सैंधव सभ्यता का सामाजिक, आर्थिक और शिल्प जीवन

सैंधव सभ्यता, जिसे हड़प्पा सभ्यता भी कहा जाता है, प्राचीन भारत की एक प्रमुख और अत्यधिक विकसित सभ्यता थी। यह सभ्यता लगभग 3300 से 1300 ईसा पूर्व के बीच सिंधु नदी घाटी क्षेत्र में फैली हुई थी। इस लेख में हम सैंधव सभ्यता के सामाजिक, आर्थिक और शिल्प जीवन का विश्लेषण करेंगे, लेकिन यदि आप इस सभ्यता के उत्पत्ति और विस्तार के बारे में अधिक जानना चाहते हैं, तो हमारे पिछले ब्लॉग में इसकी गहरी जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। सैंधव सभ्यता ने न केवल उच्च तकनीकी और शिल्प कौशल को अपनाया, बल्कि व्यापार, कृषि, और सामाजिक संरचना में भी उल्लेखनीय विकास किया।

 

A carved stone seal from the Harappan Civilization depicting a mythical unicorn-like creature, with a single horn, detailed body, and a short tail. The creature is shown in profile, with its head turned slightly, and is surrounded by intricate geometric patterns.
सैंधव सभ्यता का एक अद्वितीय सील, जिसमें एक कल्पित एक-सिंगे वाले प्राणी को उकेरा गया है, जो प्राचीन संस्कृति की कला और विश्वासों को दर्शाता है।

 

सैंधव सभ्यता का सामाजिक जीवन 

 

सैंधव सभ्यता (Indus Valley Civilization) का सामाजिक जीवन सुखी और सुविधापूर्ण था। इस सभ्यता का मुख्य आधार परिवार था। खुदाई में प्राप्त नारी मूर्तियाँ यह संकेत देती हैं कि यह समाज मातृसत्तात्मक (matriarchal) हो सकता है। मोहनजोदड़ो और हड़प्पा की खुदाई से पता चलता है कि यहाँ के समाज में विभिन्न वर्गों का अस्तित्व था। इन वर्गों को चार प्रमुख हिस्सों में बांटा जा सकता है: विद्वान् वर्ग, योद्धा वर्ग, व्यापारी और शिल्पकार वर्ग, और श्रमिक वर्ग।

 

विद्वान् वर्ग और सामाजिक वर्गीकरण 

 

विद्वान् वर्ग में संभवतः पुजारी, वैद्य, ज्योतिषी और जादूगर शामिल थे। समाज में पुरोहितों का सम्मानित स्थान था। हड़प्पा के मकानों के आकार से कुछ विद्वान यह मानते हैं कि जाति प्रथा (caste system) का अस्तित्व भी था। खुदाई से मिले तलवार, पहरेदारों के भवन और प्राचीरों से यह अनुमान लगाया गया कि समाज में क्षत्रिय (warrior) वर्ग भी रहा होगा। तीसरे वर्ग में व्यापारी और शिल्पकार (craftsmen) थे, जैसे पत्थर काटने वाले, जुलाहे, स्वर्णकार आदि। श्रमिक वर्ग में चर्मकार, कृषक, मछुआरे और अन्य श्रमिक शामिल थे।

कुछ विद्वान मानते हैं कि समाज में दास प्रथा (slavery) का अस्तित्व भी था, लेकिन यह निष्कर्ष पूरी तरह से सही नहीं माना जाता। हड़प्पा की खुदाई में मिले मकानों के आकार और संरचना से यह पता चलता है कि समाज में धनी-निर्धन का भेदभाव (rich-poor disparity) नहीं था, और लोग परस्पर मेल-मिलाप से रहते थे।

 

सैंधव सभ्यता का खानपान और वस्त्र 

 

सैंधव लोग शाकाहारी और मांसाहारी दोनों प्रकार के भोजन करते थे। उनके मुख्य खाद्य पदार्थों में गेहूँ, जौ, चावल, तिल, दालें आदि शामिल थे। इसके अलावा, शाक-सब्जियाँ, दूध और फल जैसे खरबूजा, तरबूज, नीबू, और अनार भी खाए जाते थे। मांसाहारी भोजन में भेड़, बकरी, सुअर, मुर्गी, बत्तख और मछलियाँ शामिल थीं। इन जानवरों की हड्डियाँ खुदाई में मिली हैं, जो उनके खानपान की पुष्टि करती हैं।

