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9 अगस्त, 1942 का अख़बार |
भारत छोड़ो आंदोलन: एक विश्लेषणात्मक अध्ययन
भारत छोड़ो आंदोलन, जिसे “अगस्त क्रांति” भी कहा जाता है, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक निर्णायक अध्याय था। 8 अगस्त 1942 को महात्मा गांधी द्वारा शुरू किया गया यह आंदोलन ब्रिटिश शासन के खिलाफ एक व्यापक जन आंदोलन था। इस लेख में हम आंदोलन के कारण, इसकी शुरुआत, स्वरूप, प्रसार, प्रभाव, सीमाएँ और महत्व पर गहराई से चर्चा करेंगे।
1. आंदोलन के कारण
क) द्वितीय विश्व युद्ध और भारतीय असंतोष:
द्वितीय विश्व युद्ध की शुरुआत में ब्रिटिश सरकार ने भारत को बिना किसी परामर्श के युद्ध में शामिल कर लिया। भारतीय नेताओं और जनता ने इसे ब्रिटिश साम्राज्यवाद का प्रतीक माना। ब्रिटेन ने भारतीय सेना और आर्थिक संसाधनों का उपयोग तो किया, लेकिन भारतीयों को उनकी स्वतंत्रता देने के बारे में कोई ठोस वादा नहीं किया। इससे भारतीयों में गहरा असंतोष पैदा हुआ।
विशेषज्ञों के अनुसार, इस असंतोष की जड़ें भारत के प्रति ब्रिटिश सरकार के रवैये में थीं, जो केवल भारत को एक उपनिवेश के रूप में देखती थी और भारतीयों की स्वतंत्रता की आकांक्षाओं को समझने में असफल रही। इस परिस्थिति में भारतीय नेताओं ने महसूस किया कि अब समय आ गया है जब उन्हें ब्रिटिश शासन से स्वतंत्रता के लिए निर्णायक कदम उठाना होगा।
ख) क्रिप्स मिशन की असफलता:
मार्च 1942 में ब्रिटिश सरकार ने सर स्टैफोर्ड क्रिप्स को भारत भेजा ताकि वे भारतीय नेताओं के साथ समझौता कर सकें। क्रिप्स मिशन का प्रस्ताव था कि युद्ध के बाद भारत को डोमिनियन का दर्जा दिया जाएगा, लेकिन इस प्रस्ताव में पूर्ण स्वतंत्रता का कोई स्पष्ट आश्वासन नहीं था। भारतीय नेताओं ने इस प्रस्ताव को खारिज कर दिया।
क्रिप्स मिशन की विफलता ने भारतीय नेताओं को यह स्पष्ट कर दिया कि ब्रिटिश सरकार भारतीयों की स्वतंत्रता की आकांक्षाओं को गंभीरता से नहीं ले रही है। इस असफलता ने गांधी जी को “करो या मरो” का नारा देने और भारत छोड़ो आंदोलन शुरू करने के लिए प्रेरित किया।
ग) ब्रिटिश शासन के प्रति बढ़ता असंतोष:
ब्रिटिश शासन के अत्याचार, आर्थिक शोषण, और विभाजनकारी नीतियाँ भी आंदोलन का एक प्रमुख कारण थीं। ब्रिटिश शासन के दौरान भारतीयों के साथ द्वितीय श्रेणी के नागरिकों जैसा व्यवहार किया जाता था। किसानों, मजदूरों और निम्न वर्ग के लोगों पर अत्यधिक कर लगाए जाते थे, जिससे उनके जीवन स्तर में गिरावट आई।
इसके अलावा, ब्रिटिश प्रशासनिक नीतियाँ भारतीयों के बीच विभाजन को बढ़ावा देने के उद्देश्य से बनाई गई थीं, जिससे भारतीय समाज में असंतोष और विद्रोह की भावना और भी मजबूत हो गई। इस संदर्भ में, भारत छोड़ो आंदोलन भारतीयों के लिए ब्रिटिश साम्राज्यवाद से स्वतंत्रता प्राप्त करने का अंतिम और निर्णायक प्रयास बन गया।
घ) जापानी हमले का डर:
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जापान का एशिया में तेजी से प्रसार और भारतीय सीमाओं के पास उनकी आक्रमकता ने भारतीयों के भीतर भय का माहौल पैदा कर दिया था। ब्रिटिश भारत में भी इस बात की चिंता बढ़ने लगी थी कि यदि जापान भारत पर हमला करता है, तो ब्रिटिश सरकार की नीतियों के कारण भारतीयों को उसकी रक्षा के लिए तैयार नहीं किया गया है। इस डर के माहौल ने भारतीयों को स्वतंत्रता की मांग और अधिक जोर देने के लिए प्रेरित किया, ताकि वे अपनी सुरक्षा और भविष्य के लिए खुद निर्णय ले सकें।
