मेगस्थनीज और उसकी इण्डिका
मेगस्थनीज एक यूनानी राजदूत था, जिसे सेल्युकस ‘निकेटर’ ने चन्द्रगुप्त मौर्य के दरबार में भेजा था। मेगस्थनीज भारत आने से पहले आरकोरिया के क्षत्रप के दरबार में भी सेल्युकस का राजदूत रह चुका था। अनुमान है कि वह ईसा पूर्व 304 से 299 के बीच पाटलिपुत्र में चन्द्रगुप्त मौर्य की सभा में मौजूद था। सिकंदर की मृत्यु के बाद, उसके एक सामंत सेल्युकस ने 305 ई. पू. भारत पर आक्रमण करने की कोशिश की, ताकि वह अपना साम्राज्य बढ़ा सके। लेकिन उसे चन्द्रगुप्त मौर्य की सेना से हार का सामना करना पड़ा और अंत में उसे शांति की संधि करने पर मजबूर होना पड़ा। संधि के तहत, सेल्युकस ने मेगस्थनीज को एक राजदूत के रूप में चंद्रगुप्त मौर्य के दरबार में भेजा था।

मेगस्थनीज का भारत में रहना और ‘इण्डिका’ की रचना
मेगस्थनीज ने काफी समय तक मौर्य दरबार में निवास किया। भारत में रहते हुए उसने जो कुछ भी देखा और सुना, उसे उसने अपनी पुस्तक ‘इण्डिका‘ में लिखा। दुर्भाग्यवश, यह ग्रंथ आज हमें अपने मूल रूप में प्राप्त नहीं हुआ है। हालांकि, इसके अंश कई बाद के यूनानी और रोमन लेखकों जैसे एरियन, स्ट्रेबो, और प्लिनी की रचनाओं में मिलते हैं।
मेगस्थनीज के विवरण की प्रामाणिकता
स्ट्रेबो ने मेगस्थनीज के विवरण को पूरी तरह से असत्य और अविश्वसनीय बताया था। यह सच है कि मेगस्थनीज का विवरण पूरी तरह से प्रामाणिक नहीं था। एक विदेशी होने के कारण और भारतीय संस्कृति, भाषा, रीति-रिवाजों को न समझने के कारण उसने कई बार गलत जानकारी दी। लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि हम उसके विवरण को पूरी तरह से झूठा मान लें। उसके विवरण का ऐतिहासिक महत्व है, जिसे नकारा नहीं जा सकता।
मौर्यकाल का समाज और लोग
मेगस्थनीज के विवरण से यह पता चलता है कि मौर्यकाल में शांति और समृद्धि थी। लोग आत्मनिर्भर थे और भूमि भी उर्वर थी। समाज नैतिक दृष्टि से उत्कृष्ट था और लोग सादगी से जीवन जीते थे। मेगस्थनीज के अनुसार भारतीय लोग साहसी, सत्यवादी और ईमानदार थे। उनकी वेषभूषा सादी होती थी और वे साधारण जीवन जीते थे।
समाज के विभिन्न वर्ग
मेगस्थनीज ने भारतीय समाज की संरचना का बहुत विस्तार से वर्णन किया। उन्होंने भारतीय समाज को सात प्रमुख वर्गों में विभाजित किया:
1. दार्शनिक – जिनमें ब्राह्मण और साधू शामिल थे।
2. कृषक – जो भूमि पर खेती करते थे।
3. शिकारी और पशुपालक – जो जंगली जानवरों का शिकार करते और पशुपालन करते थे।
4. व्यापारी और शिल्पकार – जो व्यापार और कारीगरी में लगे थे।
5. योद्धा – जो राज्य की रक्षा करते थे।
6. निरीक्षक – जो प्रशासनिक कामकाज देखते थे।
7. मंत्री – जो सम्राट के सलाहकार थे।
