कामागातामारू घटना: ब्रिटिश नस्लवाद और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम पर असर

कामागातामारू जहाज
कामागातामारू जहाज 1914 में

जापानी जहाज कामागातामारू की घटना एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक मील का पत्थर है, जिसने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में न केवल भारत में बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी संघर्ष की लहर पैदा की। यह घटना सिर्फ एक जहाज की यात्रा से जुड़ी नहीं है, बल्कि यह उन सभी कठिनाइयों और संघर्षों का प्रतीक है, जिनका सामना भारतीय आप्रवासियों ने विदेशों में किया।

पृष्ठभूमि: कामागातामारू की यात्रा की शुरुआत और वैश्विक परिदृश्य

कामागातामारू की घटना 20वीं सदी के प्रारंभिक दौर में भारतीयों की आप्रवासन नीतियों और वैश्विक परिदृश्य से जुड़ी थी। जब ब्रिटिश भारत के लोग आर्थिक संकट, राजनीतिक उत्पीड़न, और बेहतर अवसरों की तलाश में अपने देश से बाहर निकलने की कोशिश कर रहे थे, तो उन्हें नस्लीय भेदभाव और कठोर आप्रवासन नीतियों का सामना करना पड़ा।

19वीं सदी के अंत और 20वीं सदी की शुरुआत में ब्रिटिश साम्राज्य के तहत कनाडा एक महत्वपूर्ण गंतव्य था, जहां भारतीय आप्रवासी काम की तलाश में जाना चाहते थे। विशेषकर पंजाब के सिख, जो ब्रिटिश सेना में कार्यरत थे, ने पहले से ही कनाडा में बसने की शुरुआत की थी। लेकिन जैसे-जैसे भारतीयों की संख्या बढ़ने लगी, कनाडाई सरकार ने नस्लीय आधार पर सख्त आप्रवासन नीतियाँ लागू करनी शुरू कर दीं।

सिखों के लिए कनाडा में बसना गर्व की बात थी क्योंकि वे ब्रिटिश साम्राज्य के प्रति निष्ठावान सैनिक थे, लेकिन कनाडा में प्रवेश के लिए बनाए गए कानूनों ने उन्हें कठिनाइयों में डाल दिया। कामागातामारू की यात्रा का उद्देश्य इन कठोर नीतियों को चुनौती देना था, और यह यात्रा ब्रिटिश साम्राज्य के नस्लीय भेदभाव के खिलाफ एक प्रतीकात्मक संघर्ष में बदल गई।

कामागातामारू की कनाडा पहुँच और यात्रियों की कठिनाइयाँ

जापानी जहाज कोमागाटामारू 4 अप्रैल 1914 को ब्रिटिश भारत के पंजाब प्रांत से 376 यात्रियों को लेकर ब्रिटिश हांगकांग से शंघाई, चीन और योकोहामा, जापान होते हुए वैंकूवर, ब्रिटिश कोलंबिया, कनाडा के लिए रवाना हुआ। यात्रियों में 337 सिख, 27 मुस्लिम और 12 हिंदू थे, सभी पंजाबी और ब्रिटिश नागरिक थे। 23 मई 1914 को, कामागातामारू वैंकूवर बंदरगाह पर पहुंचा, लेकिन कनाडाई अधिकारियों ने यात्रियों को उतरने की अनुमति देने से इनकार कर दिया। इन 376 यात्रियों में से 24 को कनाडा में प्रवेश की अनुमति दी गई, जबकि बाकी 352 को उतरने की अनुमति नहीं मिली, और जहाज को कनाडा के जल क्षेत्र से बाहर निकलने के लिए मजबूर किया गया। जहाज को कनाडा के पहले दो नौसैनिक जहाजों में से एक, HMS Rainbow, द्वारा निगरानी में रखा गया था। कनाडाई सरकार ने तर्क दिया कि यात्रियों ने “Continuous Journey” कानून का उल्लंघन किया है और इसलिए उन्हें कनाडा में प्रवेश नहीं दिया जा सकता।

यह घटना 20वीं शताब्दी की शुरुआत में कनाडा और संयुक्त राज्य अमेरिका में बहिष्कार कानूनों के तहत एशियाई अप्रवासियों को बाहर रखने के प्रयासों का हिस्सा थी। इस कानूनी पेचीदगी के कारण, यात्रियों को दो महीने तक जहाज पर ही रहना पड़ा। इस दौरान वे खाद्य और पानी जैसी बुनियादी सुविधाओं की कमी से जूझ रहे थे। यात्री समुद्र में फंसे हुए थे और उनके पास कोई स्पष्ट समाधान नहीं था। भारतीय समुदाय और सिख संगठनों ने उनकी मदद करने की कोशिश की, लेकिन कनाडाई सरकार अपने निर्णय पर अडिग रही।

कनाडा का “Continuous Journey” कानून क्या था?

