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राकेश शर्मा |
अंतरिक्ष में भारत का स्वप्निल विजयगान
अंतरिक्ष में भारत का सपना
1970 के दशक तक, भारत ने अंतरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र में अपने कदम जमाने शुरू कर दिए थे। 1969 में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) की स्थापना हुई और 1975 में भारत ने अपना पहला उपग्रह आर्यभट्ट लॉन्च किया। लेकिन उस समय अंतरिक्ष यात्रा के क्षेत्र में भारत का योगदान सीमित था। इस बीच, भारत के सोवियत संघ के साथ अच्छे संबंध थे, और सोवियत संघ ने अपने इंटरकॉसमॉस कार्यक्रम के तहत कई मित्र देशों को अंतरिक्ष में अपने अंतरिक्ष यात्रियों को भेजने का अवसर दिया था। भारत भी इसका हिस्सा बनने की तैयारी कर रहा था।
राकेश शर्मा का चयन
1982 में, ISRO ने अंतरिक्ष में भारतीय अंतरिक्ष यात्री भेजने के लिए सोवियत संघ के साथ एक समझौता किया। इसके बाद अंतरिक्ष यात्रियों के चयन की प्रक्रिया शुरू हुई। भारतीय वायुसेना के पायलटों में से 50 फाइटर पायलट को इस मिशन के लिए संभावित उम्मीदवार चुना गया। इसमें से राकेश शर्मा और उनके सहयोगी विंग कमांडर रविश मल्होत्रा को अंतिम रूप से चुना गया। राकेश शर्मा का भारतीय वायुसेना में एक बहादुर और कुशल टेस्ट पायलट के रूप में पहले ही नाम हो चुका था। वे MIG-21 और MIG-29 जैसे फाइटर जेट्स के परीक्षण में शामिल थे।
1966 में एनडीए पास कर राकेश शर्मा ने इंडियन एयर फोर्स कैडेट के रूप में अपना करियर शुरू किया और 1970 में भारतीय वायु सेना को ज्वाइन किया। इसके बाद उनकी किस्मत ने एक महत्वपूर्ण मोड़ लिया। मात्र 21 साल की उम्र में भारतीय वायु सेना में शामिल होने के बाद, राकेश शर्मा लगातार ऊंचाइयों की ओर बढ़ते गए, अपने समर्पण और साहस के दम पर उन्होंने नई उपलब्धियां हासिल कीं। यहीं से उनकी अंतरिक्ष यात्रा की ओर पहला कदम रखा गया। पाकिस्तान से हुए 1971 के युद्ध में 21 मिशन उड़ाए थे।
अंतरिक्ष यात्री के रूप में चयन के बाद दोनों भारतीय अंतरिक्ष यात्री राकेश शर्मा और रवीश मल्होत्रा रूस भेजे गए। अंतरिक्ष में जाने से एक साल पहले राकेश शर्मा और रवीश मल्होत्रा मॉस्को से लगभग 70 किलोमीटर दूर स्थित ‘स्टार सिटी’ गए थे, जो अंतरिक्ष यात्रियों के प्रशिक्षण के लिए विशेष रूप से बनाया गया केंद्र था। यहीं पर उन्होंने अपनी ऐतिहासिक अंतरिक्ष यात्रा के लिए गहन प्रशिक्षण प्राप्त किया। प्रशिक्षण में स्पेससूट पहनने से लेकर स्पेस स्टेशन पर प्रयोगों के संचालन तक की सभी महत्वपूर्ण चीजें शामिल थीं। यह एक लंबा और कठिन प्रशिक्षण था, जहां केवल मानसिक और शारीरिक रूप से मजबूत व्यक्ति ही टिक सकते थे। रवीश मल्होत्रा को राकेश शर्मा के विकल्प के तौर पर रखा गया था।
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यूरी माल्यशेव और गेनाडी सट्रेकालोव के साथ बीच में राकेश शर्मा |
सोयूज T-11 मिशन: भारत का अंतरिक्ष में प्रवेश
