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नादिरशाह |
मुग़ल साम्राज्य का पतन और सीमाओं की असुरक्षा
औरंगज़ेब के शासनकाल में सीमाओं की सुरक्षा
औरंगज़ेब के शासनकाल के दौरान उत्तर-पश्चिमी सीमा की सुरक्षा पर विशेष ध्यान दिया गया था। उन्होंने इस क्षेत्र के काबुल प्रांत को अच्छी तरह से संचालित रखा, जहां के लोग नियमित रूप से कर चुकाते थे। उत्तर-पश्चिम के कबीलाई लोग शांतिपूर्ण स्थिति में थे और उन्हें नियमित रूप से सब्सिडी दी जाती थी। भारत की ओर जाने वाली सड़कें खुली रखी जाती थीं, और काबुल और दिल्ली के बीच राजनीतिक सूचनाओं का तेज संचार बना रहता था।
1707 के बाद काबुल का बिगड़ता प्रशासन और सुरक्षा की उपेक्षा
1707 में प्रिंस मुअज्ज़म के काबुल से प्रस्थान के बाद, काबुल और गज़नी का प्रशासन शिथिल हो गया। इसके बाद, मुग़ल साम्राज्य की आंतरिक कमजोरी साफ दिखने लगी, जिससे उत्तर-पश्चिमी सीमा की रक्षा कमजोर हो गई। वहीं, गुजरात और मालवा को मराठों के हमलों से बचाने में जो लापरवाही हुई थी, वैसी ही लापरवाही ने उत्तर-पश्चिमी सीमाओं को नादिर शाह के आक्रमण के लिए असुरक्षित बना दिया।
सियार-उल-मुतख़ेरिन का विवरण: प्रशासनिक गिरावट
गुलाम हुसैन, जो ‘सियार-उल-मुतख़ेरिन ‘ के लेखक हैं, लिखते हैं कि नाकाबिल गवर्नरों की नियुक्ति सिफारिश के आधार पर की जाती थी, और उत्तर-पश्चिमी सीमा की चौकियों को बिल्कुल नजरअंदाज कर दिया गया था। कबीलाई सब्सिडियों को रोककर सत्ताधीशों या उनके समर्थकों के अवैध लाभ के लिए प्रयोग किया गया। मुग़ल सम्राट और उनके मंत्रियों ने पहाड़ों के उस पार की घटनाओं को न तो सुनने की कोशिश की और न ही उसकी परवाह की। उदाहरण के लिए, जब काबुल के मुग़ल गवर्नर ने फारस के आक्रमण की धमकी की सूचना दी, तो खान-ए-दौरान ने इस खबर का मज़ाक उड़ाया और इसे बेबुनियाद डर बताया। जब गवर्नर ने सैनिकों के वेतन के पाँच वर्षों के बकाये की शिकायत की, तो उसे टालने वाले जवाब दिए गए।
नादिर शाह: एक महत्वाकांक्षी शासक का उदय
नादिर क़ुली से नादिर शाह बनने का सफर
नादिर क़ुली का जन्म 1688 में खुरासान के तुर्कमान परिवार में हुआ था। उनका युवावस्था का समय संघर्षपूर्ण रहा। उन्होंने फारस को अफगानी वर्चस्व से मुक्ति दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। अफगान नेता महमूद के नेतृत्व में अफगानों ने पहले कंधार पर कब्जा किया और फिर 1722 में फारस की राजधानी इस्फ़हान पर आक्रमण कर उसे जीत लिया। नादिर क़ुली ने फारस को अफगानों से मुक्त कराने का संकल्प लिया।
फारस की मुक्ति और शाह तहमास्प के साथ नादिर का संबंध
