अशोक का धम्म: ऐतिहासिक दृष्टिकोण और विभिन्न इतिहासकारों की विवेचना

सम्राट अशोक के सम्राज्य का मानचित्र
सम्राट अशोक का सम्राज्य 

मौर्य सम्राट अशोक भारतीय इतिहास के सबसे प्रतिष्ठित और महान शासकों में से एक थे। उनके जीवन का सबसे महत्वपूर्ण मोड़ तब आया जब कलिंग युद्ध की भीषणता ने उनके हृदय को बदल दिया। इस युद्ध के बाद उन्होंने बौद्ध धर्म अपनाया और ‘धम्म’ के सिद्धांतों को अपने राज्य में व्यापक रूप से प्रसारित किया। अशोक का धम्म एक धार्मिक, नैतिक और सामाजिक आंदोलन था, जो नैतिकता, अहिंसा, सहिष्णुता और सभी धर्मों के प्रति सम्मान को बढ़ावा देता था। इस लेख में, हम अशोक के धम्म के विभिन्न पहलुओं का अध्ययन करेंगे और इसे लेकर विभिन्न इतिहासकारों की व्याख्याओं पर विचार करेंगे।

अशोक का धम्म: एक परिचय

मौर्य सम्राट अशोक के शासनकाल का एक महत्वपूर्ण पहलू था। अशोक ने कलिंग युद्ध के बाद बौद्ध धर्म को अपनाया और अपने शासन के दौरान धम्म को एक व्यापक सामाजिक और नैतिक सुधार के रूप में प्रस्तुत किया।
अशोक का धम्म बौद्ध धर्म से गहराई से प्रभावित था, लेकिन यह केवल एक धार्मिक विचारधारा नहीं थी। इसका उद्देश्य समाज में नैतिकता और करुणा को स्थापित करना था। अशोक ने अपने धम्म में सामाजिक समानता, सहिष्णुता, सत्य, अहिंसा, और धार्मिक सहनशीलता पर बल दिया। यह एक प्रकार का सार्वभौमिक नैतिक आचरण था, जिसे सभी धर्मों और जातियों के लोगों के लिए लागू किया गया। अशोक के धम्म के प्रमुख बिंदु निम्नलिखित हैं:

1. अहिंसा और युद्ध का त्याग : 

अशोक ने अपने शासनकाल में अहिंसा को सबसे महत्वपूर्ण सिद्धांत माना। कलिंग युद्ध की भीषणता ने उन्हें अहिंसा की ओर प्रवृत्त किया। युद्ध के बाद उन्होंने युद्धों और हिंसा से पूरी तरह से दूरी बना ली और अपने शिलालेखों में अहिंसा के महत्व को स्पष्ट किया। अशोक ने अपने शासन में युद्धों की बजाय संवाद और संधियों को प्राथमिकता दी। उनके शिलालेखों में यह उल्लेख है कि “हिंसा से हिंसा बढ़ती है, लेकिन अहिंसा से शांति प्राप्त होती है।”

2. धार्मिक सहिष्णुता : 

अशोक ने सभी धर्मों के प्रति सम्मान और सहिष्णुता को बढ़ावा दिया। उन्होंने अपने शासनकाल में किसी भी धार्मिक समुदाय के प्रति भेदभाव को समाप्त करने का प्रयास किया। अशोक ने शिलालेखों में लिखा कि “धर्म का पालन करना सभी के लिए लाभकारी है, क्योंकि यह सभी धर्मों के प्रति सम्मान और समझ को बढ़ावा देता है।” उन्होंने विभिन्न धर्मों के अनुयायियों के बीच सामंजस्य स्थापित करने के लिए अनेक धार्मिक यात्राओं और बैठकों का आयोजन किया।

3. सामाजिक और नैतिक सुधार : 

अशोक ने समाज में नैतिकता और करुणा को बढ़ावा देने के लिए कई सामाजिक सुधार किए। उन्होंने चिकित्सा सुविधाओं, जल प्रबंधन, और सार्वजनिक सुविधाओं के निर्माण पर जोर दिया। अशोक ने वृक्षारोपण और पानी के स्रोतों के संरक्षण के लिए कई योजनाओं की शुरुआत की। उनके शिलालेखों में यह उल्लेखित है कि “जो पेड़ लगाता है, वह न केवल वर्तमान पीढ़ी के लिए, बल्कि भविष्य की पीढ़ियों के लिए भी लाभकारी होता है।”

4. धम्म महामात्रों की नियुक्ति : 

अशोक ने धम्म के प्रचार और प्रसार के लिए ‘धम्म महामात्र’ नामक अधिकारियों की नियुक्ति की। ये अधिकारी धम्म के सिद्धांतों को जनता तक पहुंचाने और समाज में नैतिकता को बढ़ावा देने का कार्य करते थे। उन्होंने इन महामात्रों को यह निर्देश दिया कि वे विभिन्न स्थानों पर जाकर लोगों को धम्म की शिक्षाएं दें और समाज में शांति और सुसंगठितता का माहौल बनाए रखें।

