82,000 वर्ग मील में फैली और 1 करोड़ 60 लाख की आबादी वाली रियासत, जो यूरोप के कई देशों से बड़ी थी। जिसका शुमार भारत के प्रमुख रियासतों में किया जाता था। जी हां हम बात करें हैदराबाद रियासत की।
भारत में रियासतों के विलय के तीन विकल्प
भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम, 1947 के अंतर्गत देसी रजवाड़ों के पास तीन विकल्प थे ।
1.अपने रियासत को भारत में जोड़ सकते थे।
2.अपने रियासत को पाकिस्तान में जोड़ सकते थे।
3.अपना अलग स्वतंत्र राष्ट्र बना सकते थे।
आजादी के बाद अक्टूबर 1947 तक अधिकतर रियासतों ने भारत या पाकिस्तान में अपने विलय की मंजूरी दे दी थी। सिवाय 3 रियासतों के कश्मीर रियासत, जूनागढ़ रियासत और हैदराबाद रियासत।
हैदराबाद के भारत में विलय की आवश्यकता
सरदार वल्लभभाई पटेल का हैदराबाद को लेकर शुरू से ही ये माना था कि भारत के दिल में एक ऐसा क्षेत्र का होना जिसकी निष्ठा भारत की सीमाओं के बाहर हो भारत की सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा था।
निज़ाम की विलासता
तब का हैदराबाद कहीं ज्यादा बड़ा हुआ करता था। इसमें महाराष्ट्र और कर्नाटक के भी कुछ हिस्से आते थे।और इसके नवाब थे उस्मान अली खान। जो उसे वक्त दुनिया के सबसे रईस इंसान थे। नवाब की दौलत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि 185 कैरेट का जैकब डायमंड वह अपनी मेज पर पेपर वेट के रूप में इस्तेमाल करते थे। जो लगभग 37 ग्राम का था। जिसकी आज कीमत होगी 20 करोड़ अमेरिकी डॉलर।
हैदराबाद का स्टैंड स्टिल एग्रीमेंट और निजाम के गुप्त इरादे
सरदार पटेल चाहते थे कि हैदराबाद जल्द से जल्द भारत में विलय कर दे। लेकिन नवाब उस्मान अली खान को यह मंजूर नहीं था। पाकिस्तान तब तक कश्मीर में घुस चुका था और भारत उस मोर्चे पर एक बड़ी लड़ाई लड़ रहा था। इसलिए भारत फौरन हैदराबाद पर ध्यान नहीं दे सका।
हैदराबाद से मामले को सुलझाने के लिए भारत ने उसके साथ एक स्टैंड स्टिल एग्रीमेंट साइन किया। जिसके अनुसार भारत को हैदराबाद की विदेश नीति को देखना था, बाकी काम निजाम को, लेकिन शर्त यह थी कि निजाम सीधे तौर पर किसी दूसरे देश से संबंध नहीं रख सकते थे।
निज़ाम उस्मान अली |
निजाम के इरादे साफ नहीं थे। न केवल वो पाकिस्तान से संबंध बनाए हुए थे बल्कि पाकिस्तान उन्हें हथियार भी दे रहा था।
अंग्रेजों से सत्ता हस्तांतरण के दो दिन बाद यानी 17 अगस्त 1947 को लंदन में भारतीय उच्चायुक्त कृष्ण मिलन को पता लगा कि निजाम और चेकोस्लोवाकिया के बीच एक गुप्त सैन्य समझौते की बात चल रही है और हैदराबाद उससे 30 लाख पाउंड के हथियारो की खरीदारी करने वाला था।
यहां तक निजाम ने पाकिस्तान की मध्यस्थता के माध्यम से पुर्तगाल से गोवा को खरीदने की बात शुरू कर दी थी, ताकि वह वहां एक बंदरगाह का विकास कर सके और जरूरत पड़ने पर उसका इस्तेमाल कर सके।
निजाम ने तो ब्रिटिश सरकार से राष्ट्रमंडल के सदस्य बनने की भी इच्छा प्रकट की थी जिसे एटली सरकार ने ठुकरा दी।
कुल मिलाकर निजाम आजाद हैदराबाद को ख्वाब देख रहे थे।
रजाकारों का आतंक
निजाम के इस ख्वाब की वजह थी उनके कानों में पढ़ रही एक आवाज। वह आवाज जो कह रही थी कि खुदा की फ़ज़ल से एक दिन दिल्ली के लाल किले पर निजामशाही का झंडा होगा।
कासिम रिज़वी |
और इस आवाज का भोपू बजाने वाला इंसान था कासिम रिजवी। अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से वकालत की पढ़ाई पूरी करने के बाद उसने लातूर और उस्मानाबाद से अपनी वकालत शुरू की। उसका पिता एक पुलिस अधिकारी था और अपने पिता के रौब में उसने गैरकानूनी तरीके से बहुत संपत्ति इकट्ठा की थी । रुतबा बढ़ा तो लोग भी जुड़े और इन लोगों से उसने एक मिलिशिया बनाया जिसका नाम रखा था रजाकार जिसका मतलब होता है स्वयंसेवक।
