सैंधव सभ्यता, जिसे हम सिंधु घाटी सभ्यता भी कहते हैं, प्राचीन भारतीय इतिहास का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। इस सभ्यता का उदय लगभग 3300 से 1300 ईसा पूर्व हुआ था और यह वर्तमान पाकिस्तान और पश्चिमी भारत के कुछ हिस्सों में फैली हुई थी। हालांकि सैंधव सभ्यता के धार्मिक विश्वासों और पूजा पद्धतियों के बारे में कोई लिखित प्रमाण नहीं मिले हैं, फिर भी पुरातात्विक अनुसंधान से यह पता चलता है कि इस सभ्यता के लोग प्रकृति और जीवन के विभिन्न पहलुओं से जुड़ी धार्मिकता में विश्वास रखते थे।
सिंधु घाटी के लोग अपनी पूजा पद्धतियों में मुख्य रूप से मातृदेवी पूजा, पशु पूजा और जल जैसे प्राकृतिक तत्वों की आराधना करते थे। साथ ही, उनकी धार्मिकता में शिव जैसे देवता के प्रतीकों का भी संकेत मिलता है। इस ब्लॉग में हम सैंधव सभ्यता के धार्मिक विश्वासों और पूजा पद्धतियों की चर्चा करेंगे, और यह जानने की कोशिश करेंगे कि कैसे इन परंपराओं ने बाद के भारतीय धार्मिक और सांस्कृतिक जीवन को प्रभावित किया।

सैंधव सभ्यता के धार्मिक विश्वास (Religious Beliefs in the Indus Valley Civilization)
सैंधव सभ्यता के नगरों की खुदाई में किसी मंदिर, समाधि या धार्मिक स्थल के अवशेष नहीं मिले हैं। हालांकि, कालीबंगन की खुदाई में एक घर से यज्ञवेदी के अवशेष प्राप्त हुए हैं। सैंधव संस्कृति में धर्म और धार्मिक विश्वासों का अध्ययन मुख्यतः मुद्राओं, छोटी मूर्तियों, और पाषाण-प्रतिमाओं से किया जाता है। इन अवशेषों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि सैंधव सभ्यता में धार्मिक विश्वासों का एक विस्तृत और विविध रूप था।
हड़प्पा सभ्यता में मातृदेवी की पूजा (Mother Goddess Worship in Harappan Culture)
सैंधव सभ्यता में मातृदेवी की पूजा का प्रमुख स्थान था। हड़प्पा, मोहेनजोदड़ो, चन्हूदड़ों जैसी साइट्स से मिट्टी की नारी मूर्तियाँ प्राप्त हुई हैं। इन मूर्तियों में नारी के सिर पर पंखे जैसे आभूषण, हार, चूड़ियाँ, कर्णफूल, और मेखला आदि दिखाई देती हैं। कुछ मूर्तियों पर दीपक जैसी आकृतियाँ भी बनी हुई हैं, जो संकेत देती हैं कि इन मूर्तियों का उपयोग दीपक के रूप में किया जाता था। इसके अलावा, मोहेनजोदड़ो से एक देवी की मूर्ति मिली है, जिसे देवी के रूप में पहचाना जाता है। इस मूर्ति में देवी के सिर पर पंखे जैसे आभूषण हैं और वह करधनी, हार, चूड़ियाँ, कर्णफूल जैसी आभूषणों से सुसज्जित है। मैके ने इन मूर्तियों को ‘दीपलक्ष्मी’ से भी संबंधित किया है।
सैंधव सभ्यता में बलि की प्रथा और यज्ञ (Human Sacrifice and Rituals in the Indus Valley Civilization)
कुछ मुद्राओं पर देवी के चित्रण से यह संकेत मिलता है कि उस समय मनुष्यों की बलि देने की प्रथा भी रही होगी। हड़प्पा से मिली एक मुद्रा में देवी के पैरों के बीच से एक पौधा निकलता हुआ दिखाया गया है और दूसरी तरफ एक आदमी खड़ा है, जो बलि देने का प्रतीक हो सकता है। एक और मुद्रा में पीपल के वृक्ष की दो शाखाओं के बीच नारी की आकृति दिखायी गई है, जो यह संकेत करती है कि पीपल वृक्ष की पूजा देवी की उपासना से जुड़ी थी। इसके अलावा, बकरा बलि देने का दृश्य भी कुछ मुद्राओं में दिखाई देता है, जो मातृदेवी की पूजा से संबंधित था।
सिंधु घाटी सभ्यता में शिव की पूजा (Shiva Worship in the Indus Valley Civilization)
मातृदेवी की पूजा के साथ-साथ सैंधव सभ्यता में पुरुष देवता की पूजा का भी प्रमाण मिलता है। मोहेनजोदड़ो से प्राप्त एक मुद्रा में पद्मासन की मुद्रा में एक योगी की आकृति दिखायी गई है। इस योगी के दाहिने ओर चीता और हाथी तथा बाईं ओर गैंडा और भैंसा चित्रित हैं। इस देवता के सिर पर त्रिशूल जैसा आभूषण है और उनके चारों ओर विभिन्न पशुओं की आकृतियाँ हैं। मार्शल ने इसे ‘रुद्र शिव’ से संबंधित माना है। सैंधव सभ्यता में शिव की पूजा का प्रमाण अन्य मुद्राओं में भी मिलता है, जिसमें शिव के तीन मुख दिखाई देते हैं, जो उन्हें ‘त्रिमुख’ देवता के रूप में प्रस्तुत करते हैं। इसके अलावा, एक अन्य मुद्रा में देवता के सिर से फूल और पत्तियाँ निकलती हुई दिखायी गई हैं, जो उर्वरता और प्रकृति की शक्ति का प्रतीक हो सकती हैं।