5. धम्म की प्रचार सामग्री : 

अशोक ने अपने धम्म का प्रचार करने के लिए विभिन्न शिलालेख और स्तंभ बनवाए। ये शिलालेख भारतीय उपमहाद्वीप के विभिन्न हिस्सों में पाए जाते हैं और इनमें धम्म के सिद्धांतों के बारे में लिखा गया है। ये शिलालेख न केवल अशोक के धम्म को प्रसारित करने का माध्यम थे, बल्कि उन्होंने समाज के विभिन्न वर्गों को नैतिकता और सहिष्णुता के संदेश भी दिए।

6. अशोक का धर्म सम्मेलनों का आयोजन : 

अशोक ने अपने शासनकाल में कई धार्मिक सम्मेलनों का आयोजन किया, जिनमें बौद्ध धर्म के अनुयायियों, उपदेशकों और धार्मिक विद्वानों को आमंत्रित किया गया। इन सम्मेलनों का उद्देश्य धार्मिक विचारों के आदान-प्रदान और विभिन्न धर्मों के बीच समझ को बढ़ाना था। एक महत्वपूर्ण सम्मेलन जो उन्होंने आयोजित किया, वह तीसरे बौद्ध संगीति का था, जिसमें बौद्ध धर्म के सिद्धांतों पर चर्चा की गई।

7. शिलालेख और स्तंभ : 

अशोक ने अपने धम्म के प्रचार के लिए कई शिलालेख और स्तंभ स्थापित किए, जिनमें उनके धम्म के सिद्धांतों और समाज के लिए उनके सुधारों की जानकारी दी गई। ये शिलालेख और स्तंभ आज भी ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व के स्रोत माने जाते हैं। प्रमुख शिलालेखों में से एक रॉक एडीक्ट्स हैं, जो पाटलिपुत्र, लुम्बिनी, और अन्य स्थानों पर पाए जाते हैं।

8. धम्म की अंतर्राष्ट्रीय प्रभाव : 

अशोक के धम्म का प्रभाव भारतीय उपमहाद्वीप से बाहर भी फैला। उन्होंने अपने धम्म के प्रचार के लिए बौद्ध भिक्षुओं को विभिन्न देशों में भेजा, जिनमें श्रीलंका, थाईलैंड, और म्यांमार शामिल हैं। इन देशों में अशोक के धम्म का प्रभाव आज भी महसूस किया जाता है।
अशोक का धम्म भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण अध्याय है, जिसने समाज में नैतिकता, अहिंसा, और सहिष्णुता के सिद्धांतों को स्थापित किया। उनके धम्म ने न केवल भारतीय समाज को प्रभावित किया, बल्कि इसके सिद्धांत पूरे एशिया में फैल गए। 

अशोक के अभिलेख: धम्म के सिद्धांत और उनका विवरण

अशोक के धम्म के प्रमुख अभिलेखों में उनके विभिन्न शिलालेखों में उल्लेखित सिद्धांत और नीतियों को समझना आवश्यक है। यहाँ प्रमुख अभिलेखों में दिए गए मुख्य बिंदुओं की जानकारी दी गई है:

A. रॉक एडिक्ट्स (Rock Edicts)

रॉक एडिक्ट्स अशोक के धम्म के प्रमुख स्रोत हैं। ये अभिलेख विभिन्न स्थानों पर पत्थरों पर खुदे हुए हैं, और इनमें अशोक के शासनकाल की नीतियों और सिद्धांतों का वर्णन किया गया है।

– रॉक एडिक्ट I (अशोक की पहली शिला पर) : 

इस एडिक्ट में अशोक के शाही आचरण के बारे में जानकारी दी गई है। इसमें लिखा गया है कि अशोक ने युद्धों के दौरान हिंसा और रक्तपात को समाप्त करने की प्रतिज्ञा की थी और समाज में अहिंसा को बढ़ावा देने की कोशिश की।

– रॉक एडिक्ट II (अशोक की दूसरी शिला पर) : 

इस एडिक्ट में अशोक के धम्म के सिद्धांतों को स्पष्ट किया गया है। इसमें धर्म की शिक्षाओं का प्रचार करने और धार्मिक सहिष्णुता को बढ़ावा देने पर जोर दिया गया है। इसके अलावा, इसमें कहा गया है कि अशोक ने अपनी शाही जिम्मेदारियों को समाज के कल्याण के लिए समर्पित किया।

– रॉक एडिक्ट III (अशोक की तीसरी शिला पर) : 

इसमें अशोक के द्वारा धर्म के प्रचार के लिए किए गए प्रयासों और धम्म महामात्रों की नियुक्ति की जानकारी दी गई है। इसके अलावा, इसमें अशोक की सामाजिक और नैतिक नीतियों का भी उल्लेख है, जैसे कि दया और करुणा के सिद्धांतों को बढ़ावा देना।