1727 में नादिर ने निशापुर पर कब्जा कर लिया और वहाँ से अफगानों को खदेड़ दिया। उन्होंने सफ़वीद शहज़ादा शाह तहमास्प की अधीनता स्वीकार की और उनके सेनापति के रूप में काम करना पसंद किया। शीघ्र ही, पूरा फारस अफगानी शासन से मुक्त हो गया। इसके बाद, कृतज्ञ शाह ने नादिर क़ुली को फारस के आधे हिस्से पर पूर्ण अधिकार प्रदान किया, जिसमें उनके नाम पर सिक्के जारी करने का अधिकार भी शामिल था।
नादिर शाह की महत्वाकांक्षाएँ और कंधार पर कब्जा
1736 में अंतिम सफ़वीद शासक की मृत्यु के बाद नादिर पूरे फारस का शासक बन गया और उसने नादिर शाह की उपाधि धारण की। अपनी महत्वाकांक्षाओं के कारण, नादिर ने अपने राज्य की सीमाओं को विस्तारित करने का लक्ष्य रखा। उसका पहला निशाना कंधार था, क्योंकि जब तक कंधार पर कब्जा नहीं होता, फारस की सुरक्षा को खतरा बना रहता और खुरासान की शांति और समृद्धि में बाधा रहती। इसके अतिरिक्त, कंधार को जीतने के बाद ही नादिर शाह सफ़वीदों की पूरी विरासत का दावा कर सकता था।
मुग़ल साम्राज्य की कमजोरी और नादिर शाह का आक्रमण
मुग़ल सम्राट से नादिर शाह का पत्राचार
अफगान शासकों को अलग-थलग करने के लिए, नादिर शाह ने मुग़ल सम्राट मुहम्मद शाह से पत्राचार किया, जिसमें उसने आग्रह किया कि अफगान भगोड़ों को काबुल में शरण न दी जाए। मुहम्मद शाह ने नादिर शाह के दूत को इसके लिए आश्वासन भी दिया। लेकिन जब मार्च 1738 में नादिर ने कंधार पर कब्जा कर लिया, तो कई अफगान भगोड़े काबुल और गज़नी में शरण ले गए। नादिर शाह ने अपने सैनिकों को कड़े निर्देश दिए थे कि वे मुग़ल क्षेत्र का उल्लंघन न करें और काबुल और गज़नी में अफगान भगोड़ों का पीछा न करें।
नादिर शाह के दूत की हत्या और आक्रमण का बहाना
हालांकि, मुग़ल सरकार के वादाखिलाफी के बावजूद, नादिर ने 1737 में दिल्ली की ओर अपना तीसरा दूत भेजा। नादिर के दूत पर जलालाबाद में मुग़ल सैनिकों द्वारा हमला किया गया और उसे मार डाला गया। नादिर शाह ने मुग़ल सम्राट द्वारा अपने दूतों की उपेक्षा और अंतिम दूत के प्रति किए गए क्रूर व्यवहार को भारत पर आक्रमण का बहाना बना लिया।
नादिर शाह की महत्वाकांक्षा और मुग़ल साम्राज्य की कमजोरी
हालांकि नादिर शाह के भारत पर आक्रमण के पीछे असली कारण उसके भीतर की लालसा और मुग़ल साम्राज्य की कमजोर स्थिति में निहित थे। उसे भारत की अपार संपदा के बारे में पता चला था, जो उसके लालच को बढ़ावा दे रही थी। इसके अलावा, नादिर को मुग़ल प्रशासन की बुरी स्थिति और आंतरिक कलह के बारे में स्पष्ट जानकारी मिली थी, जो उसकी महत्वाकांक्षाओं को और प्रोत्साहित कर रही थी। इसके साथ ही, उसे भारत के कई अमीरों के द्वारा पत्र भी मिले थे, जिसमें उसे भारत पर आक्रमण करने के लिए आमंत्रित किया गया था।
नादिर शाह का भारत में प्रवेश और विजय अभियान
गज़नी और काबुल पर नादिर शाह का कब्जा