भारत को जब आजादी मिली तो यह बात उठने लगी कि हैदराबाद को भी भारत में मिल जाना चाहिए। लेकिन कासिम रिजवी और उसके स्वयंसेवक इसके खिलाफ थे। रिजवी ने रजाकारों के दम पर हैदराबाद में चारों तरफ दहशत फैला दी। रजाकारों ने हिंदुओं के साथ कत्ल, लूटपाट और रेप की घटनाओं को अंजाम दिया।
हैदराबाद में कम्युनिस्ट क्रांति
बाकी रियासतों की तरह शुरुआत में हैदराबाद में भी सामंती राजशाही चल रही थी। जमीन पर सामंतो का कब्जा था। मजदूर और छोटे किसानों की हालत खराब थी। साल 1940 तक पूरे हैदराबाद में मार्क्स का नारा गूंजने लगा था । दुनिया के मजदूर एक हो जाओ तुम्हारे पास खोने को कुछ नहीं है पर पाने को सारा जहां।
जमीदारों के उत्पीड़न से तंग आकर मजदूरों ने विद्रोह करना शुरू कर दिया था। नतीजतन हैदराबाद रियासत के तेलंगाना क्षेत्र में कम्युनिस्ट क्रांति शुरू हो गई थी। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान भारत में अन्न की भारी कमी हो गई थी। जिससे किसान आंदोलन को और हवा मिली।
जमीदारों ने निजाम का दरवाजा खटखटाया और निजाम ने कासिम रिजवी को इस बात के लिए खुली छूट दे दी थी कि वह किसी तरह कम्युनिस्ट क्रांति को खत्म करें।
कासिम रिजवी ने रियासत में कम्युनिस्ट पार्टी पर बैन लगवा दिया। और रजाकारों को निर्देश दिया कि वह वामपंथी विचारधारा से सहानुभूति रखने वालों को चुन चुन के मारे। इस दौरान गांव के गांव तबाह हो गए।लेकिन इस दमन से हैदराबाद में कम्युनिस्ट आंदोलन को और बल मिला। साल 1948 तक कम्युनिस्टों ने तेलंगाना के बड़े भूभाग को अपने कब्जे में ले लिया।
22 मई 1948 में रजाकारों ने जब गंगापुर स्टेशन पर ट्रेन में सफर कर रहे हिंदुओं पर हमला बोला तो पूरे देश में भारत सरकार की आलोचना होने लगी कि भारत सरकार निजाम के प्रति नरम रख रख रही है।
रजाकारों के खिलाफ भारतीय सेना का अभियान: ऑपरेशन पोलो
भारत सरकार को जब रजाकारों के कत्लेआम की खबर लगी तो भारत सरकार ने हैदराबाद रियासत के साथ हुए स्टैंड स्टिल एग्रीमेंट की अवधि पूरी होने से पहले भारतीय सेना को हैदराबाद की तरफ रवाना कर दिया।
हैदराबाद रियासत में दाखिल होती भारतीय फौज |
ऑपरेशन पोलो के लिए 13 सितंबर की तारीख चुनी गई। 11 सितंबर को जिन्ना का इंतकाल हो चुका था, इसलिए पाकिस्तान चाह कर भी कुछ नहीं कर पाया।
मेजर जनरल जे एन चौधरी के नेतृत्व में भारतीय सेना ने विभिन्न दिशाओं से हैदराबाद के विरुद्ध मोर्चा खोल दिया । केवल चार दिनों में ही निजाम की फौज और रजाकारों का सफाया कर दिया गया। 17 सितंबर को निजाम में युद्धविराम का ऐलान कर दिया। और अगले दिन औपचारिक रूप से आत्मसमर्पण की तरह की घोषणा कर दी।
इस अभियान को ऑपरेशन पोलो नाम इसलिए दिया गया था क्योंकि उस वक्त हैदराबाद में विश्व में सबसे ज्यादा पोलो के मैदान थे । कुल 17 मैदान ।
सरदार पटेल और निज़ाम उस्मान अली |
हैदराबाद रियासत का अंत और निजाम की अंतिम स्थिति
1950 में गणतंत्र की स्थापना के बाद निजाम उस्मान अली को हैदराबाद का गवर्नर नियुक्त किया गया। कासिम रिज़वी को 10 साल जेल में रखने का बाद पाकिस्तान भेज दिया गया। जहां 1970 में उसकी मौत हो गई।
हैदराबाद रियासत का पुनर्गठन
निजाम ने 1 नवंबर 1956 तक राज्य के गवर्नर के रूप में काम किया। फिर राज्य पुनर्गठन के तहत हैदराबाद रियासत को तीन भागो महाराष्ट्र , कर्नाटक और आंध्रप्रदेश में बाट दिया गया।
निजाम उस्मान अली ने 24 फरबरी 1966 को अपनी अंतिम सांस ली।