उनके वस्त्र सूती और ऊनी होते थे। खुदाई में मिली सुइयाँ यह दिखाती हैं कि उनके वस्त्र सिले हुए थे। स्त्रियाँ जूड़ा बनाती थीं, और पुरुषों के लंबे बाल और दाढ़ी होती थी। आभूषणों में कण्ठहार, कर्णफूल, हंसरस, अंगूठियाँ, और कड़ा शामिल थे। हड़प्पा से सोने के मनकों वाला एक हार और छोटे सोने के मनकों वाले हार भी मिले हैं।

 

श्रृंगार और प्रसाधन 

 

हड़प्पा की महिलाएँ श्रृंगार में रुचि रखती थीं। उन्हें काजल, पाउडर, और अन्य प्रसाधन सामग्री का ज्ञान था। चन्हदड़ो की खुदाई से लिपिस्टिक के प्रमाण भी मिले हैं। वे शीशे और कढ़ाई का भी उपयोग करती थीं। खुदाई में ताबे के दर्पण, छूरे, और अंजन लगाने की शलाकाएँ भी प्राप्त हुई हैं।

 

सैंधव सभ्यता में मनोरंजन और खेल 

 

सैंधव सभ्यता के लोग आमोद-प्रमोद के प्रेमी थे। पासा इस समय का प्रमुख खेल था। हड़प्पा और मोहनजोदड़ो से मिट्टी, पत्थर और काचली मटी के बने पासे मिले हैं। इसके अलावा, आजकल के शतरंज की गोटियाँ जैसी गोटियाँ भी विभिन्न स्थानों से प्राप्त हुई हैं। लोथल से दो प्रकार के खेल बोर्ड मिले हैं, एक मिट्टी का और दूसरा ईंट का।

नृत्य भी एक मनोरंजन का रूप था, जैसा कि नर्तकी की मूर्ति से स्पष्ट होता है। लोग गाने-बजाने में भी रुचि रखते थे। मछली पकड़ने के कई उपकरण मिले हैं, और शिकार करने की गतिविधि का संकेत भी मिलता है। मछली पकड़ना और पक्षियों का शिकार एक नियमित कार्य था। बच्चों के लिए मिट्टी की गाड़ियों के पहिए भी पाए गए, जो शायद उनका खेल का साधन था।

 

युद्ध और औजार

 

हड़प्पा से कई प्रकार के अस्त्र-शस्त्र और औजार मिले हैं। युद्ध और शिकार में तीर-धनुष, परशु, भाला, कटार, गदा, तलवार आदि का उपयोग किया जाता था। यह उपकरण सामान्यतः तांबे या कांसे के बने होते थे। इसके अलावा, बरछा, कुल्हाड़ी, बसुली और आरा जैसे औजार भी पाए गए। ये औजार दाँतेदार होते थे, जो युद्ध और शिकार के लिए उपयोगी थे।

स्पष्ट है कि सैंधव सभ्यता के लोग भौतिक सुख-सुविधाओं पर विशेष ध्यान देते थे। उनके अस्त्र-शस्त्र साधारण कोटि के थे, जो इस बात का प्रमाण हैं कि उनकी मुख्य प्राथमिकता भौतिक सुख-सुविधाओं पर थी।

 

सैंधव सभ्यता का आर्थिक जीवन: कृषि, पशुपालन और व्यापार 

 

सैंधव सभ्यता का आर्थिक जीवन बहुत विविधतापूर्ण और समृद्ध था। यह सभ्यता मुख्य रूप से कृषि और पशुपालन पर आधारित थी। इसके अलावा, व्यापार भी इसके आर्थिक ढांचे का एक महत्वपूर्ण हिस्सा था। इस लेख में हम सैंधव सभ्यता के कृषि, पशुपालन और व्यापार के बारे में विस्तार से जानेंगे।

 

कृषि: सैंधव सभ्यता में खेती और सिंचाई 

 