20वीं शताब्दी की शुरुआत में, कनाडा ने नस्लीय भेदभाव को कानूनी रूप से स्थापित करने के लिए कई नियम लागू किए, जिनका उद्देश्य एशियाई और अन्य गैर-यूरोपीय आप्रवासियों को कनाडा में प्रवेश करने से रोकना था। इनमें से सबसे प्रमुख था “Continuous Journey” (अविरल यात्रा) कानून, जिसे 1908 में लागू किया गया।

यह कानून यह निर्धारित करता था कि केवल वे प्रवासी कनाडा में प्रवेश कर सकते हैं जो सीधे अपने देश से बिना किसी पड़ाव के कनाडा आते हैं। इस कानून के तहत, किसी भी व्यक्ति को केवल तभी प्रवेश की अनुमति दी जाती थी जब वह अपने मूल देश से बिना बीच में रुके कनाडा पहुंचे। क्योंकि भारत से कनाडा के लिए कोई प्रत्यक्ष जहाज सेवा नहीं थी, यह कानून विशेष रूप से भारतीय आप्रवासियों को रोकने के लिए बनाया गया था, जो कि ब्रिटिश नागरिक होने के बावजूद, ब्रिटिश भारत से कनाडा में आकर बसने की कोशिश कर रहे थे। यह कानून एक कानूनी तरीका था नस्लीय भेदभाव को लागू करने का, जिसका निशाना मुख्य रूप से एशियाई, विशेष रूप से भारतीय, आप्रवासी थे।

इस नस्लीय भेदभाव का उद्देश्य

कनाडा में यह कानून और अन्य आप्रवासन नीतियां यूरोपीय, खासकर ब्रिटिश और फ्रांसीसी आप्रवासियों को प्राथमिकता देने के लिए बनाए गए थे। कनाडा की सरकार नहीं चाहती थी कि एशियाई आप्रवासी, विशेषकर भारतीय और चीनी मूल के लोग, बड़ी संख्या में देश में आएं। इस कानून का उद्देश्य नस्लीय संरचना को बनाए रखना और “श्वेत कनाडा” नीति को बढ़ावा देना था। इसके तहत कई भारतीय, जो ब्रिटिश साम्राज्य के नागरिक थे, उन्हें कनाडा में प्रवेश से वंचित कर दिया गया।

वैंकूवर में संघर्ष

कनाडा में पहले से बसे दक्षिण एशियाई कनाडाई समुदाय ने हुसैन रहीम, मुहम्मद अकबर, और सोहन लाल पाठक के नेतृत्व में “तट समितियों” का गठन किया। इन समितियों का उद्देश्य कोमागाटामारू के यात्रियों को कनाडा में प्रवेश से वंचित करने के फैसले का विरोध करना था। कनाडा और संयुक्त राज्य अमेरिका में विरोध प्रदर्शन और सभाएं आयोजित की गईं। वैंकूवर के डोमिनियन हॉल में एक प्रमुख सभा हुई, जिसमें यह निर्णय लिया गया कि यदि यात्रियों को प्रवेश की अनुमति नहीं दी गई, तो इंडो-कनाडाई भारत लौटकर ब्रिटिश शासन के खिलाफ विद्रोह (गदर) शुरू करेंगे। इस दौरान, एक ब्रिटिश एजेंट ने गुप्त रूप से बैठक में घुसपैठ की और लंदन और ओटावा के अधिकारियों को सूचना दी कि गदर पार्टी के समर्थक जहाज पर मौजूद हैं। तट समिति ने कोमागाटामारू को किराए पर लेने के लिए $22,000 की राशि जुटाई और यात्रियों में से एक मुंशी सिंह की ओर से जे. एडवर्ड बर्ड के कानूनी प्रतिनिधित्व में मुकदमा दायर किया।

6 जुलाई 1914 को, ब्रिटिश कोलंबिया कोर्ट ऑफ अपील की पूर्ण पीठ ने सर्वसम्मति से यह फैसला सुनाया कि नए कानूनों के तहत, कोर्ट का आप्रवासन और उपनिवेशीकरण विभाग के फैसलों में हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं है। इससे नाराज यात्रियों ने जहाज के नियंत्रण को अपने हाथ में ले लिया और जापानी कप्तान को मुक्त कर दिया। इसके बावजूद, कनाडाई सरकार ने बंदरगाह टग बोट Sea Lion को आदेश दिया कि वह जहाज को समुद्र में धकेल दे।

