सैधव सभ्यता (Indus Valley Civilization) प्राचीन भारतीय इतिहास का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो कला और स्थापत्य के दृष्टिकोण से अत्यधिक समृद्ध थी। इस सभ्यता में वास्तुकला, मूर्तिकला, मृद्भाण्ड कला, और धातु कला का अत्यधिक विकास हुआ था। विशेष रूप से मोहनजोदड़ो और हड़प्पा जैसे प्रमुख स्थलों से प्राप्त मूर्तियाँ और मुहरे, सैधव सभ्यता की उच्चतम शिल्पकला और धार्मिक विचारों को प्रकट करते हैं। इस लेख में, हम सैधव सभ्यता की कला, स्थापत्य और उनकी सामाजिक-सांस्कृतिक धरोहर की विस्तृत समीक्षा करेंगे, जिसमें विभिन्न प्रकार की मूर्तियाँ, बर्तन, आभूषण और धार्मिक प्रतीक शामिल हैं। साथ ही, हम देखेंगे कि कैसे सैधव सभ्यता के शिल्पकारों ने प्राचीन भारतीय कला और शिल्प के विकास की नींव रखी, जो आज भी भारतीय कला की परंपरा में महत्वपूर्ण योगदान देती है।
सैधव सभ्यता की कला तथा स्थापत्य
सैधव सभ्यता (Indus Valley Civilization) के अंतर्गत कला का एक अत्यंत विकसित रूप देखने को मिलता है। इस सभ्यता के शासक और व्यापारी कला के बड़े प्रेमी थे और उन्होंने इसके विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया। यहाँ हमें वास्तुकला, मूर्तिकला, उत्कीर्ण कला (रिलीफ स्थापत्य), चित्रकला, मृद्भाण्ड कला, और अन्य कलाओं का उत्कृष्ट रूप देखने को मिलता है। सैधव सभ्यता की कला न केवल तकनीकी दृष्टि से उन्नत थी, बल्कि सौंदर्य और धार्मिक प्रतीकों के मामले में भी विशेष रूप से समृद्ध थी।
हड़प्पा सभ्यता की वास्तुकला
सैधव सभ्यता में वास्तुकला का विकास बहुत उच्च स्तर पर हुआ था। यहाँ के नगरों की खुदाई में भवनों की संरचना, सड़कों का निर्माण और जल निकासी के उपायों के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त हुई है। नगरों में रैखिक योजनाओं का पालन किया गया था। इन नगरों में बनाये गए भवन प्रस्तर और ईंटों से निर्मित थे और इनमें जल निकासी की प्रभावशाली प्रणाली थी। हर घर में स्नानागार और गहरे कुएं होते थे, जो उस समय की उच्च जीवन-शैली और स्वच्छता के प्रति जागरूकता को दर्शाते हैं।
सिंधु घाटी सभ्यता की मूर्तिकला
सैधव सभ्यता में मूर्तिकला का अत्यधिक विकास हुआ था। यहाँ की मूर्तियों में धार्मिक, सामाजिक, और सांस्कृतिक जीवन की झलक मिलती है। मोहनजोदड़ों और हड़प्पा से प्राप्त मूर्तियाँ विशेष रूप से कला की उच्च गुणवत्ता का प्रमाण हैं। इनमें से मोहनजोदड़ों से प्राप्त एक मूर्ति, जो एक योगी या पुरोहित की है, बहुत प्रसिद्ध है। यह मूर्ति लगभग 9 सेंटीमीटर ऊँची है और इसके केशों को फीते से बांधकर शाल ओढ़ने का चित्रण किया गया है। इसके निचले होठ मोटे और आँखें अधखुली हैं, जो ध्यान की अवस्था को दर्शाती हैं। इसी प्रकार से मोहनजोदड़ों से एक श्वेत पाषाण का पुरुष मस्तक (लगभग सात इंच ऊँचा) मिला है, जो कलात्मक दृष्टि से महत्वपूर्ण है।
हड़प्पा से मिली दो सिररहित मानव मूर्तियाँ भी कला के उच्चतम स्तर की परिचायक हैं। इनमें से एक मूर्ति लाल बलुए पत्थर की है और दूसरी काले पत्थर से बनी है। इन मूर्तियों का शरीर सौष्ठव अत्यधिक कुशलता से उभारा गया है। यही नहीं, सैधव कलाकारों ने धातु से भी मूर्तियाँ बनाई हैं। मोहनजोदड़ों से एक कांस्य की नर्तकी की मूर्ति मिली है, जो लगभग 45 सेंटीमीटर लंबी है। इसमें नर्तकी की सुंदरता और कारीगरी स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है। इस मूर्ति के शरीर पर वस्त्र नहीं हैं और उसकी आभूषणों से सजी हुई मुद्रा संगीत की लय को दर्शाती है।
सैधव सभ्यता की धातु मूर्तियाँ
सैधव सभ्यता में धातु की मूर्तियों का निर्माण भी हुआ था। मोहनजोदड़ों और अन्य स्थानों से कांस्य, तांबा, और अन्य धातुओं से बनी मूर्तियाँ प्राप्त हुईं। इनमें से सबसे प्रमुख एक नर्तकी की कांस्य मूर्ति है, जो कला और शिल्प का उत्कृष्ट उदाहरण है। इस मूर्ति का शरीर नग्न है, लेकिन उसकी आभूषणों से सजी हुई मुद्रा और घुंघराले बाल किसी नृत्यकला को प्रदर्शित करते हैं। इसके अतिरिक्त, लोथल से भी कुछ धातु मूर्तियाँ मिली हैं, जैसे कि तांबे की बनी भैस की मूर्ति और अन्य पशु मूर्तियाँ, जो कलात्मक दृष्टि से अत्यंत प्रभावशाली हैं।
