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प्रतीकात्मक चित्र |
भारत पर ब्रिटिश विजय एक ऐसा प्रश्न है, जो न केवल ऐतिहासिक जिज्ञासा को उत्तेजित करता है, बल्कि इसमें छिपे रहस्यों को भी उजागर करता है। क्या ब्रिटिशों ने भारत पर आकस्मिक रूप से विजय प्राप्त की, या यह विजय एक गहरी और योजनाबद्ध प्रक्रिया का परिणाम थी? इस प्रश्न के उत्तर में निहित हैं उन घटनाओं के अनगिनत पहलू जो ब्रिटिश साम्राज्यवाद की नींव को स्पष्ट करते हैं। इस लेख में हम दोनों पक्षों पर गहन चर्चा करेंगे—क्या भारत पर ब्रिटिश विजय केवल व्यापार के साथ-साथ घटित आकस्मिक घटनाओं का परिणाम थी, या फिर यह विस्तार के उद्देश्य से योजनाबद्ध कदम थे?
आकस्मिक विजय: जॉन सीले का दृष्टिकोण
19वीं शताब्दी के प्रसिद्ध इतिहासकार जॉन सीले ने एक महत्वपूर्ण दृष्टिकोण प्रस्तुत किया था। उनके अनुसार, भारत पर ब्रिटिश विजय पूरी तरह से “आकस्मिक” थी। उन्होंने अपने ग्रंथ “एक्सपेंशन ऑफ इंग्लैंड” में लिखा कि:
“हमने भारत को अंधाधुंध और आकस्मिक रूप से प्राप्त किया, जैसे कोई किसी वस्तु को गलती से पा लेता है।”
सीले के अनुसार, ब्रिटिशों ने भारत में किसी राजनीतिक योजना के तहत प्रवेश नहीं किया था। उनका उद्देश्य केवल व्यापार और मुनाफा कमाना था। ईस्ट इंडिया कंपनी एक व्यावसायिक संस्था थी, जिसका राजनीतिक कार्यों से कोई लेना-देना नहीं था। लेकिन भारतीय राजनीतिक परिदृश्य की अराजकता और आंतरिक संघर्षों ने ब्रिटिशों को अनजाने में इस राजनीतिक खेल का हिस्सा बना दिया।
प्लासी की लड़ाई (1757) और बक्सर की लड़ाई (1764) को सीले के सिद्धांत के अनुसार “आकस्मिक विजय” के रूप में देखा जाता है। उदाहरण के लिए, प्लासी की लड़ाई में, सिराज-उद-दौला की सेना की तुलना में ब्रिटिश सेना काफी कमजोर थी। लेकिन मीर जाफर की गद्दारी और सिराज-उद-दौला की कमजोर रणनीति ने ब्रिटिशों को आकस्मिक रूप से जीत दिला दी। इसी प्रकार, बक्सर की लड़ाई में भी ब्रिटिशों ने कई भारतीय शासकों के आपसी संघर्ष का फायदा उठाया।
जॉन सीले का यह दृष्टिकोण इसलिए भी लोकप्रिय हुआ क्योंकि यह ब्रिटिश साम्राज्यवादी शासन के लिए एक नैतिक जस्टिफिकेशन प्रदान करता था। उनके अनुसार, ब्रिटिश शासक भारत में केवल व्यापार के लिए आए थे, और वे अनिच्छा से एक विशाल साम्राज्य के स्वामी बन बैठे।
योजनाबद्ध विजय: उद्देश्यपूर्ण साम्राज्यवाद
हालांकि सीले का दृष्टिकोण कुछ हद तक सही प्रतीत होता है, लेकिन इससे यह निष्कर्ष निकालना गलत होगा कि ब्रिटिश विजय पूरी तरह से आकस्मिक थी। कई इतिहासकारों ने इस तर्क का खंडन किया और इसे अपर्याप्त बताया।
डॉ. के एम पणिक्कर, एक प्रमुख भारतीय इतिहासकार, ने इस धारणा को पूरी तरह से खारिज किया। उनके अनुसार, ब्रिटिश साम्राज्यवाद पूरी तरह से योजनाबद्ध था। ब्रिटिशों का मुख्य उद्देश्य भारत के विशाल संसाधनों को अपने नियंत्रण में लेना था। जब उन्होंने देखा कि मुगल साम्राज्य कमजोर हो रहा है और स्थानीय राजाओं के बीच संघर्ष जारी है, तो उन्होंने अपनी योजना को लागू किया।