सैंधव सभ्यता के लोग मुख्य रूप से कृषि पर निर्भर थे। सिन्धु घाटी की भूमि बहुत उर्वर थी, और हर साल नदियाँ उर्वर मिट्टी लाती थीं। इससे फसलों की पैदावार अच्छी होती थी। गेहूँ और जौ मुख्य रूप से उगाए जाते थे। खुदाई में गेहूँ और जौ के दाने पाए गए हैं, जो इस बात का प्रमाण हैं कि ये फसलें सैंधव सभ्यता में प्रमुख थीं।

हालांकि, धान की खेती का प्रमाण अधिक नहीं है, लेकिन कुछ स्थलों से धान की भूसी मिली है, जो यह संकेत देती है कि धीरे-धीरे धान की खेती भी की जा सकती थी। इसके अलावा, बाजरा, मटर, और तिल जैसी फसलें भी उगाई जाती थीं।

कपास की खेती का प्रमाण भी मिलता है। सैंधव सभ्यता के लोग सबसे पहले कपास उगाने वाले थे, और यही कारण है कि मेसोपोटेमिया में “सिन्धु” शब्द का प्रयोग कपास के लिए किया जाता था। सिंचाई के लिए नदियों से पानी लाकर खेती की जाती थी। कुछ विशेषज्ञ मानते हैं कि यहां के लोग हल का उपयोग करके खेती करते थे।

 

पशुपालन: सैंधव सभ्यता में पालतू जानवर 

 

कृषि के साथ-साथ, पशुपालन भी सैंधव सभ्यता का महत्वपूर्ण हिस्सा था। कई पालतू जानवरों की क़वायद की जाती थी, जैसे कि गाय, बैल, बकरी, भेड़, सुअर और कुत्ते। मुहरों पर कूबड़दार बैल का चित्रण अक्सर मिलता है। इसके अलावा, हाथी, मुर्गा, बत्तख, और हंस जैसे पक्षी भी पाले जाते थे।

कुछ पशु धार्मिक दृष्टिकोण से महत्व रखते थे, जबकि कुछ का पालन मांस के लिए किया जाता था। ऊँट और घोड़ा के अवशेष कुछ स्थलों से पाए गए हैं, जिससे यह पुष्टि होती है कि सैंधव लोग इन जानवरों से भी परिचित थे।

 

व्यापार: सैंधव सभ्यता के व्यापारिक संबंध 

 

व्यापार सैंधव सभ्यता का एक और महत्वपूर्ण पहलू था। इसके लोग समुद्र व्यापार में सक्रिय थे, खासकर लोथल के बंदरगाह से। यहां के व्यापारियों ने मेसोपोटेमिया, ईरान और अन्य क्षेत्रों के साथ व्यापारिक संबंध स्थापित किए थे। हड़प्पा और मोहनजोदड़ो से विभिन्न प्रकार की वस्तुएं और व्यापारिक उत्पाद प्राप्त हुए हैं, जैसे कि मौसमी फल, हाथी दाँत, सोने और चांदी के आभूषण, और मिट्टी के बर्तन।

आत्मनिर्भरता को ध्यान में रखते हुए, सैंधव सभ्यता में अन्नागार और कोठार जैसे संरचनाएँ भी थीं, जिनमें अधिक उत्पादन को जमा किया जाता था। ये सार्वजनिक रूप से नियंत्रित होते थे, और इन्हें कर के रूप में अन्न एकत्रित करने के लिए इस्तेमाल किया जाता था।

 

सिंचाई और कृषि उपकरण 

 

सैंधव सभ्यता में सिंचाई की प्रणाली भी विकसित थी। नदियों से पानी लाकर खेतों तक पहुँचाया जाता था। इसके अलावा, नहरें और बाँध बनाने की तकनीक भी उपयोग की जाती थी। कृषि उपकरणों में हल, कुदाल, और अन्य पाषाण युक्त औजारों का इस्तेमाल होता था।

यहां से प्राप्त मिट्टी के हल और अन्य कृषि उपकरणों से यह साफ़ होता है कि कृषि में दक्षता को बढ़ाने के लिए उन्नत तकनीकों का प्रयोग किया जाता था।

 

अन्नागार और खाद्यान्न भंडारण 

 

अन्न का भंडारण करने के लिए अन्नागार और कोठार बनाए गए थे। इन स्थानों पर लोगों से कर के रूप में अनाज एकत्र किया जाता था। इन अन्नागारों में अनाज का भंडारण किया जाता था, ताकि किसी भी आपदा के समय पर्याप्त राशन उपलब्ध हो सके। लोथल और कालीबंगन से इस प्रकार के भंडारण के साक्ष्य मिलते हैं।