हड़प्पा वासियों की मिट्टी की मूर्तियाँ
सैधव सभ्यता में मिट्टी की मूर्तियाँ भी प्रमुख रूप से बनीं। इन मूर्तियों में मनुष्यों और पशुओं की आकृतियाँ अधिक थीं। खासकर महिला मूर्तियाँ बहुत प्रचुर मात्रा में पाई गईं। इन मूर्तियों को गहनों से सजाया गया था, जैसे कि कानों में गोल कुण्डल, गले में हार, कमर में मेखला और छाती पर हार की कई लताएँ। इस प्रकार की मूर्तियों को देखकर यह प्रतीत होता है कि इनका धार्मिक और सामाजिक महत्व था। कुछ मूर्तियाँ मातृत्व से संबंधित थीं, जिसमें एक महिला के गोद में बच्चा होता था, जो मातृका पूजा की ओर संकेत करती है।
सिंधु घाटी सभ्यता की पशु मूर्तियाँ
सैधव सभ्यता में पशु मूर्तियों की बड़ी संख्या मिलती है। इनमें कूबड़दार वृषभ की मूर्तियाँ विशेष रूप से महत्वपूर्ण हैं। इसके अतिरिक्त, हाथी, गैंडा, बाघ, सुअर, भालू, बंदर, और अन्य जानवरों की मूर्तियाँ भी पाई जाती हैं। मोहनजोदड़ों से एक श्वेत पाषाण की मूर्ति मिली है, जिसमें भेड़े के शरीर और हाथी के सिर का संयोजन किया गया है, जो संभवतः किसी धार्मिक महत्व को दर्शाता है।
हड़प्पा वासियों की काचली मिट्टी की वस्तुएँ
सैधव सभ्यता में काचली मिट्टी से बने गहनों और खिलौनों की भी बड़ी संख्या पाई जाती है। काचली मिट्टी को क्वार्ट्ज के चूर्ण से तैयार किया जाता था और इसे आग में पका कर काच जैसा बना लिया जाता था। इस सामग्री से बनी कुछ विशेष मूर्तियाँ जैसे गिलहरी, मेढ़क, और बंदर की मूर्तियाँ उल्लेखनीय हैं।
सैधव सभ्यता की मुहरे और उत्कीर्ण कला
सैधव सभ्यता में मुहरे (Seals) का विशेष महत्व था। अब तक लगभग दो हजार मुहरे सैधव स्थलों से प्राप्त हुए हैं। इन मुहरों पर मनुष्य, पशु और विभिन्न धार्मिक प्रतीकों की आकृतियाँ उत्कीर्ण की गई हैं। मोहनजोदड़ों से प्राप्त एक मुहरे पर त्रिमुखी शिव (पशुपति शिव) की आकृति उकेरी गई है, जो इस सभ्यता के धार्मिक दृष्टिकोण को दर्शाती है। मुहरों पर सींग वाले पशु, वृषभ, हाथी, बाघ, और विभिन्न अन्य जानवरों की आकृतियाँ भी मिलती हैं। इन मुहों के जरिए व्यापार में उपयोग किए गए थे और इन्हें धागे में लटकाने के लिए छेद भी किया जाता था।
हड़प्पा सभ्यता की मृद्भाण्ड कला
सैधव सभ्यता में मृद्भाण्ड कला का भी अच्छा विकास हुआ था। खुदाई में विभिन्न प्रकार के मिट्टी के बर्तन मिले हैं। इनमें बड़े घड़े, सुराही, मर्तबान, कटोरे, तश्तरियाँ, प्याले, कुल्हड़ आदि शामिल हैं। बर्तनों पर पशु, पक्षी, और अन्य प्राकृतिक दृश्य उकेरे गए हैं, जैसे बकरा, हिरन, मछली, और मोर। कुछ बर्तनों पर चित्रित किया गया है कि मछुआरे अपने कंधों पर जाल लेकर चल रहे हैं या शिकारी मृग का शिकार कर रहे हैं।
सिंधु घाटी सभ्यता के आभूषण
सैधव सभ्यता में आभूषणों का भी बहुत विकास हुआ था। सोने, चाँदी, ताँबे, और पत्थर से बने आभूषण प्राप्त हुए हैं। इनमें अंगूठियाँ, बालियाँ, कड़े, हार, और अन्य गहनों का निर्माण किया गया था। ये आभूषण यह दर्शाते हैं कि सैधव सभ्यता में जौहरी और कला कौशल का अत्यधिक विकास हुआ था।
निष्कर्ष
सैधव सभ्यता की कला भारतीय कला के इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है। यहाँ की मूर्तियाँ, मुहरे, बर्तन, और आभूषण उच्चतम तकनीक और सौंदर्य का उदाहरण हैं। इन कलाओं के द्वारा भारतीय कला की समृद्ध परंपरा की नींव रखी गई थी। जैसा कि स्टेला क्रमरिश ने कहा था, “जिस भारतीय मूर्तिकला ने युगों-युगों में अपनी अक्षुण्ण परंपरा को प्रतिष्ठित किया है, उसका स्रोत सिन्धु घाटी की कला से ही प्रवाहित हुआ था।”
Further Reference
1. A.L. Basham : The Wonder that was India.
2. B.B. Lal : India 1947–1997: New Light on the Indus Civilization.
3. S.P. Gupta : The lost Sarasvati and the Indus Civilisation.
4. Shereen Ratnagar : Understanding Harappa: Civilization in the Greater Indus Valley.
5. Irfan Habib : The Indus Civilization.