2. आंदोलन की शुरुआत
भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत 8 अगस्त 1942 को हुई, जब बंबई (अब मुंबई) के गोवालिया टैंक मैदान (अब अगस्त क्रांति मैदान) में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की बैठक में महात्मा गांधी ने भारत छोड़ो प्रस्ताव प्रस्तुत किया। इस प्रस्ताव में गांधी जी ने “करो या मरो” का नारा देते हुए भारतीयों से ब्रिटिश शासन के खिलाफ खुला विद्रोह करने का आह्वान किया।
गांधी जी ने इस आंदोलन के माध्यम से भारतीयों से आग्रह किया कि वे ब्रिटिश शासन के खिलाफ असहयोग करें, सरकारी संस्थानों का बहिष्कार करें, और हर संभव तरीके से ब्रिटिश शासन को कमजोर करें। इस प्रस्ताव के पारित होते ही ब्रिटिश सरकार ने तुरंत कार्रवाई की और महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू, सरदार पटेल सहित कांग्रेस के सभी प्रमुख नेताओं को गिरफ्तार कर लिया। इसके बावजूद, आंदोलन पूरे देश में फैल गया और इसे व्यापक जनसमर्थन मिला।
3. आंदोलन की प्रकृति
क) अहिंसक विरोध और सविनय अवज्ञा:
महात्मा गांधी ने इस आंदोलन को अहिंसक बनाए रखने पर जोर दिया। उनके विचार में, अहिंसा ही वह ताकत थी जो ब्रिटिश शासन को मजबूर कर सकती थी कि वे भारत को स्वतंत्रता दें। गांधी जी ने भारतीयों को सरकारी संस्थानों, अदालतों, और विद्यालयों से बहिष्कार करने और ब्रिटिश प्रशासन के खिलाफ सविनय अवज्ञा का पालन करने का आग्रह किया।
ख) व्यापक जन समर्थन:
भारत छोड़ो आंदोलन का एक महत्वपूर्ण पहलू यह था कि इसमें समाज के हर वर्ग ने भाग लिया। किसानों, मजदूरों, छात्रों, और महिलाओं ने इस आंदोलन को अपना पूरा समर्थन दिया। इस आंदोलन ने भारतीय समाज को एकजुट किया और सभी वर्गों, धर्मों, और जातियों के लोग एकजुट होकर स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करने के लिए तैयार हुए।
ग) स्थानीय विद्रोह और हिंसक घटनाएं:
हालांकि गांधी जी ने अहिंसा का पालन करने की अपील की थी, लेकिन आंदोलन के दौरान कई जगहों पर हिंसा भी हुई। बंगाल, बिहार, और उत्तर प्रदेश में कई स्थानों पर रेलवे स्टेशन, टेलीफोन लाइनें, और सरकारी कार्यालयों को निशाना बनाया गया। ब्रिटिश सरकार ने इन हिंसक घटनाओं को आंदोलन के खिलाफ कठोर कार्रवाई करने का बहाना बना लिया।
4. आंदोलन का प्रसार
भारत छोड़ो आंदोलन पूरे देश में तेजी से फैल गया। प्रमुख शहरों से लेकर छोटे-छोटे गांवों तक, हर जगह लोग ब्रिटिश शासन के खिलाफ विद्रोह करने के लिए उठ खड़े हुए। आंदोलन का प्रसार इस प्रकार हुआ:
क) प्रमुख शहरी केंद्र:
बंबई, दिल्ली, कलकत्ता, पटना और बनारस जैसे प्रमुख शहर आंदोलन के प्रमुख केंद्र बने। इन शहरों में बड़े पैमाने पर प्रदर्शन, हड़तालें और सरकारी संस्थानों का बहिष्कार हुआ।
ख) ग्रामीण क्षेत्रों में आंदोलन:
आंदोलन का प्रसार केवल शहरी क्षेत्रों तक सीमित नहीं रहा, बल्कि ग्रामीण क्षेत्रों में भी यह तेजी से फैल गया। किसानों और ग्रामीण जनता ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ अपने असंतोष को व्यक्त किया।
ग) युवाओं और छात्रों की भागीदारी:
युवाओं और छात्रों ने इस आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने स्कूलों और कॉलेजों का बहिष्कार किया और बड़े पैमाने पर ब्रिटिश शासन के खिलाफ प्रदर्शन किए।
5. क्षेत्रीय भागीदारी
