दिल्ली सल्तनत का आंतरिक पुनर्गठन: खिलजी क्रांति और शासक वर्ग के परिवर्तन

 

दिल्ली सल्तनत का आंतरिक पुनर्गठन: खिलजी क्रांति और शासक वर्ग का परिवर्तन 

 

दिल्ली सल्तनत के इतिहास में खिलजी शासन (1290-1320) एक महत्वपूर्ण मोड़ था। इस दौरान, शासक वर्ग, प्रशासन और समाज में बड़े बदलाव हुए। खिलजी क्रांति ने न केवल राजनीतिक ढांचे को बदला, बल्कि सामाजिक और आर्थिक व्यवस्था को भी प्रभावित किया। आइए, इस लेख में जलालुद्दीन और अलाउद्दीन खिलजी के शासनकाल की नीतियों और उनके प्रभावों को विस्तार से समझते हैं।

 

जलालुद्दीन खिलजी के शासन की शुरुआत (1290) के समय दिल्ली सल्तनत का विस्तार।
जलालुद्दीन खिलजी के शासन की शुरुआत (1290) के समय दिल्ली सल्तनत का विस्तार।

 

खिलजी शासन और शासक वर्ग का विस्तार 

 

खिलजी शासन से पहले, दिल्ली सल्तनत पर तुर्क अभिजात वर्ग का वर्चस्व था। ममलुक या इलबारी कहलाने वाले तुर्क शासकों ने केवल उच्च वंश के तुर्कों को ही महत्वपूर्ण पद दिए थे। लेकिन, खिलजियों के सत्ता में आने के बाद यह परंपरा टूट गई।

 

शासक वर्ग में गैर-तुर्कों का उदय 

 

जलालुद्दीन खिलजी ने शासक वर्ग के सामाजिक आधार को विस्तारित किया। उन्होंने तुर्कों के साथ-साथ अन्य जातियों और वर्गों के लोगों को भी उच्च पदों पर नियुक्त किया। इससे शासन में विविधता आई और गैर-तुर्कों को आगे बढ़ने का मौका मिला।

उदाहरण के लिए, मलिक नायक, एक हिंदू, को समाना और सुनाम का गवर्नर बनाया गया। जैसे कि रायहान और याकूत जैसे गैर-तुर्कों को उच्च पदों पर नियुक्त किया गया। इसी तरह, मलिक काफूर जैसे गैर-तुर्क गुलामों को भी उच्च पद मिले। इस प्रकार, शासक वर्ग के सामाजिक आधार का विस्तार हुआ, और सत्ता में विविधता आई। यह बदलाव दिल्ली सल्तनत के इतिहास में एक क्रांतिकारी कदम था।

 

जलालुद्दीन खिलजी का चित्र, दिल्ली सल्तनत के सुलतान के रूप में।
जलालुद्दीन खिलजी दिल्ली का सुलतान के रूप में।

 

तुर्क अभिजात वर्ग का विरोध 

 

खिलजियों के सत्ता में आने से तुर्क अभिजात वर्ग नाराज हो गया। बरनी के अनुसार, दिल्ली के लोग, जो अस्सी साल से तुर्क शासकों के अधीन थे, खिलजियों को सिंहासन पर देखकर हैरान रह गए। हालांकि, जलालुद्दीन ने तुर्क अभिजात वर्ग को पूरी तरह नजरअंदाज नहीं किया। उन्होंने बलबन के भतीजे मलिक छज्जू को कारा का गवर्नर बनाया, जो एक समृद्ध और महत्वपूर्ण क्षेत्र था।

 

जलालुद्दीन खिलजी: उदारता और मानवतावाद 

 

जलालुद्दीन खिलजी (1290-96) ने अपने शासनकाल में उदार और मानवतावादी नीतियों को अपनाया। जलालुद्दीन खिलजी ने संकीर्ण एकाधिकारवाद की बजाय एक समावेशी दृष्टिकोण अपनाया। उनका मानना था कि शासन का मुख्य उद्देश्य प्रजा का कल्याण करना है। उन्होंने अपनी नीतियों में सभी समुदायों के सहयोग की आवश्यकता को स्वीकार किया। उनका मानना था कि राज्य का मुख्य उद्देश्य प्रजा का कल्याण होना चाहिए।

 

हिंदुओं के प्रति उदार नीति 

 

जलालुद्दीन ने हिंदुओं के प्रति सहिष्णुता दिखाई। उन्होंने हिंदुओं को मूर्ति पूजा और धार्मिक प्रथाओं का पालन करने की पूरी स्वतंत्रता दी। उनका मानना था कि जबरन धर्मांतरण या आतंक की नीति से सच्चा इस्लामिक राज्य नहीं बनाया जा सकता।

इसके अलावा, उन्होंने तुर्क अभिजात वर्ग को भी महत्व दिया। उदाहरण के लिए, बलबन के भतीजे मलिक छज्जू को कारा का गवर्नर बनाया गया। हालांकि, मलिक छज्जू ने विद्रोह किया, लेकिन जलालुद्दीन ने उसे कठोर सजा नहीं दी। यह उनकी उदारता को दर्शाता है।