 

शिल्प और उद्योग धन्धे: सैंधव सभ्यता में कारीगरी और तकनीकी विकास 

 

सैंधव सभ्यता का आर्थिक जीवन केवल कृषि और पशुपालन तक सीमित नहीं था। यहां के लोग शिल्प और उद्योग धन्धों में भी बहुत निपुण थे। उनके द्वारा बनाए गए विभिन्न सामान और कारीगरी ने उनकी जीवनशैली को समृद्ध और विविधतापूर्ण बनाया। इस लेख में हम सैंधव सभ्यता के शिल्प और उद्योग धन्धों के बारे में विस्तार से जानेंगे।

 

कपड़ा उद्योग: बुनाई और वस्त्र निर्माण 

 

सैंधव सभ्यता में कपड़ा बुनना एक प्रमुख उद्योग था। खुदाई में प्राप्त कताई-बुनाई के उपकरण जैसे कि तकली, सुई आदि से यह पता चलता है कि यहां के लोग कपड़ा बुनने में माहिर थे। इसके अलावा, पटुए (Flax) के अवशेष भी पाए गए हैं, जो यह दर्शाते हैं कि कपड़े बनाने के लिए प्राकृतिक तंतु का भी उपयोग किया जाता था।

सैंधव लोग शाल और धोती जैसे वस्त्र पहनते थे। ये वस्त्र स्थानीय कारीगरों द्वारा बनाए जाते थे। मोहनजोदड़ो में एक पुरोहित की मूर्ति मिली है, जो तिपतिया अलंकरण से सुसज्जित है। यह इस बात का प्रमाण है कि सैंधव लोग वस्त्रों पर कढ़ाई भी करते थे। रंगीन बर्तन और कढ़ाई के निशान यह दर्शाते हैं कि वे रंगाई के काम से भी परिचित थे।

 

धातु उद्योग: सोना, चांदी, तांबा और कांसा 

 

सैंधव सभ्यता के लोग धातु उद्योग में भी दक्ष थे। खुदाई में कई तांबे और कांसे के उपकरण मिले हैं। इनमें घरेलू उपकरण, कृषि यंत्र, आभूषण और प्रसाधन सामग्रियां प्रमुख थीं। इसके अलावा, चांदी और सीसा से भी उपकरण बनाए जाते थे। हालांकि, सोने के बर्तन नहीं मिले, लेकिन चांदी से आभूषण और बर्तन बनाए जाते थे।

यहां के लोग धातुओं को गलाने, पीटने, और उन पर पानी चढ़ाने की तकनीक से पूरी तरह से परिचित थे। इसके साथ ही, हाथी दांत, सीप, शंख और घोघा जैसी सामग्रियों से भी विभिन्न उपकरण बनाए जाते थे।

कुम्हार उद्योग: मिट्टी के बर्तन और कुम्हारी कला 

 

सैंधव सभ्यता के कुम्हार विशेष प्रकार के बर्तन बनाते थे। ये बर्तन चिकने और चमकीले होते थे, और इनकी एक अलग पहचान थी। यहां के कुम्हारों की कुम्हारी कला बहुत उन्नत थी। उनके बनाए बर्तन न केवल उपयोगी थे, बल्कि कलात्मक दृष्टि से भी उच्चकोटि के थे।

चाक पर बर्तन बनाने की तकनीक से सैंधव लोग परिचित थे। इसके अलावा, बर्तनों का आकार और प्रकार भी बहुत विविध था। यह कला उनके उत्कृष्ट शिल्प कौशल को दर्शाती है।

 

लकड़ी और बढ़ईगिरी: नाव निर्माण और गाड़ी के पहिये 

 

सैंधव सभ्यता में लकड़ी का काम भी प्रचलित था। बढ़ईगिरी के व्यवसाय का पता लकड़ी से बने विभिन्न उपकरणों से चलता है। यहां से प्राप्त गाड़ी के पहिये और तख्तों के अवशेष बताते हैं कि सैंधव लोग गाड़ियाँ और अन्य लकड़ी से बनी वस्तुएं बनाने में निपुण थे। इसके अलावा, नावों का निर्माण भी सैंधव सभ्यता में किया जाता था, जिससे यह स्पष्ट होता है कि वे जल परिवहन से भी परिचित थे।

