आर्य कौन थे?
“आर्य” शब्द का प्रयोग प्राचीन भारतीय समाज में विभिन्न संदर्भों में किया गया है। यह शब्द संस्कृत के “आर्य” (Arya) से लिया गया है, जिसका अर्थ है ‘श्रेष्ठ’, ‘उत्कृष्ट’ या ‘आदर्श’। ऐतिहासिक रूप से, आर्य शब्द का उपयोग Indo-Aryan भाषा बोलने वाले लोगों को संदर्भित करने के लिए किया जाता है, जो भारतीय उपमहाद्वीप में प्राचीन काल में बस गए थे।
वैदिक साहित्य में आर्य उन लोगों का समूह था जिन्होंने वेदों का ज्ञान प्राप्त किया और वेदों के अनुसार जीवन यापन करते थे। इन आर्यों ने समाज में धर्म, संस्कृति और परंपराओं की नींव रखी। वे प्रमुख रूप से उत्तरी भारतीय उपमहाद्वीप में बसे थे और उनकी मुख्य पहचान उनके भाषा, धार्मिक आस्थाओं और सामाजिक संरचनाओं से थी।
आधुनिक समय में “आर्य” शब्द का अर्थ संस्कृत और हिंदू धर्म से जुड़ा हुआ है, लेकिन यह शब्द कभी-कभी विभिन्न जातीय और सांस्कृतिक संदर्भों में भी उपयोग किया जाता है, जो उन लोगों की ओर इशारा करते हैं जो भारतीय उपमहाद्वीप के प्राचीन सभ्यताओं और संस्कृतियों से संबंधित थे।
इतिहासकारों और पुरातत्वविदों के अनुसार, आर्य एक युद्धक और कृषि आधारित समाज था, जो वेदों की रचना और विभिन्न धार्मिक अनुष्ठानों में संलग्न था।

सैन्धव संस्कृति का विनाश और वैदिक सभ्यता का उदय
सैन्धव संस्कृति के समाप्त होने के बाद भारत में एक नई सभ्यता का उदय हुआ, जिसे वैदिक अथवा आर्य सभ्यता के नाम से जाना जाता है। यह सभ्यता आर्यों के आगमन और उनके धार्मिक ग्रंथों के आधार पर विकसित हुई। भारत का इतिहास एक प्रकार से आर्य जाति के इतिहास के रूप में जाना जाता है। आर्यों का इतिहास मुख्य रूप से वेदों से मिलता है, जिनमें ऋग्वेद सबसे पुराना और सर्वाधिक महत्वपूर्ण ग्रंथ है।
आर्यों का आक्रमण और सैन्धव नगरों का विनाश
यह सामान्य रूप से माना गया है कि जिन विदेशी आक्रान्ताओं ने सैन्धव नगरों को नष्ट किया, वे आर्य ही थे। ऋग्वेद में इस संघर्ष का अप्रत्यक्ष रूप से उल्लेख किया गया है। ऋग्वेद में इन्द्र को दास-दस्युओं का विनाशक कहा गया है। दास-दस्युओं के नगरों का वर्णन भी ऋग्वेद में आता है, जिनमें चौड़े (उर्वी), पाषाण-निर्मित (अश्ममयी), धातु से बने (आयसी), कुच्ची इंटों से बने (आमा) और सौ दीवारों वाले (शतभुजी) नगरों का उल्लेख है। यह वर्णन सैन्धव सभ्यता के नगरों से मेल खाता है। इसके अलावा, दास-दस्युओं के धार्मिक आचार में लिंग पूजा का विशेष स्थान था, जो सैन्धव सभ्यता में भी देखा जाता है। यह सभी तथ्य यह संकेत करते हैं कि सैन्धव संस्कृति का विनाश आर्यों के आक्रमण से हुआ था।