भारत छोड़ो आंदोलन में विभिन्न क्षेत्रों और राज्यों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। आंदोलन की व्यापकता और उसकी गहराई को समझने के लिए विभिन्न राज्यों और क्षेत्रों की भागीदारी को देखना आवश्यक है:
क) बंगाल:
बंगाल में भारत छोड़ो आंदोलन का जोरदार समर्थन मिला। यहाँ के नेताओं ने स्थानीय स्तर पर संगठनों का निर्माण किया और ब्रिटिश विरोधी गतिविधियों को अंजाम दिया। बंगाल में छात्रों, श्रमिकों और किसानों ने बड़े पैमाने पर इस आंदोलन में भाग लिया, और कई स्थानों पर हिंसक घटनाएं भी हुईं।
ख) बिहार:
बिहार आंदोलन के प्रमुख केंद्रों में से एक था। जयप्रकाश नारायण और डॉ. राजेंद्र प्रसाद जैसे नेताओं ने यहां आंदोलन का नेतृत्व किया। बिहार के ग्रामीण इलाकों में आंदोलन ने गहरी पैठ बनाई, जहां किसानों और मजदूरों ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ विद्रोह किया।
ग) उत्तर प्रदेश:
उत्तर प्रदेश में भी आंदोलन ने व्यापक प्रभाव डाला। यहाँ के प्रमुख शहरों जैसे बनारस, इलाहाबाद, और लखनऊ में बड़े पैमाने पर प्रदर्शन और हड़तालें हुईं। ग्रामीण क्षेत्रों में भी आंदोलन का प्रसार हुआ, और कई स्थानों पर स्थानीय विद्रोह और संघर्ष हुए।
घ) महाराष्ट्र:
महाराष्ट्र के शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में आंदोलन का प्रभाव देखा गया। बंबई (मुंबई) में आंदोलन की शुरुआत हुई और इस शहर ने आंदोलन का केंद्रबिंदु बना। महाराष्ट्र के ग्रामीण क्षेत्रों में भी आंदोलन ने जोर पकड़ा, और कई किसान और मजदूर आंदोलन में शामिल हुए।
ङ) गुजरात:
गुजरात में सरदार वल्लभभाई पटेल और अन्य नेताओं ने आंदोलन का नेतृत्व किया। गुजरात के विभिन्न हिस्सों में आंदोलन का जोरदार समर्थन मिला और लोगों ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ व्यापक विरोध प्रदर्शन किए।
च) दक्षिण भारत:
दक्षिण भारत में भी आंदोलन का प्रभाव देखा गया, हालांकि यह उत्तरी भारत की तुलना में थोड़ा कम था। मद्रास (अब चेन्नई), बंगलौर, और केरल में छात्रों और युवाओं ने आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई और ब्रिटिश शासन के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किए।
5. आंदोलन का प्रभाव
क) ब्रिटिश शासन पर दबाव:
भारत छोड़ो आंदोलन ने ब्रिटिश शासन को गहरी चुनौती दी। आंदोलन के परिणामस्वरूप, ब्रिटिश सरकार को यह महसूस हुआ कि अब भारत में उनका शासन स्थायी नहीं रह सकता। आंदोलन ने ब्रिटिश सरकार को भारतीय नेताओं के साथ वार्ता के लिए मजबूर किया।
ख) भारतीय समाज की जागरूकता:
यह आंदोलन भारतीय समाज को स्वतंत्रता की दिशा में जागरूक करने में सफल रहा। इसने भारतीय जनमानस के भीतर स्वतंत्रता के प्रति एक दृढ़ संकल्प को मजबूत किया।
ग) अंतर्राष्ट्रीय जनमत:
भारत छोड़ो आंदोलन ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी भारत की स्वतंत्रता की मांग को बल दिया। दुनिया के विभिन्न हिस्सों में इस आंदोलन को लेकर सहानुभूति और समर्थन बढ़ा, जिसने ब्रिटिश सरकार पर भारत को स्वतंत्रता देने के लिए दबाव डाला।
घ) भारतीय राजनेताओं की प्रतिष्ठा में वृद्धि:
आंदोलन ने भारतीय नेताओं, विशेषकर महात्मा गांधी की प्रतिष्ठा को और भी ऊंचा किया। गांधी जी की नेतृत्व क्षमता और उनकी अहिंसक प्रतिरोध की नीति ने उन्हें भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के नायक के रूप में स्थापित किया।
6. आंदोलन की सीमाएं
