Author name: Vivek Singh

I am Vivek Singh, a mechanical engineer with a profound passion for Indian history. Although my professional background is in engineering, I have always been deeply fascinated by the rich and diverse history of India. Over the years, I have collected numerous books and dedicated myself to studying the cultural, political, economical and social transformations that have shaped the subcontinent. Through my blog, I aim to share the insights and stories I've uncovered, offering a unique perspective that blends my analytical mindset as an engineer with my love for history.

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ईस्ट इंडिया कंपनी का भारत में प्लासी के युद्ध तक का सफर: ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और दीर्घकालिक प्रभाव

  ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ईस्ट इंडिया कंपनी (East India Company) का नाम इतिहास के पन्नों में ब्रिटिश साम्राज्य की शुरुआत के साथ गहराई से जुड़ा हुआ है। यह कंपनी न केवल एक व्यापारिक संगठन थी, बल्कि समय के साथ एक शक्तिशाली राजनीतिक और सैन्य शक्ति के रूप में उभरकर आई। 1600 में स्थापित इस […]

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कलिंग के शासक खारवेल: सैन्य विजय, प्रशासनिक सुधार और सांस्कृतिक धरोहर

हाथीगुम्फा गुफा, उदयगिरि और खंडगिरि गुफाओं में से एक   खारवेल प्राचीन भारत के एक महान शासक थे, जो लगभग 1st सदी ईसा पूर्व में कलिंग (आधुनिक ओडिशा) के सम्राट थे। खारवेल महापद्म नंद वंश के बाद कलिंग की सत्ता में आए और उनके शासनकाल को उनके सैन्य अभियानों, धार्मिक संरक्षण, और वास्तुकला के लिए

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1991 का आर्थिक संकट और 1991 के आर्थिक सुधार: भारत की अर्थव्यवस्था का टर्निंग पॉइंट

1991 का आर्थिक संकट: भारत की अर्थव्यवस्था का निर्णायक मोड़ भारत के आर्थिक इतिहास में 1991 का आर्थिक संकट एक ऐसा मोड़ था जिसने न केवल देश की वित्तीय स्थिरता को हिला दिया बल्कि भविष्य की दिशा भी तय कर दी। विदेशी मुद्रा भंडार लगभग ख़त्म हो चुके थे, महंगाई बेकाबू थी और सरकार के

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भारतीय साम्यवाद का इतिहास: संघर्ष, विभाजन और वर्तमान चुनौतियाँ

“1920: एम. एन. रॉय (केंद्र में, काले टाई में) व्लादिमीर लेनिन (बाएं) और मैक्सिम गोर्की (लेनिन के पीछे) के साथ। रॉय के मार्गदर्शन में अक्टूबर 1920 में सोवियत ताशकंद में एक प्रवासी कम्युनिस्ट पार्टी का उदय हुआ।” भारत में साम्यवाद का इतिहास  साम्यवाद की उत्पत्ति 19वीं सदी में हुई, जब औद्योगिक क्रांति के दौरान समाज

पानीपत का तीसरा युद्ध की पेंटिंग जिसमें मराठा और अहमद शाह अब्दाली की सेनाएं लड़ रही हैं।
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पानीपत का तीसरा युद्ध 1761: कारण, परिणाम और ऐतिहासिक प्रभाव

पानीपत का तीसरा युद्ध: भारतीय इतिहास का निर्णायक मोड़   पानीपत का तीसरा युद्ध (14 जनवरी 1761) भारतीय इतिहास की सबसे निर्णायक घटनाओं में से एक था। यह संघर्ष न केवल मराठा साम्राज्य और अहमद शाह अब्दाली के नेतृत्व वाले अफगान आक्रमणकारियों के बीच की लड़ाई थी, बल्कि यह उस समय की राजनीतिक, सामाजिक, और

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