सैन्धव सभ्यता के दास-दस्यु
ऋग्वेद में दास-दस्युओं को ‘अकर्मन्’ (जो वैदिक क्रियाएं नहीं करते थे), ‘अदेवयुः’ (जो वैदिक देवताओं को नहीं मानते थे), ‘अयज्वन्’ (जो यज्ञ नहीं करते थे), ‘अन्यव्रत’ (जो वैदिक व्रतों का पालन नहीं करते थे), ‘मृद्धवाक्’ (जो अपरिचित भाषा बोलते थे), ‘अब्रह्मन्’ (जो श्रद्धा और धार्मिक विश्वास से रहित थे) और ‘अव्रत’ (जो व्रतों से रहित थे) कहा गया है। इन विशेषताओं को सैन्धव सभ्यता के निवासियों से भी जोड़ा जा सकता है। इससे यह स्पष्ट होता है कि ऋग्वेद में वर्णित दास-दस्यु वही लोग थे, जो सैन्धव सभ्यता से संबंधित थे।
आर्यों का मूल निवास स्थान
अब सवाल यह उठता है कि सैन्धव सभ्यता के विनाशक आर्य किस प्रदेश के निवासी थे? इस पर कई विद्वानों ने अलग-अलग मत व्यक्त किए हैं। यहाँ हम प्रमुख मतों का उल्लेख करेंगे।
भारत: आर्यों का मूल स्थान?
कुछ विद्वानों का मानना है कि आर्य भारत के ही निवासी थे। पं. गंगानाथ झा, डी. एस. त्रिवेदी, एल. डी. कल्ल और अन्य विद्वानों के अनुसार आर्यों का मूल निवास स्थान हिमालय और कश्मीर क्षेत्र था। उनका कहना था कि आर्य पहले भारत में ही थे और बाद में अन्य देशों में गए। हालांकि, यह तर्क पूरी तरह सही नहीं लगता क्योंकि सैन्धव सभ्यता, आर्य सभ्यता से भिन्न और उससे भी अधिक प्राचीन थी। यदि आर्य भारत के निवासी होते, तो वे सबसे पहले अपनी भूमि का ही आर्याकरण करते। इसके अलावा, दक्षिण भारत आज भी पूरी तरह आर्यभाषी नहीं है, जो इस सिद्धांत के खिलाफ एक मजबूत प्रमाण है। इसके अलावा, बलूचिस्तान में ब्राहुई भाषा का अस्तित्व इस बात को और मजबूत करता है कि भारत केवल आर्यों का मूल स्थान नहीं था।
उत्तरी ध्रुव: आर्यों का आदि स्थान?
बाल गंगाधर तिलक ने यह सिद्धांत प्रस्तुत किया कि आर्य उत्तरी ध्रुव के निवासी थे। उनका कहना था कि ऋग्वेद में दीर्घकालीन ‘उषा’ यानी सूर्य की स्तुति की गई है, जो केवल उत्तरी ध्रुव में संभव है। महाभारत में एक जगह सुमेरू पर्वत का उल्लेख मिलता है, जहां 6 महीने का दिन तथा 6 महीने की रात होती है। यहां भी उत्तरी ध्रुव की ओर ही संकेत है। लेकिन तिलक का यह सिद्धांत कोरे साहित्य पर आधारित था और इसका कोई ठोस प्रमाण नहीं है। ऋग्वेद में ‘सप्त सैन्धव प्रदेश’ को ‘देवताओं द्वारा निर्मित’ कहा गया है, जिससे यह संकेत मिलता है कि आर्य यदि उत्तरी ध्रुव के निवासी होते, तो इसका उल्लेख वे अवश्य करते।
एशिया: आर्यों का मूल स्थान?
