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समुगढ़ का युद्ध (1658) |
औरंगजेब की पृष्ठभूमि और शाहजहां के उत्तराधिकार का संघर्ष
औरंगजेब का जन्म 3 नवंबर 1618 को शाहजहां और मुमताज महल के पुत्र के रूप में हुआ था। बचपन से ही औरंगजेब ने इस्लामी शिक्षा में गहरी रुचि दिखाई और उन्हें शरीयत के कठोर अनुयायी के रूप में जाना जाता था। उनके प्रारंभिक जीवन में दक्कन के क्षेत्र में सैन्य अभियानों में मिली सफलताएं उन्हें एक कुशल सेनापति और रणनीतिकार के रूप में स्थापित करती हैं।औरंगजेब की धार्मिक कठोरता और राजनीतिक कुशलता उनके जीवन के हर पहलू में दिखाई दी, जो उनके शासनकाल की एक महत्वपूर्ण विशेषता रही। उनके शासनकाल में शरीयत कानूनों का सख्ती से पालन किया गया, जो उनकी राजनीति और प्रशासन में भी परिलक्षित होता था।
उत्तराधिकार का युद्ध क्यों हुआ?
शाहजहां के चार पुत्रों—दारा शिकोह, शाह शुजा, औरंगजेब, और मुराद बख्श—के बीच सत्ता के लिए संघर्ष उनके अंतिम वर्षों में शुरू हुआ। शाहजहां का सबसे बड़ा पुत्र और उत्तराधिकारी दारा शिकोह था, जिसे शाहजहां ने अपने जीवनकाल में कई महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां दी थीं। दारा का झुकाव सूफीवाद और हिंदू-मुस्लिम एकता की ओर था, जो उसे अपने पिता के करीब बनाए रखता था।
हालांकि, औरंगजेब, शाह शुजा और मुराद बख्श ने दारा शिकोह की धार्मिक उदारता और राजनीतिक दृष्टिकोण को कमजोरी के रूप में देखा। शाहजहां की बीमारी ने सत्ता के इस संघर्ष को और अधिक तीव्र बना दिया। चारों भाइयों ने अपने-अपने क्षेत्रों में स्वतंत्रता की घोषणा की और सत्ता प्राप्त करने के लिए युद्ध का मार्ग चुना।
उत्तराधिकार के संघर्ष में हुए प्रमुख युद्ध और दारा शिकोह का हश्र
1. धरमत का युद्ध (1658):
15 अप्रैल 1658 को धरमत के पास लड़ा गया यह युद्ध, औरंगजेब और मुराद बख्श के संयुक्त बल ने दारा शिकोह के समर्थक राजा जसवंत सिंह को पराजित किया। हेनरी बिवरिज के अनुसार, इस युद्ध में औरंगजेब की जीत ने उन्हें सामरिक और मनोवैज्ञानिक बढ़त दिलाई, जिससे उनका दिल्ली की ओर मार्ग खुला।
2. समुगढ़ का युद्ध (1658):
29 मई 1658 को आगरा के पास लड़ा गया इस निर्णायक युद्ध में, दारा शिकोह की सेना औरंगजेब और मुराद बख्श के संयुक्त बल के सामने टिक नहीं पाई। इस युद्ध के बाद, दारा को भागना पड़ा और अंततः बलूचिस्तान में शरण ली। जदुनाथ सरकार के अनुसार, समुगढ़ की पराजय ने दारा शिकोह को सत्ता की दौड़ से बाहर कर दिया और उसकी किस्मत को मोहर लगा दी।
3. दारा शिकोह का हश्र:
औरंगजेब ने दारा को पकड़ने के लिए अपने सेनापति को भेजा, जिसने अंततः उसे गिरफ्तार किया और आगरा लाया। औरंगजेब ने दारा पर धर्मद्रोह और बगावत का आरोप लगाकर उसे मौत की सजा दी। 30 अगस्त 1659 को दारा शिकोह की हत्या कर दी गई। इतिहासकार एनी जॉनस्टन का मानना है कि दारा शिकोह की मौत ने मुगल साम्राज्य की धार्मिक और सांस्कृतिक विविधता को कमजोर किया।
