जूनागढ़ का भारत-पाकिस्तान विवाद : कारण और परिणाम

15 अगस्त, 1947: भारत की स्वतंत्रता और जूनागढ़ का भारत-पाकिस्तान विवाद

 

जब भारत 15 अगस्त, 1947 को आजादी का जश्न मना रहा था, उस वक्त जूनागढ़ की जनता असमंजस में थी। यह असमंजस इसलिए था क्योंकि उसी दिन जूनागढ़ के नवाब महावत खान ने पाकिस्तान में शामिल होने का निर्णय लिया था। भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम 1947 के तहत रियासतों को यह अधिकार था कि वे भारत या पाकिस्तान में विलय कर सकते थे या स्वतंत्र राष्ट्र का गठन कर सकते थे। इस प्रावधान के तहत जूनागढ़ ने पाकिस्तान में शामिल होने का फैसला लिया और यही से जूनागढ़ का भारत-पाकिस्तान विवाद शुरू हुआ।

जूनागढ़ राज्य के अंतिम दीवान खान बहादुर सर शाहनवाज भुट्टो
जूनागढ़ राज्य के अंतिम दीवान खान बहादुर सर शाहनवाज भुट्टो

जूनागढ़ के पाकिस्तान में विलय का निर्णय और शाहनवाज भुट्टो की भूमिका

 

इस निर्णय में मुख्य भूमिका जूनागढ़ के दीवान शाहनवाज भुट्टो की थी। उन्होंने नवाब महावत खान को पाकिस्तान में शामिल होने की सलाह दी। शाहनवाज भुट्टो सिंध के एक प्रमुख मुस्लिम लीग नेता थे, और उनके बेटे जुल्फीकार अली भुट्टो और पोती बेनजीर भुट्टो पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बने। शाहनवाज भुट्टो को मई 1947 में जूनागढ़ का दीवान नियुक्त किया गया था और उन्होंने इस निर्णय के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। यह फैसला आगे चलकर जूनागढ़ का भारत-पाकिस्तान विवाद का केंद्र बना।

जिन्ना की सलाह और पाकिस्तान का रुख

 

मोहम्मद अली जिन्ना ने दो-राष्ट्र सिद्धांत का अनुसरण करने के बावजूद, हिंदू बहुल जूनागढ़ को पाकिस्तान में शामिल करने के निर्णय को स्वीकार कर लिया। हालांकि, पाकिस्तान की ओर से विलय पर प्रतिक्रिया में देरी हुई। 13 सितंबर, 1947 को पाकिस्तान ने भारत को तार भेजकर यह बताया कि उसने जूनागढ़ के पाकिस्तान में विलय को स्वीकार कर लिया है। इससे जूनागढ़ का भारत-पाकिस्तान विवाद और गहराया।

सरदार पटेल और भारतीय प्रतिक्रिया

 

जूनागढ़ आरजी हुकूमत का प्रतीक चिन्ह | Junagadh Arzi Hukumat Symbol in Hindi

सरदार पटेल और वी.पी. मेनन का हस्तक्षेप

जूनागढ़ के विलय के बाद, 19 सितंबर 1947 को सरदार पटेल ने वी.पी. मेनन को जूनागढ़ भेजा। मेनन को नवाब से मिलने का मौका नहीं मिला, और उनके सारे सवालों का जवाब शाहनवाज भुट्टो ने दिया। इस समय जूनागढ़ की जनता कानून अपने हाथों में लेने की तैयारी कर रही थी, और उन्होंने आरजी (अस्थायी) सरकार की स्थापना का निर्णय लिया।

आरजी हुकूमत की स्थापना

25 सितंबर 1947 को आरजी हुकूमत की स्थापना हुई, जिसका नेतृत्व काठियावाड़ के प्रमुखों और मुंबई में बसे कठियावाड़ियों ने किया। उन्होंने जूनागढ़ के नवाब द्वारा हिंदू बहुल जनता की इच्छाओं की अनदेखी करने का विरोध किया और एक घोषणा पत्र जारी किया। यह कदम जूनागढ़ का भारत-पाकिस्तान विवाद को निर्णायक मोड़ पर ले गया।