कुछ विद्वान, जैसे मैक्समूलर और एडवर्ड मेयर, ने मध्य एशिया को आर्यों का मूल स्थान माना है। उनका मानना था कि आर्य मध्य एशिया से होते हुए पंजाब और मेसोपोटामिया पहुंचे। हालांकि, इस सिद्धांत का समर्थन करने वाले कुछ विद्वान पामीर के पठार को भी आर्यों का आदि देश मानते हैं।
कुछ विद्वान इस विचार से सहमत नहीं हैं कि आर्य एशिया से आए थे। उनका कहना है कि भारोपीय भाषा परिवार की भाषाएं, जो कि यूरोप और एशिया के बड़े हिस्से में बोली जाती हैं, उनके विस्तार और विकास को देखकर यह लगता है कि आर्य शायद एशिया से नहीं, बल्कि यूरोप से आए थे।
यह तर्क इस पर आधारित है कि यूरोप में इस भाषा परिवार के मुहावरे और शब्द अधिक प्रचलित हैं, और इन भाषाओं के विकास का रास्ता यूरोप से जुड़ा हुआ है। इसलिए, उनका कहना है कि आर्यों का असली घर यूरोप हो सकता है, न कि एशिया।
यूरोप: आर्य कहां से आए थे?
कई विद्वान यह मानते हैं कि आर्य यूरोप के विभिन्न हिस्सों से आए थे। जर्मनी के विद्वान पेनका और हर्ट ने जर्मनी को आर्यों का मूल स्थान माना। उनका कहना था कि यहां के लोग प्राचीन भारोपीय भाषा बोलते थे, और यहां से प्राचीन वस्तुएं मिली हैं। हालांकि, यह तर्क पूरी तरह सही नहीं है, क्योंकि ऐसी ही वस्तुएं अन्य क्षेत्रों, जैसे दक्षिणी रूस और पोलैंड, से भी मिली हैं।
हंगरी और दक्षिणी रूस: आर्यों का मूल स्थान?
कुछ विद्वान, जैसे गाइल्स, ने हंगरी या डेन्यूब नदी घाटी को आर्यों का मूल स्थान माना। उनके अनुसार, हंगरी में जलवायु, कृषि और पशुपालन की विशेषताएं आर्य सभ्यता से मेल खाती हैं। हालांकि, यह सिद्धांत भी तर्कसंगत नहीं लगता, क्योंकि इसी प्रकार की विशेषताएं अन्य स्थानों में भी पाई जाती हैं।
इसके विपरीत, दक्षिणी रूस को आर्यों का मूल स्थान मानने वाले विद्वान, जैसे मेयर और पीक, का कहना है कि यहां की पुरातात्विक सामग्री और फिनो-उग्रीयन भाषाओं के अध्ययन से यह साबित होता है कि आर्य इसी क्षेत्र से भारत और अन्य स्थानों की ओर गए। यहां से अश्व के अवशेष भी मिले हैं, जो आर्य सभ्यता के महत्वपूर्ण प्रतीक थे।
निष्कर्ष
इस सभी चर्चा से यह स्पष्ट होता है कि आर्य सभ्यता का सैन्धव संस्कृति के विनाश से गहरा संबंध था। सैन्धव सभ्यता का विनाश आर्य आक्रमण से हुआ था, लेकिन यह कहना कि आर्य पूरी तरह विदेशी आक्रान्ता थे, सही नहीं होगा। आर्य संभवतः भारत के मूल निवासी थे और धीरे-धीरे पूरे उपमहाद्वीप में फैल गए। सैन्धव सभ्यता का अंत आर्य सभ्यता के उदय का एक महत्वपूर्ण कदम था, और यह भारतीय उपमहाद्वीप की सांस्कृतिक और धार्मिक परिवर्तन की प्रक्रिया का हिस्सा था।
Select References
1. Upinder Singh – A History of Ancient and Early Medieval India: From the Stone Age to the 12th Century.
2. Romila Thapar – The Theory of Aryan Race and India: History and Politics.
3. Sharada Sugirtharajah – Imagining Hinduism: A Postcolonial Perspective
4. Dwijendra Narayan Jha – Early India: A Concise History