जापानी जहाज कोमागाटामारू के यात्री
कोमागाटामारू पर सवार यात्री

अंतरराष्ट्रीय और भारतीय प्रतिक्रिया

कामागातामारू की घटना ने दुनिया भर में भारतीय समुदाय के बीच गहरी नाराजगी और प्रतिक्रिया उत्पन्न की। इसे नस्लीय भेदभाव और ब्रिटिश साम्राज्य के प्रति अन्याय के प्रतीक के रूप में देखा गया। विशेष रूप से भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में इस घटना ने अंग्रेजी शासन के प्रति क्रांति की भावना को प्रज्वलित किया।

भारतीय समाचार पत्रों और राष्ट्रीय आंदोलनों ने कामागातामारू की घटना को प्रमुखता से उठाया। इस घटना ने गदर पार्टी, जो पहले से ही भारतीय स्वतंत्रता के लिए ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ सशस्त्र विद्रोह की योजना बना रही थी, को और मजबूती दी। गदर पार्टी ने इसे ब्रिटिश साम्राज्य के नस्लीय उत्पीड़न और अन्यायपूर्ण नीतियों का स्पष्ट उदाहरण माना।

भारतीय यात्रियों की वापसी और उनके साथ ब्रिटिश सरकार का व्यवहार

जब कामागातामारू की घटना विफल हो गई और कनाडा की सरकार ने अधिकतर यात्रियों को प्रवेश नहीं दिया, तो जहाज को वापस भारत भेज दिया गया। 23 जुलाई 1914 को, कामागातामारू ने वैंकूवर बंदरगाह से प्रस्थान किया और 27 सितंबर 1914 को भारत के कलकत्ता बंदरगाह के पास हुगली नदी में बजबज नामक स्थान पर लंगर डाला।

भारत लौटने पर, ब्रिटिश सरकार को संदेह था कि कामागातामारू के यात्रियों में से कई गदर पार्टी के सदस्य थे, जो ब्रिटिश शासन के खिलाफ क्रांतिकारी गतिविधियों में लिप्त थे। इस संदेह के कारण, जब जहाज भारत पहुँचा, तो ब्रिटिश पुलिस ने यात्रियों को गिरफ्तार करने का प्रयास किया। लेकिन यात्रियों ने इसका विरोध किया, जिससे बजबज में पुलिस और यात्रियों के बीच हिंसक संघर्ष हुआ। इस संघर्ष में 20 से अधिक यात्री मारे गए और कई अन्य गिरफ्तार कर लिए गए।

कामागातामारू की घटना का स्वतंत्रता आंदोलन पर प्रभाव

कामागातामारू की घटना ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को एक नया आयाम दिया। इस घटना ने भारतीयों को यह स्पष्ट कर दिया कि ब्रिटिश शासन के तहत केवल भारत में ही नहीं, बल्कि दुनिया के अन्य हिस्सों में भी भारतीयों के साथ भेदभाव हो रहा था। विशेष रूप से सिख समुदाय, जिन्होंने इस घटना को अपने अपमान और उत्पीड़न के रूप में देखा, ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ अपनी लड़ाई को और तेज कर दिया।

गदर पार्टी, जो पहले से ही ब्रिटिश शासन के खिलाफ सशस्त्र क्रांति की तैयारी कर रही थी, ने कामागातामारू की घटना को अपने आंदोलन के लिए एक प्रेरणा के रूप में लिया। यह घटना भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में सशस्त्र क्रांति की दिशा में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुई।

गुरुदेव सिंह और उनका योगदान

कामागातामारू की घटना के पीछे का प्रमुख चेहरा गुरुदेव सिंह था। गुरुदेव सिंह एक सिख व्यापारी थे, जिन्होंने इस जहाज को चार्टर्ड किया था। वह इस यात्रा को केवल एक व्यवसायिक कदम के रूप में नहीं देख रहे थे, बल्कि इसे भारतीयों के अधिकारों की लड़ाई के रूप में भी देख रहे थे।

गुरुदेव सिंह ने न केवल इस यात्रा का आयोजन किया, बल्कि यात्रियों के अधिकारों की रक्षा के लिए कनाडाई और ब्रिटिश अधिकारियों के खिलाफ दृढ़ता से खड़ा भी रहे। उनके इस साहसिक कदम ने उन्हें भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के नायकों में से एक बना दिया। गुरुदेव सिंह ने इस यात्रा के माध्यम से यह संदेश दिया कि भारतीय अपने अधिकारों के लिए कहीं भी, किसी भी परिस्थिति में संघर्ष करने के लिए तैयार हैं।