3 अप्रैल 1984 को, 35 वर्षीय राकेश शर्मा अपने सोवियत सहयोगियों 42 वर्षीय यूरी माल्यशेव और 43 वर्षीय गेनाडी सट्रेकालोव के साथ सोयूज T-11 अंतरिक्ष यान में बैठकर कज़ाखस्तान के बैकोनूर कॉस्मोड्रोम से अंतरिक्ष के लिए रवाना हुए। यह भारत के लिए गर्व का क्षण था, क्योंकि पहली बार कोई भारतीय अंतरिक्ष में जा रहा था। सोयूज T-11 को सल्युत-7 अंतरिक्ष स्टेशन पर डॉक किया गया, जहाँ उन्होंने करीब 8 दिनों तक विभिन्न वैज्ञानिक प्रयोग किए।
अंतरिक्ष में प्रयोग और योगदान
राकेश शर्मा के इस मिशन का मुख्य उद्देश्य अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में सहयोग और अध्ययन करना था। उन्होंने अंतरिक्ष स्टेशन से भारत की तस्वीरें खींचीं, जो पर्यावरणीय और भूगर्भीय अध्ययन के लिए महत्वपूर्ण थीं। इसके अलावा, उन्होंने शून्य गुरुत्वाकर्षण में मानव शरीर पर पड़ने वाले प्रभावों का अध्ययन किया। इसके तहत उन्होंने भारतीय वैज्ञानिकों द्वारा तैयार किए गए प्रयोगों को संचालित किया। इन प्रयोगों में शरीर की जैविक और मांसपेशीय प्रतिक्रिया का अध्ययन किया गया।
उन्होंने माइक्रोग्रैविटी में पदार्थ विज्ञान के अध्ययन में भी योगदान दिया, जिसमें विभिन्न धातुओं और सामग्रियों के व्यवहार को समझा गया। इस शोध से प्राप्त जानकारी भविष्य में अंतरिक्ष में निर्माण और सामग्री विज्ञान के विकास के लिए उपयोगी साबित हुई।
अंतरिक्ष स्टेशन सल्युत-7 पर रहते हुए उन्होंने 43 प्रयोग किए, जिनमें से कई भारत के वैज्ञानिक अनुसंधानों के लिए महत्वपूर्ण थे।
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प्रधानमन्त्री इन्दिरा गांधी राकेश शर्मा के साथ |
इंदिरा गांधी से बातचीत: “सारे जहाँ से अच्छा”
इस मिशन का सबसे यादगार पल वह था जब राकेश शर्मा ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से अंतरिक्ष से सीधा संवाद किया। जब इंदिरा गांधी ने उनसे पूछा, “आपको अंतरिक्ष से भारत कैसा दिखता है?” तो राकेश शर्मा ने अत्यधिक गर्व के साथ उत्तर दिया, “सारे जहाँ से अच्छा” यह वाक्य आज भी भारत के अंतरिक्ष इतिहास का एक स्वर्णिम क्षण माना जाता है।
पृथ्वी पर सफल वापसी
11 अप्रैल 1984 को, राकेश शर्मा और उनके सहयोगियों ने सुरक्षित रूप से पृथ्वी पर वापसी की। उनका यह मिशन पूरी तरह सफल रहा। शर्मा ने अंतरिक्ष में 7 दिन, 21 घंटे और 40 मिनट बिताए थे। उनकी यह यात्रा केवल एक तकनीकी उपलब्धि नहीं थी, बल्कि यह भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र में एक प्रेरणा बनी। वे भारत के पहले और दुनिया के 138वें अंतरिक्ष यात्री बने। उनकी इस अद्वितीय उपलब्धि से प्रेरित होकर भारत सरकार ने उन्हें ‘अशोक चक्र’ से सम्मानित किया। इसके साथ ही, सोवियत सरकार ने भी उनकी उपलब्धि को सराहते हुए उन्हें ‘हीरो ऑफ सोवियत यूनियन’ का प्रतिष्ठित सम्मान प्रदान किया।
राकेश शर्मा न केवल अंतरिक्ष में जाने वाले पहले भारतीय थे, बल्कि वह पहले व्यक्ति भी थे जिन्होंने वहां योग का अभ्यास किया. उन्होंने यह जानने की कोशिश की कि क्या योग गुरुत्वाकर्षण की कमी को संभालने में मदद कर सकता है. अपनी यात्रा के दौरान, उन्होंने जीरो ग्रेविटी में तीन योग सेशन किए. पहला 25 मिनट का, दूसरा 35 मिनट का और तीसरा 1 घंटे का था. इस अनूठे प्रयोग से उन्होंने अंतरिक्ष में शरीर के नियंत्रण और संतुलन के बारे में महत्वपूर्ण अनुभव प्राप्त किए.