क) नेतृत्व की कमी:
आंदोलन के शुरुआती दिनों में ही गांधी जी और कांग्रेस के अन्य प्रमुख नेताओं की गिरफ्तारी से आंदोलन का नेतृत्व शून्य हो गया। इससे आंदोलन को संगठित और निर्देशित करने में कठिनाई हुई।
ख) हिंसात्मक घटनाएं:
हालांकि गांधी जी ने अहिंसा पर जोर दिया था, लेकिन आंदोलन के दौरान कई जगहों पर हिंसा की घटनाएं हुईं। इससे आंदोलन की नैतिकता पर प्रश्न उठे और कई स्थानों पर जन समर्थन में कमी आई।
ग) असंगठित जन समर्थन:
आंदोलन में व्यापक जन समर्थन था, लेकिन इसे एक सुसंगठित रूप देने में कठिनाई हुई। विभिन्न क्षेत्रों में आंदोलन की दिशा और उद्देश्य में भिन्नता थी, जिससे इसकी प्रभावशीलता प्रभावित हुई।
7. आंदोलन का महत्व
क) स्वतंत्रता संग्राम में निर्णायक मोड़:
भारत छोड़ो आंदोलन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का अंतिम और निर्णायक चरण था। इस आंदोलन ने ब्रिटिश सरकार को स्पष्ट संदेश दिया कि भारतीय जनता अब किसी भी प्रकार के समझौते के लिए तैयार नहीं है और केवल पूर्ण स्वतंत्रता ही उनका अंतिम लक्ष्य है।
ख) राष्ट्रीय एकता की भावना:
इस आंदोलन ने भारतीय समाज के सभी वर्गों को एकजुट किया और उनके भीतर राष्ट्रीयता की भावना को प्रबल किया। आंदोलन ने विभिन्न जातियों, धर्मों और क्षेत्रों के लोगों को एक साझा उद्देश्य के लिए एक साथ लाया।
ग) स्वतंत्रता की प्राप्ति:
हालांकि यह आंदोलन तुरंत सफल नहीं हुआ, लेकिन इसने स्वतंत्रता संग्राम को गति दी और अंततः 1947 में भारत की स्वतंत्रता का मार्ग प्रशस्त किया।
घ) भारतीय नेताओं की नई पीढ़ी का उभार:
भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान कई युवा नेताओं का उभार हुआ, जिन्होंने भारतीय राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उदाहरण के लिए, जयप्रकाश नारायण, राम मनोहर लोहिया, और अच्युत पटवर्धन जैसे युवा नेताओं ने आंदोलन के दौरान साहसिक कदम उठाए और बाद में भारतीय राजनीति में एक नई दिशा दी। इन नेताओं ने स्वतंत्रता के बाद समाजवादी और जनवादी आंदोलनों को आगे बढ़ाया।
8. निष्कर्ष
भारत छोड़ो आंदोलन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण और निर्णायक अध्याय था। इस आंदोलन ने न केवल ब्रिटिश शासन के प्रति भारतीयों की असंतोष को आवाज दी, बल्कि स्वतंत्रता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम भी साबित हुआ। महात्मा गांधी के नेतृत्व में चलाए गए इस आंदोलन ने भारतीय समाज को एकजुट किया और उन्हें स्वतंत्रता के लिए निर्णायक रूप से संघर्ष करने के लिए प्रेरित किया।
हालांकि आंदोलन के दौरान हिंसात्मक घटनाएं और नेतृत्व की कमी जैसी चुनौतियां सामने आईं, लेकिन इसका समग्र प्रभाव भारतीय स्वतंत्रता संग्राम पर अमिट रहा। आंदोलन ने ब्रिटिश सरकार को यह एहसास कराया कि भारत में उनका शासन अब लंबे समय तक नहीं चल सकता, और अंततः इसने 1947 में भारतीय स्वतंत्रता की प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त किया।
भारत छोड़ो आंदोलन ने भारतीय समाज के भीतर राष्ट्रीयता की भावना को और भी प्रबल किया और एक ऐसी पीढ़ी को जन्म दिया जो स्वतंत्रता के बाद भारतीय लोकतंत्र के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इस प्रकार, यह आंदोलन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है, जिसने भारतीय जनता को उनकी स्वतंत्रता की दिशा में निर्णायक रूप से आगे बढ़ाया।