11 जून 1738 को नादिर शाह ने गज़नी पर कब्जा किया और 29 जून को काबुल को जीत लिया। नादिर शाह ने खुद को एक उदार शासक के रूप में स्थापित किया था और उसने विद्रोहियों को प्रलोभन देकर अपने पक्ष में कर लिया। नासिर खान, काबुल के मुग़ल गवर्नर ने बिना प्रतिरोध के आत्मसमर्पण कर दिया, और नादिर शाह ने उसे माफ कर काबुल और पेशावर का गवर्नर बने रहने की अनुमति दी।
लाहौर की विजय और दिल्ली की ओर कूच
अटॉक के पास नादिर ने सिंधु नदी पार की और लाहौर के गवर्नर को आसानी से पराजित कर दिया। लाहौर के गवर्नर के साथ भी नादिर ने उदारता का व्यवहार किया, जिससे उसने भी नादिर का साथ देना स्वीकार कर लिया। इसके बाद, नादिर शाह ने तेजी से दिल्ली की ओर कूच किया, जहां मुग़ल साम्राज्य की कमजोरियां और स्पष्ट रूप से उजागर हो गईं।
करनाल का युद्ध (24 फरवरी 1739) और नादिर शाह की दिल्ली विजय
नादिर शाह की दिल्ली की ओर तेजी से बढ़ती सेना ने मुग़ल सम्राट को घबराहट में डाल दिया। इस खतरे का सामना करने के लिए, सम्राट ने 80,000 सैनिकों की एक विशाल सेना तैयार की और निज़ाम-उल-मुल्क, क़मर-उद-दीन और खान-ए-दौरान के साथ राजधानी से रवाना हुए। सआदत ख़ान भी थोड़ी देर बाद उनसे आ मिला। हालांकि, मुग़ल सेना की कमजोरी जल्दी ही सामने आ गई, क्योंकि उन्हें दुश्मन की स्थिति का पता तब चला जब नादिर शाह की अग्रिम सेना ने सआदत ख़ान के काफिले पर हमला कर दिया। इसके अलावा, उनके पास न तो कोई स्पष्ट युद्ध योजना थी और न ही कोई प्रमुख नेता तय था। करनाल की लड़ाई केवल तीन घंटे तक चली। इस लड़ाई में खान-ए-दौरान वीरगति को प्राप्त हुआ जबकि सआदत ख़ान नादिर शाह के हाथों कैद हो गया।
निज़ाम-उल-मुल्क का शांति समझौते में योगदान
निज़ाम-उल-मुल्क ने मध्यस्थ की भूमिका निभाते हुए एक समझौता कराया, जिसके तहत नादिर शाह को 50 लाख रुपये देने पर सहमति बनी। इसमें से 20 लाख रुपये तुरंत और बाकी 30 लाख रुपये तीन किस्तों में—लाहौर, अटक और काबुल में 10-10 लाख रुपये—देने का वादा किया गया। सम्राट, निज़ाम-उल-मुल्क की इस भूमिका से इतने खुश हुए कि उन्होंने उसे मीर बख्शी का पद दे दिया, जो खान-ए-दौरान की मृत्यु से खाली हुआ था।
नादिर शाह का दिल्ली की ओर बढ़ना
मुग़ल दरबार की गुटबाज़ी और सआदत ख़ान की साजिश
मुग़ल दरबार के अमीरों की स्वार्थपरता और आपसी दुश्मनी ने स्थिति को और भी गंभीर बना दिया। सआदत ख़ान, जो मीर बख्शी बनने की उम्मीद रखता था, निज़ाम को यह पद मिलने से इतना नाराज़ हुआ कि उसने नादिर शाह से मिलकर उसे सुझाव दिया कि अगर वह दिल्ली पर कब्ज़ा कर ले, तो वहां से आसानी से 20 करोड़ रुपये जुटाए जा सकते हैं। नादिर शाह ने इससे पहले ही निज़ाम से मुग़ल दरबार की स्थिति के बारे में विस्तार से जानकारी प्राप्त कर ली थी। नादिर ने निज़ाम से पूछा था कि उसकी मौजूदगी के बावजूद मराठों ने कैसे साम्राज्य के बड़े हिस्से पर कब्ज़ा कर लिया। इस पर निज़ाम ने जवाब दिया था कि दरबार की गुटबाज़ी और फूट के कारण स्थिति बिगड़ी है और इसी वजह से वह खुद दक्कन चला गया था। नादिर शाह ने अब इन परिस्थितियों का खुद अनुभव कर लिया था।