ब्रिटिशों के लिए भारत केवल एक व्यावसायिक केंद्र नहीं था, बल्कि उनके लिए यह एक सामरिक और आर्थिक दृष्टिकोण से बेहद महत्वपूर्ण था। 18वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में ब्रिटिशों ने एक स्पष्ट साम्राज्यवादी नीति अपनाई, जिसका उद्देश्य भारत पर नियंत्रण स्थापित करना था।
लॉर्ड वेलेजली और उनकी ‘सहायक संधि प्रणाली’ इसका प्रमुख उदाहरण है। वेलेजली ने भारतीय राजाओं को ब्रिटिश सेना की सुरक्षा के बदले में उनके साम्राज्य का एक बड़ा हिस्सा सौंपने के लिए बाध्य किया। इस प्रणाली का मुख्य उद्देश्य भारतीय राज्यों को कमजोर करना और उन्हें ब्रिटिश संरक्षण में लाना था। वेलेजली की इस रणनीति ने दक्षिण भारत में मराठा और मैसूर साम्राज्य को लगभग समाप्त कर दिया।
लॉर्ड डलहौज़ी के तहत ब्रिटिशों ने अपने विस्तारवादी एजेंडे को और आगे बढ़ाया। उनकी ‘डॉक्ट्रिन ऑफ लैप्स’ नीति ने कई भारतीय राज्यों को ब्रिटिश साम्राज्य में विलय करने में मदद की। डलहौज़ी ने इस नीति के तहत सतारा, झांसी और नागपुर जैसे महत्वपूर्ण राज्यों को ब्रिटिश साम्राज्य में मिलाया।
भारतीय राजनीति और ब्रिटिश अवसरवाद
यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि भारतीय राजनीति की आंतरिक कमजोरियों ने भी ब्रिटिश विजय को आसान बनाया। मुहम्मद शाह के समय में ही मुगल साम्राज्य अपनी चरमराती स्थिति में था, और मराठों, अफगानों, सिखों और अन्य क्षेत्रीय शक्तियों के बीच संघर्ष जारी था। ब्रिटिश इस स्थिति का भरपूर लाभ उठाने में सक्षम थे। भारतीय शासकों के आपसी संघर्ष और सत्ता के लिए अराजकता ने ब्रिटिशों को एक स्पष्ट रास्ता प्रदान किया। उदाहरण के लिए, मीर जाफर की गद्दारी ने ब्रिटिशों को बंगाल का नियंत्रण दिलाया, जबकि मराठों और निजाम के बीच आपसी दुश्मनी ने ब्रिटिशों को दक्षिण भारत में पैर जमाने का मौका दिया।
आकस्मिक और योजनाबद्ध विजय: एक संगम
अंततः, यह कहना गलत नहीं होगा कि ब्रिटिश विजय की प्रक्रिया में दोनों तत्व—आकस्मिक और योजनाबद्ध—शामिल थे। प्रारंभिक समय में ब्रिटिश व्यापारियों का उद्देश्य केवल व्यापारिक लाभ था, लेकिन जैसे-जैसे वे भारत की राजनीति में उलझते गए, उनका दृष्टिकोण बदलता गया। 18वीं और 19वीं शताब्दियों में ब्रिटिश अधिकारियों ने एक स्पष्ट साम्राज्यवादी नीति अपनाई और भारतीय उपमहाद्वीप पर पूरी तरह से नियंत्रण स्थापित करने के लिए विभिन्न नीतियों और रणनीतियों का सहारा लिया।
ब्रिटिश विजय की इस प्रक्रिया में न केवल सैन्य बल का इस्तेमाल हुआ, बल्कि भारतीय समाज में व्याप्त विभाजन और आंतरिक संघर्षों का भी भरपूर उपयोग किया गया। ब्रिटिशों ने ‘फूट डालो और राज करो’ की नीति को अपनाया, जिसके तहत उन्होंने भारतीय राजाओं के बीच आपसी दुश्मनी को बढ़ावा दिया और अंततः अपने साम्राज्य का विस्तार किया।
निष्कर्ष
भारत पर ब्रिटिश विजय एक जटिल और बहुआयामी प्रक्रिया थी, जिसमें आकस्मिकता और योजनाबद्धता दोनों का महत्वपूर्ण योगदान था। प्रारंभिक समय में ब्रिटिशों का उद्देश्य केवल व्यापारिक था, लेकिन जैसे ही उन्हें राजनीतिक सत्ता प्राप्त होने लगी, उन्होंने इसे योजनाबद्ध तरीके से बढ़ाने की कोशिश की।
यह कहना उचित होगा कि भारत पर ब्रिटिश विजय न तो पूरी तरह से आकस्मिक थी, और न ही पूरी तरह से योजनाबद्ध। यह एक प्रक्रिया थी, जिसमे दोनों तत्व आपस में गहराई से जुड़े थे।