Author name: vivek singh

I am Vivek Singh, a mechanical engineer with a profound passion for Indian history. Although my professional background is in engineering, I have always been deeply fascinated by the rich and diverse history of India. Over the years, I have collected numerous books and dedicated myself to studying the cultural, political, and social transformations that have shaped the subcontinent. Through my blog, I aim to share the insights and stories I've uncovered, offering a unique perspective that blends my analytical mindset as an engineer with my love for history.

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पूना पैक्ट: डॉ. अंबेडकर और महात्मा गांधी के बीच सांप्रदायिक समझौता

डॉ. अंबेडकर (बाएं से तीसरे) अन्य के साथ येरवडा जेल के बाहर पूना पैक्ट हस्ताक्षर करने के बाद पूना पैक्ट  डॉ. भीमराव अंबेडकर और महात्मा गांधी के बीच 1932 में हुआ “पूना पैक्ट” भारतीय इतिहास का एक महत्वपूर्ण समझौता था। यह समझौता दलित समुदाय के अधिकारों, उनके राजनीतिक प्रतिनिधित्व, और भारतीय समाज में उनकी स्थिति […]

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देसी रजवाड़ों के चोचले

सिर पर पगड़ी राजा हो या रंक सिर पर पगड़ी हर किसी के लिए प्रतिष्ठा का सूचक होती है। उस दिन सिर पर पगड़ी बंधे एक नौकर, अपने हाथों में चांदी का ट्रे लिए हुए, कमरे में दाखिल होता है। यह ट्रे साल 1921 में ब्रिटिश सिंहासन के उत्तराधिकारी प्रिंस ऑफ वेल्स एडवर्ड के भारत

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कहानी हैदराबाद के विलय की

1947 में हैदराबाद रियासत          82,000 वर्ग मील में फैली और 1 करोड़ 60 लाख की आबादी वाली रियासत, जो यूरोप के कई देशों से बड़ी थी। जिसका शुमार भारत के प्रमुख रियासतों में किया जाता था। जी हां हम बात करें हैदराबाद रियासत की। भारत में रियासतों के विलय के तीन

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कहानी कश्मीर के विलय की

  कश्मीर का नाम लेते ही ज़ेहन में डल झील की तस्वीर उभरती है, कहवा की महक आती है, वाजवान का जायका आता है। और बैकग्राउंड में बेमिसाल मूवी का आनंद बक्शी साहब का लिखा गीत कितनी खूबसूरत यह तस्वीर है, मौसम बेमिसाल बेनजीर है, यह कश्मीर है यह कश्मीर है। आज हम इसी स्वर्ग

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जूनागढ़ का भारत-पाकिस्तान विवाद: एक ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य

जुनागढ़ 15 अगस्त, 1947 को भारत की स्वतंत्रता और जूनागढ़ की असमंजस स्थिति   जब भारत 15 अगस्त, 1947 को आजादी का जश्न मना रहा था, उस वक्त जूनागढ़ की जनता असमंजस में थी। यह असमंजस इसलिए था क्योंकि उसी दिन जूनागढ़ के नवाब महावत खान ने पाकिस्तान में शामिल होने का निर्णय लिया था।

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