कामागातामारू घटना और गदर पार्टी का संबंध

कामागातामारू की घटना और गदर पार्टी के बीच गहरा संबंध था, क्योंकि दोनों ही ब्रिटिश शासन के खिलाफ संघर्ष से जुड़े थे। कामागातामारू घटना के समय तक गदर पार्टी उत्तरी अमेरिका में सक्रिय थी और इसका उद्देश्य भारत को ब्रिटिश शासन से स्वतंत्र कराना था। गदर पार्टी की स्थापना 1913 में हुई थी, और इसमें प्रमुख रूप से भारतीय आप्रवासी शामिल थे, जो उत्तरी अमेरिका में रहने के बावजूद भारत की आजादी के लिए समर्पित थे।

कामागातामारू घटना के बाद, गदर पार्टी के सदस्यों के लिए यह एक महत्वपूर्ण प्रेरणा बन गई। उन्होंने इस घटना को भारतीयों के साथ हो रहे नस्लीय भेदभाव और ब्रिटिश साम्राज्य के अन्याय के प्रतीक के रूप में देखा। विशेष रूप से, जब कामागातामारू के यात्रियों को भारत वापस लौटने पर ब्रिटिश सेना द्वारा गोली मारी गई और उन्हें विद्रोही करार दिया गया, तो गदर पार्टी का यह विश्वास और भी पक्का हो गया कि ब्रिटिश शासन के खिलाफ सशस्त्र विद्रोह ही एकमात्र रास्ता है।

इस घटना ने गदर पार्टी के सदस्यों को और भी उग्र बना दिया। उन्होंने भारत लौटने की योजना बनाई ताकि वहां ब्रिटिश शासन के खिलाफ विद्रोह कर सकें। गदर पार्टी के क्रांतिकारियों ने कामागातामारू की घटना को भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के लिए अपने प्रचार का आधार बनाया और इसे ब्रिटिश अन्याय के खिलाफ भारतीय जनता को जागरूक करने के लिए एक महत्वपूर्ण साधन माना।

कामागातामारू घटना ने गदर पार्टी के सदस्यों के उत्साह को इस कदर बढ़ा दिया कि उन्होंने 1915 में भारत में एक बड़ा विद्रोह आयोजित करने की योजना बनाई। यद्यपि यह विद्रोह सफल नहीं हो सका, लेकिन कामागातामारू की घटना ने गदर पार्टी को संगठित और प्रेरित किया, और यह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित हुई।

गदर पार्टी और कामागातामारू घटना के बाद की गतिविधियाँ

कामागातामारू की घटना ने गदर पार्टी के उद्देश्यों को और भी बल दिया। गदर पार्टी, जो पहले से ही भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के लिए ब्रिटिश शासन के खिलाफ सशस्त्र विद्रोह की योजना बना रही थी, ने कामागातामारू के अपमानजनक व्यवहार को ब्रिटिश साम्राज्य के प्रति भारतीयों के गुस्से और असंतोष को भड़काने का एक प्रमुख बिंदु बनाया। यह घटना भारतीयों के साथ किए जा रहे अन्याय का एक जीवंत उदाहरण बन गई, जिसने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के क्रांतिकारी आंदोलन को गति दी।

गदर पार्टी के नेता और समर्थक, जो मुख्य रूप से उत्तरी अमेरिका में सक्रिय थे, इस घटना के बाद और अधिक संगठित हो गए। उनका मानना था कि अब केवल शब्दों से स्वतंत्रता प्राप्त नहीं की जा सकती, बल्कि इसके लिए सशस्त्र संघर्ष आवश्यक है। इस प्रकार, कामागातामारू की घटना ने गदर पार्टी के क्रांतिकारियों को प्रेरित किया और वे अधिक सक्रिय रूप से ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ विद्रोह की योजनाओं को तैयार करने लगे।

कामागातामारू की वापसी के बाद, गदर पार्टी ने अपने प्रयासों को और तेज कर दिया, और 1915 के विद्रोह की योजना बनाई गई। हालांकि, यह विद्रोह सफल नहीं हो सका, लेकिन यह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम साबित हुआ।

भारतीय समाज में कामागातामारू की घटना का प्रभाव

भारत में कामागातामारू की घटना ने ब्रिटिश सरकार के प्रति जनता की नाराजगी और बढ़ा दी। सिख समुदाय, जिसने इस घटना को एक व्यक्तिगत अपमान के रूप में देखा, ने अपने विद्रोह के प्रयासों को और तेज कर दिया। सिख सैनिक, जो पहले ब्रिटिश सेना के प्रति निष्ठावान थे, अब स्वतंत्रता संग्राम में अधिक सक्रिय रूप से शामिल होने लगे।