4. खजवा का युद्ध (1659):
यह युद्ध 5 जनवरी 1659 को उत्तर प्रदेश के खजवा में हुआ, जहां औरंगजेब ने शाह शुजा को पराजित किया और उसे अराकान भागने के लिए मजबूर किया। इस युद्ध ने औरंगजेब की सत्ता को स्थिरता प्रदान की।
शहजादियों की भूमिका :
इस संघर्ष में शहजादियों ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। शहजादी जहांआरा बेगम, जो शाहजहां की सबसे बड़ी बेटी थीं, अपने भाई दारा शिकोह का समर्थन कर रही थीं। जहांआरा अपने पिता की सबसे विश्वासपात्र थीं और दारा शिकोह के उत्तराधिकार में उनकी भूमिका महत्वपूर्ण थी।दूसरी ओर, शहजादी रोशनआरा बेगम, औरंगजेब की सबसे बड़ी समर्थक थीं। उन्होंने औरंगजेब के सत्ता प्राप्ति की योजना में सक्रिय भाग लिया और दारा शिकोह के खिलाफ षड्यंत्र रचा। रोशनआरा ने मुराद बख्श को भी औरंगजेब के साथ मिलकर काम करने के लिए प्रेरित किया। इतिहासकार एनी जॉनस्टन के अनुसार, रोशनआरा की भूमिका ने औरंगजेब की सत्ता प्राप्ति में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
औरंगजेब की सफलता के कारण
औरंगजेब की सफलता के पीछे कई कारण थे:
1. धार्मिक कठोरता और समर्थन:
औरंगजेब की धार्मिक कठोरता ने उसे कट्टरपंथी मुसलमानों का समर्थन दिलाया, जो उसकी सेना और प्रशासन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते थे। ए.एल. श्रीवास्तव के अनुसार, औरंगजेब की धार्मिक नीतियों ने उसे साम्राज्य के रूढ़िवादी तत्वों का समर्थन दिलाया।
2. सैन्य कुशलता और रणनीति:
औरंगजेब की सैन्य कुशलता और रणनीतिकार के रूप में उनकी क्षमताओं ने उन्हें अपने भाइयों पर बढ़त दिलाई। उनका युद्ध कौशल और सामरिक दृष्टिकोण उन्हें हर संघर्ष में आगे रखता था।
3. राजनैतिक चतुराई और गठबंधन:
औरंगजेब ने अपने भाइयों के खिलाफ कुशलता से षड्यंत्र रचे और राजनीतिक गठबंधन बनाए। रोशनआरा बेगम जैसे दरबार के प्रभावशाली सदस्यों के समर्थन ने उनकी सत्ता प्राप्ति की राह को आसान बना दिया।
4. परिस्थितियों का लाभ:
शाहजहां की बीमारी और उसके बाद की अनिश्चितता का लाभ उठाते हुए, औरंगजेब ने अपनी योजनाओं को साकार किया। सतीश चंद्र के अनुसार, औरंगजेब ने अवसरवादिता का परिचय देते हुए अपने भाइयों को कुचलने के लिए सही समय का चुनाव किया।
निष्कर्ष
उत्तराधिकार का संघर्ष मुगल साम्राज्य के सबसे निर्णायक घटनाक्रमों में से एक था। औरंगजेब की सफलता की नींव उसकी धार्मिक कठोरता, सैन्य कौशल, राजनीतिक चतुराई और परिस्थितियों का सही उपयोग करने की क्षमता पर टिकी थी। दारा शिकोह की मौत ने मुगल साम्राज्य की धार्मिक और सांस्कृतिक विविधता को प्रभावित किया, जबकि औरंगजेब की सत्ता प्राप्ति ने साम्राज्य को एक नई दिशा दी, जो अंततः इसके पतन की ओर अग्रसर हुई। इन संघर्षों में शहजादियों की भूमिका भी महत्वपूर्ण रही, जिन्होंने अपने भाइयों के सत्ता संघर्ष में प्रभावशाली भूमिका निभाई और मुगल इतिहास के इस महत्वपूर्ण अध्याय में अपनी छाप छोड़ी।