 

विशिष्ट उद्योग: मनका, सीप और शंख उद्योग 

 

सैंधव सभ्यता में कुछ विशिष्ट उद्योग भी थे। लोथल और चन्हूदड़ो में मनका निर्माण (Lapidary) का कार्य बहुत प्रसिद्ध था। इन स्थानों से कच्ची धातुएं, भट्ठियां और गुरियां प्राप्त हुई हैं, जो इस उद्योग की पुष्टि करती हैं। यहां से तैयार किए गए मनके और आभूषणों की कला और डिजाइन बहुत उन्नत थी।

इसके अलावा, सीप उद्योग भी सैंधव सभ्यता में प्रचलित था, खासकर लोथल और बालाकोट में। कंगन और अन्य आभूषण सीप से बनाए जाते थे। ये आभूषण बहुत ही सुंदर और कलात्मक थे, और इन्हें पहनने के लिए सैंधव सभ्यता के लोग बेहद प्रसन्न होते थे।

 

भवन निर्माण और राजगीरी उद्योग 

 

सैंधव सभ्यता के लोग ईंटों से भवन निर्माण करते थे। यहां के घर पकी ईंटों से बनाए जाते थे, जो यह दर्शाते हैं कि ईंट उद्योग इस समय में बहुत विकसित था। इसके अलावा, राजगीरी के व्यवसाय में भी लोग निपुण थे। उनके द्वारा बनाए गए भवन और संरचनाएं अत्यधिक मजबूत और टिकाऊ थीं।

 

व्यापार तथा वाणिज्य 

 

सैन्धव सभ्यता के लोग व्यापार में भी बहुत सक्रिय थे। उनके आंतरिक और बाहरी दोनों प्रकार के व्यापार समृद्ध थे। सच कहें तो, सैन्धव नगरों का विकास व्यापार के बिना संभव नहीं था। हड़प्पा और मोहेनजोदड़ो जैसे नगर व्यापार के प्रमुख केंद्र थे। ये नगर एक-दूसरे से व्यापारिक मार्गों द्वारा जुड़े हुए थे।

 

आंतरिक व्यापार 

 

सैन्धव लोग व्यापार के लिए मुख्यतः जलमार्गों का उपयोग करते थे, हालांकि थलीय मार्ग भी ज्ञात थे। व्यापार का सामान अधिकतर बैलगाड़ियों, हाथियों और खच्चरों से लाया जाता था। इन नगरों में कच्चे माल और प्राकृतिक संसाधनों का अभाव था, इसलिए वे अन्य क्षेत्रों से इन्हें प्राप्त करते थे। वे राजस्थान, बलूचिस्तान, गुजरात, मद्रास, और कश्मीर से तांबा, सोना, बहुमूल्य पत्थर और अन्य वस्तुएं मंगवाते थे।

 

विदेशी व्यापार 

 

सैन्धव सभ्यता के लोग सिर्फ भारत के विभिन्न हिस्सों से ही नहीं, बल्कि विदेशों से भी व्यापार करते थे। अफगानिस्तान, ईरान, मेसोपोटामिया, और सोवियत तुर्कमेनिया से वे कच्चा माल मंगवाते थे। वे इन देशों से धातुएं और बहुमूल्य पत्थर जैसे लाजवर्द, चांदी, और तांबा आयात करते थे। इसके अलावा, वे अफगानिस्तान और ईरान से चांदी और बहुमूल्य रत्नों का व्यापार करते थे।

 

मेसोपोटामिया के साथ व्यापार 

 

मेसोपोटामिया के साथ सैन्धव लोगों के व्यापारिक संबंध बहुत मजबूत थे। सुमेर, उर, किश, और असुर जैसे नगरों से सैन्धव व्यापारी वस्त्र, मनके, हड्डी के मोहरे और सीप भेजते थे। वहीं, सैन्धव नगरों से मेसोपोटामिया के नगरों में तांबा और हाथी दांत की वस्तुएं भेजी जाती थीं। मेसोपोटामिया से सैन्धव क्षेत्रों में कार्नीलियन (लाल पत्थर), खजूर, और लकड़ियाँ जैसे सामान भेजे जाते थे।