उनका मानना था कि भारतीय समाज बहुत संगठित था और यहां के लोग नैतिक दृष्टि से उच्च थे। उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि भारत में लोग साधारण जीवन जीते थे और उनका जीवन संतुलित और सामूहिक था।
उसने ब्राह्मण साधुओं की प्रशंसा की और बताया कि भारतीय लोग यूनानी देवता डियोनिसियस और हेराक्लीज की पूजा करते थे। वस्तुतः यह शिव और कृष्ण की पूजा से संबंधित था।
मेगस्थनीज ने भारत के बारे में अपने लेखों में सात जातियों का जिक्र किया है, जबकि भारतीय ग्रंथों में चार ही जातियां (वर्ण) बताई गई हैं। इतिहासकार रोमिला थापर का कहना है कि मेगस्थनीज ने जो सात जातियां बताई, वो शायद सामाजिक भेदभाव के बजाय आर्थिक स्थिति पर आधारित थीं। क्योंकि समय के साथ चार वर्ण भी आर्थिक कारणों से बन गए थे। रोमिला थापर यह भी मानती हैं कि मेगस्थनीज ने भारत की यात्रा के कुछ समय बाद अपना लेख लिखा, और इस दौरान वह कुछ बातें भूल गए होंगे। या फिर हो सकता है कि बाद के लेखकों ने मेगस्थनीज के विचारों को गलत तरीके से समझा और मिस्र के समाज जैसा भारत का वर्गीकरण कर दिया, क्योंकि यूनानी इतिहासकार हेरोडोटस के अनुसार, मिस्र में भी सात वर्ग थे।
पाटलिपुत्र की भव्यता
मेगस्थनीज ने चन्द्रगुप्त मौर्य की राजधानी पाटलिपुत्र की भूरी-भूरी प्रशंसा की। उसने बताया कि यह नगर गंगा और सोन नदियों के संगम पर स्थित था और यह पूर्वी भारत का सबसे बड़ा नगर था। यह 80 स्टेडिया (16 किलोमीटर) लंबा और 15 स्टेडिया (3 किलोमीटर) चौड़ा था। इसके चारों ओर 185 मीटर चौड़ी तथा 30 हाथ गहरी खाई थी। नगर को ऊंची दीवार से घेर लिया गया था। इसमें 64 द्वार और 570 बुर्ज थे।
नगर के केंद्र में चन्द्रगुप्त मौर्य का विशाल राजमहल स्थित था। मेगस्थनीज के अनुसार, पाटलिपुत्र का महल इतनी भव्यता से बना था कि ईरान के सूसा और एकबतना के राजमहल भी उसकी तुलना में फीके पड़ते थे।
नगर का प्रशासन और चन्द्रगुप्त मौर्य की शासक क्षमता
मेगस्थनीज के विवरण से पता चलता है कि पाटलिपुत्र का प्रबंधन एक नगर परिषद द्वारा किया जाता था, जिसमें छह समितियाँ थीं, जिनमें पाँच-पाँच सदस्य थे।
1. पहली समिति – यह समिति औद्योगिक कला से जुड़ी सभी बातें देखती थी, जैसे कि फैक्ट्रियों और कारीगरी से संबंधित मुद्दे।
2. दूसरी समिति – यह समिति विदेश से आए यात्रियों का स्वागत करती थी और उनकी गतिविधियों के बारे में जानकारी इकट्ठा करती थी।
3. तीसरी समिति – यह समिति जन्म और मृत्यु का पंजीकरण करती थी, यानी लोगों के जन्म और मृत्यु के दस्तावेज तैयार करती थी।
4. चौथी समिति – यह समिति व्यापार और वाणिज्य से जुड़ी गतिविधियों पर ध्यान देती थी, जैसे बाजार और व्यापारिक कामकाजी गतिविधियाँ।