सैंधव सभ्यता में लिंग पूजा और योनि पूजा (Lingam & Yoni Worship in Indus Valley Civilization)
सैंधव सभ्यता में लिंग पूजा का प्रचलन था। खुदाई में ऐसे लिंग मिले हैं, जो पत्थर, सीप, कांच और मिट्टी से बने थे। इन लिंगों का उपयोग ताबीज के रूप में भी किया जाता था, जैसा कि कुछ लिंगों में छेद पाया गया है। इन लिंगों का आकार भिन्न-भिन्न था और ये पूजा के उद्देश्य से उपयोग किए जाते थे। इसके अलावा, चक्र और छल्ले जैसी वस्तुएं भी मिली हैं, जिन्हें ‘योनि’ के रूप में पहचाना गया है। यह संकेत करता है कि योनिपूजा भी सैंधव धर्म का एक महत्वपूर्ण हिस्सा रही होगी।
पशु, पक्षी और वृक्षों की पूजा (Animal, Bird & Tree Worship in Harappa)
सैंधव लोग पशुओं, पक्षियों और वृक्षों की भी पूजा करते थे। खुदाई में जिन पशुओं के चित्र मिले हैं, उनमें गैंडा, बैल, हाथी, चीता, और भैंसा प्रमुख हैं। इन शक्तिशाली पशुओं को धार्मिक रूप से पूजा जाता था। फाख्ता (पंछी) को पवित्र माना जाता था और पीपल के वृक्ष को सबसे पवित्र माना गया था। पीपल के वृक्ष का चित्र मुद्राओं पर सबसे अधिक पाया जाता है और इसके अलावा मृदभाण्डों पर भी पीपल की पत्तियाँ चित्रित हैं। एक मुद्रा में दो एकश्रृंगी पशुओं के संयुक्त सिर से पीपल की शाखा निकलती हुई दिखाई गई है, जिससे यह संकेत मिलता है कि इन एकश्रृंगी पशुओं को पीपल देवता का वाहन माना जाता होगा।
स्वास्तिक और चक्र (Swastika & Chakra in Indus Valley Religion)
स्वास्तिक और चक्र जैसे पवित्र प्रतीकों का भी सैंधव धर्म में महत्व था। कई मुद्राओं पर सूर्य, सर्प और नाग के चित्रण मिलते हैं, जो सूर्योपासना और नागपूजा से संबंधित हो सकते हैं। स्वास्तिक को पवित्र चिन्ह माना जाता था, जिसे विभिन्न वस्तुओं पर अंकित किया गया था। इसके अलावा, ताबीजों पर विभिन्न धार्मिक चित्रण भी किए गए थे, जो धार्मिक विश्वासों और शक्तियों का प्रतीक थे।
यज्ञ और पशुबली (Yajna & Animal Sacrifice in Indus Valley)
सैंधव सभ्यता में यज्ञ और पशुबली की परंपरा भी थी। लोथल और कालीबंगन जैसे स्थलों से यज्ञीय वेदियाँ और पशुओं की जली हुई हड्डियाँ प्राप्त हुई हैं। लोथल में एक चबूतरे पर ईंट की बनी वेदी मिली है, साथ ही यहां पशुओं की हड्डियाँ, मनके और चित्रित मृदभाण्ड के टुकड़े भी पाए गए हैं, जो यज्ञ या बलि के अनुष्ठानों से संबंधित हो सकते हैं। कालीबंगन में सात आयताकार वेदियाँ एक पंक्ति में मिली हैं, और निचली बस्ती के घरों में भी अग्नि वेदियाँ पाई गई हैं। इससे यह स्पष्ट होता है कि वेदियों का धार्मिक जीवन में महत्वपूर्ण स्थान था।
निष्कर्ष
सैंधव सभ्यता का धर्म बहुत विविध था। इसमें मातृदेवी और पुरुष देवता दोनों की पूजा होती थी। इसके अलावा, पशु, पक्षी, वृक्ष और अन्य प्राकृतिक शक्तियों की पूजा भी होती थी। इस धर्म में योनिपूजा, लिंग पूजा, स्वास्तिक और चक्र जैसे प्रतीकों का भी महत्वपूर्ण स्थान था। इसके साथ-साथ यज्ञ, पशुबली, और अन्य धार्मिक अनुष्ठान भी सैंधव सभ्यता का हिस्सा थे। इन सभी प्रमाणों से यह स्पष्ट होता है कि सैंधव सभ्यता का धर्म बहुत विकसित और विविध था, और इसके कई पहलु बाद में हिन्दू धर्म के रूप में प्रकट हुए।
Further Reference
1. Irfan Habib : The Indus Civilization.
2. A.L. Basham : The Wonder that was India.
3. Shereen Ratnagar : Understanding Harappa: Civilization in the Greater Indus Valley.
4. S.P. Gupta : The lost Sarasvati and the Indus Civilisation.
5. B.B. Lal : India 1947–1997: New Light on the Indus Civilization.