भारत लौटने पर राकेश शर्मा को देशभर में नायक की तरह सम्मानित किया गया। उन्हें अशोक चक्र से सम्मानित किया गया, जो भारत का सर्वोच्च शांतिकालीन वीरता पुरस्कार है। उनके साथ उनके सहयोगी विंग कमांडर रविश मल्होत्रा को भी उनके उत्कृष्ट प्रशिक्षण और योगदान के लिए सम्मानित किया गया। वहीं सोवियत संघ ने अपने सर्वोच्च अवार्ड HERO OF THE SOVIET UNION से उन्हें नवाजा।
राकेश शर्मा, जो 1984 में अंतरिक्ष यात्रा पर गए थे, से अक्सर लोग यह सवाल पूछा करते थे कि क्या उन्होंने अंतरिक्ष में भगवान से मुलाकात की। उनके जवाब में हमेशा यही होता था, “नहीं, मुझे वहां भगवान नहीं मिले।”
अब, जब उनकी अंतरिक्ष यात्रा को चार दशक का समय बीत चुका है, उनके प्रशंसक उनकी इस उपलब्धि को अपनी कल्पनाओं से जोड़ने लगे हैं। राकेश शर्मा कहते हैं, “आजकल जब महिलाएं अपने बच्चों से मेरा परिचय कराती हैं, तो वे अक्सर कहती हैं, ‘ये अंकल चांद पर गए थे।'”
यह किस्सा उनकी अद्वितीय अंतरिक्ष यात्रा की छवि को और भी दिलचस्प बना देता है, जहां वास्तविकता और कल्पना एक साथ घुल मिल जाती हैं।
ऐतिहासिक महत्व और विरासत
राकेश शर्मा की अंतरिक्ष यात्रा भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के लिए एक प्रेरणास्त्रोत बनी। उनकी इस यात्रा ने भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र में आत्मविश्वास जगाया और इसरो की क्षमता को बढ़ाया। इसके बाद से भारत ने न केवल सफलतापूर्वक कई उपग्रह लॉन्च किए, बल्कि अपने स्वतंत्र अंतरिक्ष अभियानों को भी विकसित किया। राकेश शर्मा के इस मिशन के बाद भारत ने अपनी अंतरिक्ष यात्रा में नए आयाम स्थापित किए और एक मजबूत अंतरिक्ष शक्ति के रूप में उभरा।
उस वक्त न्यूयॉर्क टाइम्स ने यह भविष्यवाणी की थी कि “भारत के पास लंबे समय तक अपना मानवयुक्त अंतरिक्ष कार्यक्रम नहीं होगा, और श्री शर्मा की अंतरिक्ष यात्रा शायद लंबे समय तक किसी भारतीय की आखिरी यात्रा होगी।” आज, 40 साल बाद भी, राकेश शर्मा अंतरिक्ष में जाने वाले अकेले भारतीय हैं। (हालांकि, भारतीय मूल की अमेरिकी अंतरिक्ष यात्री कल्पना चावला बाद में अंतरिक्ष में गईं, लेकिन 2003 में कोलंबिया अंतरिक्ष शटल दुर्घटना में उनका निधन हो गया।)
आज भारत का महत्वाकांक्षी गगनयान कार्यक्रम भी राकेश शर्मा की विरासत से प्रेरित है, जिसमें भारत अपने दम पर मानवयुक्त अंतरिक्ष मिशन करने की तैयारी कर रहा है। यह योजना भारत के अंतरिक्ष अनुसंधान की दिशा में एक बड़ा कदम है और भविष्य में और भी बड़े सपनों की नींव रखती है।
राकेश शर्मा उन 500 से ज्यादा भाग्यशाली लोगों में शामिल हैं, जिन्होंने 1961 में यूरी गागरिन के पहली बार पृथ्वी की परिक्रमा करने के बाद से अंतरिक्ष की यात्रा की है। राकेश शर्मा का नाम आज भी उन महान व्यक्तियों में लिया जाता है जिन्होंने न केवल भारतीय विज्ञान और तकनीकी को नई ऊंचाइयों पर पहुँचाया, बल्कि विश्व पटल पर भारत की ध्वजा फहराई। उनकी अंतरिक्ष यात्रा का यह सफर भारत की वैज्ञानिक शक्ति और अंतरिक्ष में अग्रणी बनने की यात्रा का एक महत्वपूर्ण अध्याय है।