भारतीय समाज में इस घटना ने यह संदेश दिया कि ब्रिटिश साम्राज्य के तहत भारतीयों के साथ कहीं भी न्याय नहीं हो सकता, चाहे वे भारत में हों या विदेश में। इस घटना ने भारतीय जनता को यह स्पष्ट कर दिया कि स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए एक सशक्त संघर्ष आवश्यक है, और कामागातामारू की घटना इस संघर्ष का एक महत्वपूर्ण प्रतीक बन गई।

कोमागाटामारू स्मारक शहीद गंज, बज बज
कोमागाटामारू शहीद गंज, बज बज

कामागातामारू स्मारक और सम्मान

कामागातामारू घटना की स्मृति को जीवित रखने के लिए कई स्मारक और कार्यक्रम आयोजित किए गए हैं। भारत और कनाडा दोनों ही देशों ने इस घटना को ऐतिहासिक रूप से मान्यता दी है और इसके पीड़ितों को सम्मानित किया है।

1952 में भारत सरकार ने कामागातामारू के सम्मान में एक स्मारक का निर्माण किया। इसके अलावा, 2014 में कनाडाई प्रधानमंत्री स्टीफन हार्पर ने औपचारिक रूप से इस घटना के लिए माफी मांगी, जिसमें कनाडाई सरकार के नस्लीय भेदभावपूर्ण रवैये को स्वीकार किया गया।

कामागातामारू घटना का अंतरराष्ट्रीय प्रभाव

कामागातामारू की घटना केवल भारत और कनाडा के बीच का मामला नहीं था; इस घटना ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के लिए समर्थन उत्पन्न किया। यह घटना ब्रिटिश साम्राज्य के अधीन भारतीयों के साथ किए जा रहे अन्याय का एक प्रतीक बन गई, और दुनिया के अन्य हिस्सों में भारतीय समुदायों के बीच एकजुटता की भावना पैदा की।

विशेषकर उत्तरी अमेरिका में बसे भारतीयों ने इस घटना को अपनी सामूहिक स्मृति का हिस्सा बनाया और इसे ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ अपनी लड़ाई का आधार माना। गदर पार्टी ने इस घटना का उपयोग अपने उद्देश्यों के प्रचार के लिए किया और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के लिए अंतरराष्ट्रीय समर्थन जुटाया।

कामागातामारू घटना की वर्तमान मान्यता और महत्त्व

आज कामागातामारू की घटना को भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में एक महत्वपूर्ण घटना के रूप में माना जाता है। यह घटना हमें उस समय के नस्लीय भेदभाव, अन्यायपूर्ण आप्रवासन नीतियों और भारतीयों के संघर्ष की याद दिलाती है। यह केवल एक जहाज की यात्रा नहीं थी, बल्कि यह एक आंदोलन था, जिसने भारतीयों के साथ हो रहे भेदभाव के खिलाफ लड़ाई लड़ी।

इस घटना ने भारतीयों को यह दिखाया कि वे चाहे जहां भी जाएं, उन्हें अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करना होगा, और यह संघर्ष तब तक जारी रहेगा, जब तक वे अपनी स्वतंत्रता प्राप्त नहीं कर लेते। कामागातामारू की घटना न केवल भारतीय इतिहास का हिस्सा है, बल्कि यह एक वैश्विक संघर्ष का प्रतीक भी है, जिसमें भारतीय आप्रवासियों ने अपने अधिकारों के लिए लड़ाई लड़ी।

निष्कर्ष

कामागातामारू की घटना एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुई जिसने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को एक अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाई। यह घटना ब्रिटिश साम्राज्य के नस्लीय भेदभाव और भारतीय आप्रवासियों के साथ किए जा रहे अन्याय का एक प्रतीक बन गई। गुरुदेव सिंह और उनके जैसे अनेक नायकों ने इस संघर्ष को जीवित रखा, और उनकी यात्रा ने आने वाले संघर्षों के लिए एक मजबूत आधार तैयार किया।

इस घटना की स्मृति और इसके पीछे की प्रेरणा आज भी जीवित है, और यह हमें याद दिलाती है कि भारतीय स्वतंत्रता संग्राम केवल भारत तक सीमित नहीं था, बल्कि यह एक वैश्विक आंदोलन था, जिसमें भारतीय आप्रवासियों ने भी अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top