5. पाँचवी समिति – यह समिति उन उत्पादों पर नज़र रखती थी जो बनते थे, यह सुनिश्चित करती थी कि सभी उत्पाद सही तरीके से तैयार हो रहे हैं।
6. छठी समिति – इसका काम था बिक्री कर (Sales Tax) को इकट्ठा करना, यानी व्यापार से होने वाली आय पर टैक्स वसूलना।
इस तरह, हर समिति का अपना खास काम था जो समाज और व्यापार को बेहतर बनाने में मदद करता था।
मौर्य सम्राट की कर्मठता और शासन
मेगस्थनीज के विवरण से यह भी पता चलता है कि चन्द्रगुप्त मौर्य एक कर्मठ और सक्षम शासक थे। वह हमेशा अपने प्रजा के आवेदनों को सुनते थे और दंड विधान बहुत कठोर था। अपराधों की संख्या कम थी, और लोग सामान्यत: अपने घरों और संपत्ति की रखवाली नहीं करते थे। सम्राट अपनी व्यक्तिगत सुरक्षा का विशेष ध्यान रखते थे, जिससे समाज में शांति बनी रहती थी।
व्यापार और आर्थिक स्थिति
मेगस्थनीज ने मौर्यकाल के व्यापार को भी उल्लेखित किया। उसने बताया कि व्यापारियों का एक बड़ा वर्ग था और उनका समाज में एक अलग संगठन था। इससे यह स्पष्ट होता है कि मौर्यकाल में व्यापार और व्यवसाय काफी विकसित थे।
मेगस्थनीज के अवलोकनों की आलोचना
मेगस्थनीज की टिप्पणियों में कुछ विसंगतियां और कल्पनाएँ हो सकती हैं, क्योंकि वह एक बाहरी व्यक्ति थे और भारतीय संस्कृति को पूरी तरह से समझने में उन्हें कठिनाई हो सकती थी। उदाहरण के तौर पर, उन्होंने भारतीय हाथियों के बारे में जो विवरण दिया, वह अत्यधिक अतिशयोक्ति से भरा हुआ हो सकता है। साथ ही, उनकी समझ में भारतीय जाति व्यवस्था को भी पूरी तरह से नहीं समझा गया था।
हालांकि, इन आलोचनाओं के बावजूद, उनकी रिपोर्टों का ऐतिहासिक मूल्य है, क्योंकि उन्होंने एक विदेशी दृष्टिकोण से भारत का वर्णन किया है।
मेगस्थनीज का प्रभाव और धरोहर
मेगस्थनीज का कार्य केवल उस समय की ग्रीक सभ्यता तक सीमित नहीं था, बल्कि उनके विचारों ने पश्चिमी दुनिया में भारतीय समाज और संस्कृति के प्रति रुचि को उत्पन्न किया। उनके अवलोकनों ने बाद के ग्रीक और रोमन लेखकों को प्रभावित किया, जैसे स्ट्रैबो और प्लिनी द एल्डर। इन लेखकों के माध्यम से, मेगस्थनीज की टिप्पणियाँ और भारत के बारे में जानकारी यूरोप तक पहुंची।
मेगस्थनीज ने प्राचीन पश्चिम और पूर्व के बीच सांस्कृतिक आदान-प्रदान की भूमिका अदा की, जिससे दोनों सभ्यताओं के बीच बेहतर समझ विकसित हुई।
निष्कर्ष
मेगस्थनीज के विवरणों से हम चन्द्रगुप्त मौर्य के समय की राजनीति, समाज, धर्म, और आर्थिक स्थिति के बारे में कई महत्वपूर्ण जानकारियाँ प्राप्त कर सकते हैं। हालांकि, कुछ विवरणों में भ्रम हो सकता है, लेकिन इसके बावजूद इनकी ऐतिहासिक महत्ता को नकारानहीं किया जा सकता। मेगस्थनीज ने जो जानकारी दी, वह मौर्यकाल के भारत की एक झलक प्रस्तुत करती है।