरण हैं।
– व्यापारिक विरासत: विजयनगर ने दक्षिण भारत को एक प्रमुख व्यापारिक केंद्र में बदल दिया, जहाँ से मसालों, वस्त्रों और धातुओं का व्यापार होता था। इस व्यापारिक विरासत ने आधुनिक भारत के व्यापार और आर्थिक संबंधों की नींव रखी।
राजनीतिक और सैन्य रणनीति का प्रभाव
विजयनगर साम्राज्य की राजनीतिक और सैन्य रणनीतियाँ भी आधुनिक समय में प्रासंगिक बनी हुई हैं। साम्राज्य ने विभिन्न राज्यों और शक्तियों के साथ मैत्री और युद्ध की नीति का अनुसरण किया, जिसने उसे लंबे समय तक सुदृढ़ बनाए रखा।
– सैनिक संगठन और रणनीति: विजयनगर के शासकों ने मजबूत सैन्य व्यवस्था विकसित की थी। उनकी रणनीति, सैनिक संगठन और युद्ध कौशल ने आधुनिक भारतीय रक्षा प्रणालियों को प्रेरित किया है।
– केंद्रीय शासन प्रणाली: साम्राज्य की केंद्रीकृत शासन प्रणाली और प्रांतों में गवर्नरों की नियुक्ति जैसी व्यवस्थाएँ आज भी भारतीय प्रशासनिक ढाँचे में परिलक्षित होती हैं।
आधुनिक भारत पर विजयनगर का सांस्कृतिक प्रभाव
विजयनगर साम्राज्य का सांस्कृतिक प्रभाव आज भी दक्षिण भारत की कला, नृत्य, संगीत और त्योहारों में देखा जा सकता है। प्रसिद्ध भरतनाट्यम और कुचिपुड़ी जैसे शास्त्रीय नृत्य रूप विजयनगर के समय में ही विकसित हुए और आज भी इन्हें भारत की सांस्कृतिक पहचान का हिस्सा माना जाता है। इसके अलावा, कर्नाटक संगीत और अन्य पारंपरिक कलाएँ विजयनगर की सांस्कृतिक धरोहर का हिस्सा हैं।
निष्कर्ष
विजयनगर साम्राज्य भारतीय इतिहास का एक गौरवशाली अध्याय है, जिसने दक्षिण भारत की सांस्कृतिक, धार्मिक, और आर्थिक प्रगति को एक नई दिशा दी। इस साम्राज्य ने स्थापत्य कला, साहित्य, और संगीत के क्षेत्र में जो अमूल्य योगदान दिए, वे आज भी भारत की सांस्कृतिक धरोहर का हिस्सा हैं। हंपी के भव्य खंडहर इस गौरवशाली अतीत के गवाह हैं और युनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल के रूप में मान्यता प्राप्त करने के बाद, यह स्थल भारतीय और विदेशी पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र बना हुआ है।
विजयनगर साम्राज्य ने धार्मिक सहिष्णुता और सांस्कृतिक विविधता का जो आदर्श प्रस्तुत किया, वह आधुनिक भारत के बहुलवादी समाज के लिए एक महत्वपूर्ण प्रेरणा स्रोत है। यहाँ की स्थापत्य कला और जल संरक्षण प्रणालियाँ आज भी अध्ययन का विषय हैं और आधुनिक समय की आवश्यकताओं के अनुरूप उनका उपयोग किया जाता है। साहित्यिक और सांस्कृतिक विकास में इस साम्राज्य की भूमिका अद्वितीय रही, खासकर तेलुगु, कन्नड़, संस्कृत, और तमिल साहित्य के उत्थान में।
तालीकोटा की लड़ाई के बाद विजयनगर साम्राज्य का पतन हो गया, लेकिन इसकी सांस्कृतिक विरासत ने आधुनिक भारत के समाज और संस्कृति को गहराई से प्रभावित किया। इसके धार्मिक, राजनीतिक, और सैन्य रणनीतियाँ आज भी अध्ययन और अनुसरण का विषय हैं। विजयनगर साम्राज्य की यह विरासत न केवल दक्षिण भारत, बल्कि पूरे भारतीय उपमहाद्वीप की सांस्कृतिक पहचान का एक अहम हिस्सा है।
इस प्रकार, विजयनगर साम्राज्य की धरोहर और इसके योगदान आधुनिक भारत में विभिन्न रूपों में जीवित हैं, और यह भारतीय संस्कृति, कला, और इतिहास का एक महत्वपूर्ण अध्याय है।