जूनागढ़ का संघर्ष और पाकिस्तान का असमंजस

 

नवाब का पाकिस्तान भागना और आरजी हुकूमत का संघर्ष

आरजी हुकूमत के स्वयंसेवकों ने कई गांवों पर नियंत्रण स्थापित किया। नवाब महावत खान पाकिस्तान भाग गए और 27 अक्टूबर 1947 को शाहनवाज भुट्टो ने जिन्ना को पत्र लिखा कि उनके पास पैसा और रसद खत्म हो रही है। 2 नवंबर 1947 को आरजी हुकूमत ने जूनागढ़ को पूरी तरह से अपने नियंत्रण में ले लिया। यह घटनाएँ जूनागढ़ का भारत-पाकिस्तान विवाद के चरम बिंदु को दर्शाती हैं।

जनमत संग्रह और जूनागढ़ का भारत में विलय

 

जनमत संग्रह का आयोजन

9 नवंबर 1947 को भारतीय सेना ने जूनागढ़ पर नियंत्रण कर लिया। 20 फरवरी 1948 को जूनागढ़ में जनमत संग्रह कराया गया, जिसमें 2,01,457 मतदाताओं में से 1,90,870 लोगों ने भारत में विलय के पक्ष में मतदान किया, जबकि पाकिस्तान के पक्ष में मात्र 91 वोट पड़े। इसके बाद जूनागढ़ का भारत-पाकिस्तान विवाद खत्म हुआ और जूनागढ़ आधिकारिक रूप से भारत का हिस्सा बन गया।

कश्मीर, हैदराबाद और जूनागढ़ का भारत-पाकिस्तान विवाद

 

जूनागढ़ का विवाद और जिन्ना की कश्मीर नीति

जब भारत स्वतंत्र हुआ, उस समय तीन रियासतें- कश्मीर, हैदराबाद और जूनागढ़ विवादास्पद थीं। इनमें से जूनागढ़ का मुद्दा विशेष रूप से जटिल था क्योंकि इसका उपयोग मोहम्मद अली जिन्ना कश्मीर को लेकर अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए कर रहे थे। प्रसिद्ध पत्रकार कुलदीप नैयर अपनी पुस्तक Beyond the Lines में लिखते हैं कि सरदार पटेल को कश्मीर में दिलचस्पी नहीं थी, जबकि जिन्ना जूनागढ़ का भारत-पाकिस्तान विवाद को आधार बनाकर कश्मीर को हासिल करना चाहते थे।

सरदार पटेल और कश्मीर

 

जूनागढ़ प्रकरण के बाद कश्मीर में दिलचस्पी

राजमोहन गांधी अपनी किताब Patel, A Life में लिखते हैं कि जूनागढ़ के नवाब द्वारा हिंदू बहुल राज्य को पाकिस्तान में मिलाने के बाद, सरदार पटेल ने कश्मीर में रुचि लेना शुरू कर दिया। अगर जिन्ना जूनागढ़ और हैदराबाद के मामलों को आसानी से भारत को सौंप देते, तो पटेल शायद कश्मीर पाकिस्तान को दे देते। लेकिन जिन्ना ने इस मौके को गंवा दिया और जूनागढ़ का भारत-पाकिस्तान विवाद भारत की नीति निर्धारण का अहम बिंदु बन गया।

निष्कर्ष

 

जूनागढ़ का भारत-पाकिस्तान विवाद भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण अध्याय है, जिसने न केवल कश्मीर के मुद्दे पर असर डाला, बल्कि भारत-पाकिस्तान के बीच तनाव को भी बढ़ाया। सरदार पटेल और जिन्ना के बीच की रणनीति और जूनागढ़ के मुद्दे को लेकर उनके विचारों ने भारत के भविष्य की दिशा तय करने में अहम भूमिका निभाई।

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