 

जलालुद्दीन की सद्भावना नीति

 

जलालुद्दीन ने एक नए प्रकार के राज्य की अवधारणा प्रस्तुत की। यह राज्य सभी समुदायों के लोगों की सद्भावना और समर्थन पर आधारित था। उनका मानना था कि राज्य का मुख्य उद्देश्य प्रजा का कल्याण होना चाहिए। बरनी के अनुसार, जलालुद्दीन “चींटी को भी नुकसान नहीं पहुंचाने” की नीति में विश्वास रखते थे।

 

अलाउद्दीन खिलजी: कठोरता और प्रशासनिक सुधार 

 

जलालुद्दीन के बाद, अलाउद्दीन खिलजी (1296-1316) ने सत्ता संभाली। उन्होंने अपने चाचा की उदार नीतियों को छोड़कर कठोरता और भय को शासन का आधार बनाया। उनका मानना था कि राज्य की स्थिरता के लिए भय आवश्यक है।

 

अलाउद्दीन खिलजी का चित्र, दिल्ली सल्तनत के सुलतान के रूप में।
अलाउद्दीन खिलजी

 

अभिजात वर्ग पर नियंत्रण

 

अलाउद्दीन ने अभिजात वर्ग पर कड़ा नियंत्रण रखा। उन्होंने बलबन के द्वारा स्थापित की जासूसी प्रणाली को फिर से शुरू किया। अभिजात वर्ग को एक-दूसरे के साथ संबंध बनाने या पार्टियां आयोजित करने से मना किया गया। शादी के गठजोड़ के लिए भी सुल्तान की अनुमति लेनी पड़ती थी।

इसके अलावा, उन्होंने दान की गई भूमि को जब्त कर लिया और शराब पीने पर प्रतिबंध लगा दिया। इन नीतियों से अभिजात वर्ग में भय का माहौल बना।

 

गैर-तुर्कों को बढ़ावा

 

अलाउद्दीन ने गैर-तुर्कों को भी महत्व दिया। उन्होंने जफर खान, नुसरत खान और मलिक काफूर जैसे गैर-तुर्कों को उच्च पदों पर नियुक्त किया। इससे दिल्ली सल्तनत की सेना और प्रशासन में विविधता आई।

 

खिलजी क्रांति: प्रशासनिक और सामाजिक बदलाव 

 

खिलजी शासन के दौरान, दिल्ली सल्तनत में एक क्रांति आई। इस क्रांति ने प्रशासनिक और सामाजिक ढांचे को पूरी तरह से बदल दिया।

 

भूमि राजस्व और व्यापार नियंत्रण 

 

अलाउद्दीन ने भूमि राजस्व और व्यापार को नियंत्रित किया। उन्होंने भूमि की पैमाइश की और किसानों से लिया जाने वाला कर बढ़ाया। इससे राज्य की आय में वृद्धि हुई।

इसके अलावा, उन्होंने व्यापार को भी नियंत्रित किया। इससे प्रशासनिक व्यवस्था मजबूत हुई और राज्य की आर्थिक स्थिति सुधरी।

अलाउद्दीन ने राज्य के प्रशासन को केंद्रीकृत किया। उन्होंने यह सुनिश्चित किया कि कोई भी विद्रोह न हो और प्रशासन में कोई असहमति न आए। इसके लिए उन्होंने अपने अधिकारियों पर कड़ी निगरानी रखी और उन पर विशेष नियंत्रण स्थापित किया।

 

अलाउद्दीन की धर्मनिरपेक्ष नीति 

 

अलाउद्दीन ने यह माना कि भारत में एक वास्तविक इस्लामी राज्य स्थापित करना मुश्किल है। उन्होंने शरिया के नियमों से परे, राज्य के कल्याण के लिए जो आवश्यक था, वह किया। यह धर्मनिरपेक्ष नीति दिल्ली सल्तनत के लिए नई थी।

 

निष्कर्ष: खिलजी शासन का प्रभाव 

 

खिलजी शासन ने दिल्ली सल्तनत को एक नई दिशा दी। जलालुद्दीन ने उदारता और मानवतावाद को बढ़ावा दिया, जबकि अलाउद्दीन ने कठोरता और प्रशासनिक सुधारों पर ध्यान केंद्रित किया। 

इस दौरान, “खिलजी क्रांति” ने न केवल प्रशासनिक ढांचे को बदला, बल्कि शासक वर्ग का सामाजिक आधार विस्तारित हुआ, गैर-तुर्कों को महत्व मिला, और प्रशासनिक ढांचे में बड़े बदलाव हुए। खिलजी क्रांति ने न केवल दिल्ली सल्तनत, बल्कि पूरे भारतीय उपमहाद्वीप को प्रभावित किया। 

इस प्रकार, खिलजी शासन दिल्ली सल्तनत के इतिहास में एक महत्वपूर्ण अध्याय बना। यह काल न केवल राजनीतिक, बल्कि सामाजिक और आर्थिक परिवर्तनों का भी साक्षी रहा। 

 

 

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