दिल्ली में नादिर शाह की सत्ता स्थापना
नादिर शाह ने दिल्ली की ओर कूच किया और 20 मार्च 1739 को दिल्ली पहुंच गया। वहां उसका स्वागत किया गया और उसके नाम के सिक्के ढाले गए। इस घटना के बाद, मुग़ल साम्राज्य का अंत हो गया और फारसी साम्राज्य की शुरुआत हो गई।
दिल्ली में नरसंहार
22 मार्च को दिल्ली में यह अफवाह फैली कि नादिर शाह की मौत हो गई है। इस अफवाह के कारण जनता ने विद्रोह कर दिया और नादिर के लगभग 700 सैनिक मारे गए। इस पर नादिर ने पूरे शहर में नरसंहार का आदेश दे दिया। अनुमान है कि इस नरसंहार में लगभग 30,000 लोग मारे गए। मुहम्मद शाह के निवेदन पर, नादिर ने इस जनसंहार को रुकवाया।
दिल्ली में दो महीने की लूट और सआदत ख़ान का अंत
नादिर शाह ने दिल्ली में करीब दो महीने बिताए और इस दौरान उसने अधिकतम लूटपाट करने का प्रयास किया। उसने अमीरों और आम लोगों से भी भारी रकम वसूल की। सआदत ख़ान, जो इस साजिश का मुख्य कारण था, को नादिर शाह ने धमकी दी कि अगर उसने 20 करोड़ रुपये की व्यवस्था नहीं की, तो उसे सख्त सजा दी जाएगी। असहाय होकर, सआदत ख़ान ने ज़हर खा लिया और अपनी जान दे दी। उसके उत्तराधिकारी सफदर जंग ने दो करोड़ रुपये का भुगतान किया।
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लाल किले के दीवान-ए-खास में स्थित बाद के मयूर सिंहासन की पेंटिंग (लगभग 1850) |
लूट में प्राप्त संपत्ति और मयूर सिंहासन
नादिर शाह द्वारा लूटी गई संपत्ति में उस समय के 30 करोड़ रुपये की नकदी के साथ-साथ रत्न, सोने और चांदी के बर्तन शामिल थे। इसके अलावा, “7,000 घोड़े, 10,000 ऊंट, 100 हाथी, 130 लेखक, 100 हिजड़े, 200 लोहार, 300 राजमिस्त्री और निर्माणकर्मी, 200 बढ़ई, 100 पत्थर काटने वाले “ भी थे। सबसे कीमती लूट में शाहजहाँ का मयूर सिंहासन था, जिसकी कीमत उस समय एक करोड़ रुपये आंकी गई थी। इसके साथ ही, नादिर ने मुग़ल सम्राट को मजबूर किया कि वह अपनी एक राजकुमारी का विवाह नादिर शाह के बेटे नसीर अल्लाह मिर्जा के साथ कर दे।
मुग़ल साम्राज्य के क्षेत्रीय समझौते
मुहम्मद शाह ने नादिर शाह को सिंधु नदी के पश्चिम के मुग़ल प्रदेश, जिनमें कश्मीर और सिंध शामिल थे, सौंप दिए। थट्टा का सूबा और उसके अधीन बंदरगाह भी नादिर शाह को दे दिए गए। इसके अलावा, पंजाब के गवर्नर ने प्रति वर्ष 20 लाख रुपये नादिर को देने का वचन दिया, ताकि फारसी सेना को सिंधु नदी के पूर्व में रखने की आवश्यकता न हो।
नादिर शाह की विदाई और मुहम्मद शाह की पुनर्स्थापना
नादिर ने मुहम्मद शाह को फिर से मुग़ल सम्राट घोषित किया और उसे अपने नाम से सिक्के जारी करने और ख़ुत्बा पढ़ने का अधिकार दिया। दिल्ली छोड़ने से पहले, नादिर ने मुहम्मद शाह को सलाह दी और प्रजा से उसका पालन करने का आग्रह किया। उसने मुग़ल सम्राट को यह भी आश्वासन दिया कि भविष्य में आवश्यकता पड़ने पर उसे सैन्य सहायता मिलेगी।
