ancient India

सिन्धु घाटी सभ्यता के पुरोहित राजा की मूर्ति, जो प्राचीन भारत की धार्मिक और शाही संस्कृति का प्रतीक है। यह मूर्ति मोहनजोदड़ो से मिली थी और इसे उस समय की महान कला और समाज के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान करती है।
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सिंधु घाटी सभ्यता: उत्पत्ति, विस्तार और ऐतिहासिक महत्व

सिंधु घाटी की सभ्यता: एक प्राचीन समृद्धि का अवलोकन    बीसवीं सदी के प्रारंभ में, जब दुनिया को अपनी सभ्यताओं के प्राचीनतम स्वरूप के बारे में जानकारी कम थी, तब तक यह विश्वास था कि वैदिक सभ्यता भारत की सबसे पुरानी थी। परंतु, 1920 के दशक में, जब पुरातत्त्वशास्त्रियों ने सिंधु घाटी में खुदाई शुरू […]

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भारत का मध्य पाषाणकाल और नवपाषाणकाल: इतिहास, जीवनशैली और पुरातात्विक खोजें

  भारत में मध्य पाषाणकाल (Mesolithic Age) (लगभग 12,000 BC से 5,000 BC) प्राचीन मानव इतिहास का एक महत्वपूर्ण समय था, जब इंसानों ने छोटे-छोटे पत्थर के औजारों का इस्तेमाल करना शुरू किया। यह काल पुरापाषाणकाल (Paleolithic) और नवपाषाणकाल (Neolithic) के बीच का समय है। इस समय के लोग मुख्य रूप से शिकार पर निर्भर

आश्यूलियन हैंडएक्स के चार दिशा से ली गई तस्वीरें।
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पाषाणकालीन सभ्यता और दक्षिण भारत की हैंडएक्स परंपरा: इतिहास और अध्ययन

प्रागैतिहासिक काल   इतिहास का अध्ययन मुख्य रूप से तीन भागों में बांटा गया है: प्रागैतिहास, आद्य-इतिहास और इतिहास।  प्रागैतिहास उस समय को कहते हैं, जिसमें लिखित साक्ष्य नहीं मिलते। आद्य-इतिहास वह समय होता है, जिसमें लिपि के संकेत मिलते हैं, लेकिन वे अपठ्य या अस्पष्ट होते हैं। जब लिखित साक्ष्य मिलने लगते हैं, तब

Bustling ancient Indian marketplace along the Ganges River during the Buddhist era, showing traders, ox-drawn carts, boats, and traditional architecture.
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बुद्धकालीन भारत में नगरीकरण और कृषि: व्यापार और आर्थिक संरचना का विकास

बुद्धकालीन आर्थिक दशा और द्वितीय नगरीकरण   बुद्धकालीन युग में गंगा घाटी के आर्थिक जीवन का एक प्रमुख लक्षण नगरीकरण था। इस नगरीकरण में विशाल भवनों और घनी आबादी वाली बस्तियों का विकास हुआ था, जैसा कि गार्डन चाइल्ड ने वर्णित किया। उनके अनुसार, एक नगर में केवल खाद्य उत्पादन से हटकर विभिन्न वर्ग के

प्राचीन भारत में वर्णाश्रम व्यवस्था
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प्राचीन भारत में वर्णाश्रम व्यवस्था: समाज की संरचना और विकास

वर्णाश्रम व्यवस्था का परिचय   हिन्दू समाज में वर्णाश्रम व्यवस्था का महत्वपूर्ण स्थान है, जिसमें समाज को दो मुख्य आधारों – वर्ण और आश्रम – में विभाजित किया गया था। यह व्यवस्था मनुष्य के स्वभाव और उसके प्रशिक्षण पर आधारित थी, जिसका उद्देश्य समाज में सामंजस्य बनाए रखना और सभी को उनके उत्तरदायित्व का एहसास

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