 

सैन्धव मुहरे और व्यापारिक संकेत

 

सैन्धव व्यापारी अपने सामान पर मुहरे लगाते थे। इन मुहरों से उनके व्यापार का प्रमाण मिलता है। मोहनजोदड़ो से एक मुहर मिली है, जिसमें सुमेरियन नाव का चित्र अंकित था, जो समुद्री व्यापार की ओर इशारा करता है। मोहनजोदड़ो और लोथल में तांबे और सीप से बने तराजू के पलड़े भी मिले हैं, जो व्यापारिक मापदंडों के प्रतीक हैं।

 

बहरीन और फारस के साथ व्यापार 

 

सैन्धव सभ्यता का संबंध बहरीन और फारस के देशों से भी था। बहरीन द्वीप से खुदाई में सैन्धव उत्पत्ति की वस्तुएं मिली हैं। यहां से प्राप्त मुहरे और सीप के टुकड़े बताते हैं कि इन देशों के व्यापारी भी सिन्धु और मेसोपोटामिया के बीच एक व्यापारिक मध्यस्थ का काम करते थे। ओमन द्वीप के कुछ स्थलों से भी सैन्धव सभ्यता की कलात्मक वस्तुएं मिली हैं।

 

मिस्र और अन्य देशों के साथ व्यापार 

 

सैन्धव लोगों का व्यापार मिस्र और क्रीट जैसे देशों से भी था, लेकिन यह व्यापार उतना व्यापक नहीं था। मिस्र से हड़प्पा जैसी गुड़िया और क्रीट से कुछ भित्तिचित्र मिले हैं, जो दोनों सभ्यताओं के बीच सांस्कृतिक संपर्क का संकेत देते हैं।

 

व्यापार का महत्व 

 

सैन्धव सभ्यता का समृद्धि का प्रमुख कारण उनका विदेशी व्यापार था। यह व्यापार न सिर्फ उनके आर्थिक विकास में सहायक था, बल्कि सांस्कृतिक आदान-प्रदान में भी भूमिका निभाता था। इन व्यापारिक संबंधों ने सैन्धव लोगों को नए संसाधनों और तकनीकों से परिचित कराया।

 

निष्कर्ष 

 

इस प्रकार, सैन्धव सभ्यता का व्यापार न केवल आंतरिक था, बल्कि उनके व्यापारिक संबंध विदेशों से भी गहरे थे। उनका व्यापारिक नेटवर्क बहुत व्यापक था, जिसमें मेसोपोटामिया, मिस्र, बहरीन, और फारस जैसे देशों का प्रमुख स्थान था। इन व्यापारिक संबंधों से यह स्पष्ट होता है कि सैन्धव सभ्यता आर्थिक और सांस्कृतिक दृष्टि से बहुत समृद्ध थी।

निष्कर्षतः, सैंधव सभ्यता का सामाजिक, आर्थिक और शिल्प जीवन यह स्पष्ट करता है कि यह सभ्यता अत्यधिक उन्नत और समृद्ध थी। यहां के लोग कृषि, पशुपालन, और व्यापार के साथ-साथ शिल्प कला में भी निपुण थे, जो उनकी जीवनशैली और संस्कृति को विशेष बनाता है। यह सभ्यता न केवल अपने समय की सामाजिक और आर्थिक संरचनाओं को दर्शाती है, बल्कि यह भी साबित करती है कि प्राचीन भारतीय समाज तकनीकी और व्यापारिक दृष्टि से अत्यधिक विकसित था। अगर आप सैंधव सभ्यता के बारे में और अधिक जानना चाहते हैं, तो इसके ऐतिहासिक स्थल और खुदाई से प्राप्त वस्तुओं का अध्ययन करना इस प्राचीन सभ्यता की गहरी समझ प्रदान करेगा।

 

Further Reference 

 

1. S.P. Gupta : The lost Sarasvati and the Indus Civilisation.

2. A.L. Basham : The Wonder that was India.

3. Irfan Habib : The Indus Civilization. 

4. Shereen Ratnagar : Understanding Harappa: Civilization in the Greater Indus Valley.

5. B.B. Lal : India 1947–1997: New Light on the Indus Civilization.

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