नादिर शाह के आक्रमण का प्रभाव
• मुग़ल साम्राज्य का पतन
नादिर शाह के आक्रमण ने मुग़ल साम्राज्य की नींव को हिला दिया। मुग़ल सम्राट मुहम्मद शाह की कमजोर स्थिति और नादिर शाह की लूटपाट ने साम्राज्य को पूरी तरह से कमजोर कर दिया। इस आक्रमण ने यह स्पष्ट कर दिया कि मुग़ल साम्राज्य अब अपने सबसे मजबूत समय से बहुत दूर है, जिससे इस साम्राज्य की राजनीतिक स्थिति और भी कमजोर हो गई। जिस आसानी से उसने मुग़ल क्षेत्रों पर कब्जा कर लिया, उसने मुग़ल प्रशासन की अव्यवस्था को उजागर किया और उपमहाद्वीप में आगे आने वाले आक्रमणों और संकटों का रास्ता खोल दिया।
• क्षेत्रीय शक्तियों का उदय
नादिर शाह के आक्रमण के बाद, कई क्षेत्रीय शक्तियाँ जैसे कि मराठे, सिख, जाट, और अन्य स्थानीय ताकतें ने सत्ता में वृद्धि की। ये शक्तियाँ अब मुग़ल साम्राज्य के खिलाफ अपनी स्थिति को मजबूत करने में सक्षम हो गईं, जिससे एक नए राजनीतिक वातावरण का निर्माण हुआ। नादिर शाह का आक्रमण भारतीय राजनीति में एक नए युग की शुरुआत का प्रतीक बन गया।
• सामाजिक और आर्थिक प्रभाव
दिल्ली में नादिर शाह द्वारा की गई लूटपाट ने भारतीय समाज में भय और अशांति फैला दी। इस आक्रमण ने व्यापार, कृषि और सामान्य जनजीवन को प्रभावित किया। लोग भयभीत थे, और यह आर्थिक स्थिरता को बाधित करता था। नादिर की लूट से भारतीय अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान हुआ, और कई व्यापारिक गतिविधियाँ ठप हो गईं।
• धार्मिक ध्रुवीकरण
नादिर शाह का आक्रमण एक ऐसा समय था जब भारत में विभिन्न धार्मिक समुदायों के बीच तनाव बढ़ने लगा था। नादिर की क्रूरता और उसके द्वारा की गई नरसंहार ने धार्मिक ध्रुवीकरण को बढ़ावा दिया। यह धार्मिक अस्थिरता भविष्य में हिंदू-मुस्लिम संबंधों पर नकारात्मक प्रभाव डालने का कारण बनी।
• साम्राज्यवादी विचारों का उदय
नादिर शाह के आक्रमण ने भारतीय राजाओं और साम्राज्य के प्रमुखों के बीच साम्राज्यवादी विचारों को जन्म दिया। उन्होंने नादिर की लूटपाट से सीखा कि यदि वे एकजुट नहीं होते, तो विदेशी शक्तियाँ उन्हें समाप्त कर सकती हैं। यह विचार बाद में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन गया।
निष्कर्ष
नादिर शाह का आक्रमण भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण घटना थी जिसने मुग़ल साम्राज्य को कमजोर कर दिया और क्षेत्रीय शक्तियों को ऊँचा उठाया। इस आक्रमण ने न केवल राजनीतिक और सामाजिक संरचना को प्रभावित किया, बल्कि धार्मिक और आर्थिक अस्थिरता का भी निर्माण किया। नादिर शाह का आक्रमण भारतीय उपमहाद्वीप के भविष्य की दिशा निर्धारित करने में महत्वपूर्ण साबित हुआ, जिससे भारतीय समाज में अनेक बदलाव हुए।