– रॉक एडिक्ट IV (अशोक की चौथी शिला पर) : 

इस एडिक्ट में अशोक ने धार्मिक सहिष्णुता और सभी धर्मों के प्रति सम्मान की बात की है। उन्होंने लिखा है कि धर्म का पालन सभी के लिए लाभकारी है और सभी धर्मों के अनुयायियों के बीच समझ और सहिष्णुता को बढ़ावा देना चाहिए।

– रॉक एडिक्ट V (अशोक की पाँचवीं शिला पर) : 

इसमें अशोक ने समाज में न्याय, दया, और करुणा की भावना को बढ़ावा देने के लिए किए गए कार्यों की जानकारी दी है। इस एडिक्ट में सामाजिक सुधारों और सार्वजनिक कल्याण की योजनाओं का वर्णन है।

– रॉक एडिक्ट VI (अशोक की छठी शिला पर) : 

इसमें अशोक ने अपने धम्म के प्रचार और प्रसार के लिए बौद्ध भिक्षुओं को विभिन्न स्थानों पर भेजने की बात की है। इसके अलावा, इसमें उन अभियानों और योजनाओं का उल्लेख है जो समाज में शांति और स्थिरता को बढ़ावा देने के लिए बनाई गई थीं।

B. पिलर एडिक्ट्स (Pillar Edicts)

पिलर एडिक्ट्स भी अशोक के धम्म के प्रमुख अभिलेख हैं, जो विभिन्न स्तंभों पर खुदे हुए हैं। ये एडिक्ट्स समाज के नैतिक और धार्मिक जीवन को बेहतर बनाने के लिए अशोक की नीतियों का वर्णन करते हैं।

– पिलर एडिक्ट I : 

इस एडिक्ट में अशोक ने अपने धम्म के सिद्धांतों के प्रचार के लिए विभिन्न स्तंभों का निर्माण किया। इसमें सामाजिक न्याय, धार्मिक सहिष्णुता और अहिंसा को बढ़ावा देने के लिए किए गए प्रयासों का वर्णन है।

– पिलर एडिक्ट II : 

इसमें अशोक ने सामाजिक कल्याण की योजनाओं का उल्लेख किया है, जैसे कि सड़क निर्माण, जल प्रबंधन, और चिकित्सा सुविधाओं का विस्तार। इसके अलावा, इसमें धार्मिक और सामाजिक सुधारों के प्रति अशोक की प्रतिबद्धता की बात की गई है।

– पिलर एडिक्ट III : 

इस एडिक्ट में अशोक ने अपने धम्म के प्रचार के लिए विभिन्न धार्मिक यात्राओं का आयोजन किया। उन्होंने धार्मिक सम्मेलन आयोजित किए और विभिन्न धर्मों के अनुयायियों के बीच समझ और सहयोग को बढ़ावा देने का प्रयास किया।

– पिलर एडिक्ट IV : 

इसमें अशोक ने समाज में शांति और एकता को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न सुधारों का वर्णन किया। इसके अलावा, इसमें अशोक की व्यक्तिगत नीतियों और उनके धम्म के प्रति उनकी प्रतिबद्धता का उल्लेख है।
अशोक के अभिलेख उनके शासनकाल की नीतियों और उनके धम्म के सिद्धांतों को स्पष्ट रूप से दर्शाते हैं। इन अभिलेखों में समाज में अहिंसा, धार्मिक सहिष्णुता, और नैतिक सुधारों को बढ़ावा देने के लिए किए गए प्रयासों की जानकारी दी गई है। अशोक के शिलालेख और स्तंभ आज भी उनके शासनकाल की ऐतिहासिक और धार्मिक महत्वता के प्रमाण के रूप में खड़े हैं।

अशोक का धम्म और विभिन्न इतिहासकारों की विवेचना

अशोक के धम्म पर कई इतिहासकारों ने अपने-अपने दृष्टिकोण से विचार किया है। ये विचार उनके धम्म के धार्मिक, राजनीतिक और सामाजिक प्रभावों के आधार पर विभाजित हैं। आइए जानते हैं कि विभिन्न इतिहासकार इस पर क्या कहते हैं:
1. राधाकुमुद मुखर्जी : इन्होंने ने अशोक के धम्म को एक नैतिक और सामाजिक सुधार का प्रयास माना। उनके अनुसार, अशोक ने कलिंग युद्ध के बाद सामाजिक सुधार के लिए धम्म को अपनाया, जिसका उद्देश्य धार्मिक सहिष्णुता, करुणा, अहिंसा और नैतिकता के सिद्धांतों को समाज में स्थापित करना था। मुखर्जी ने इसे एक ऐसा नैतिक आंदोलन माना जो केवल बौद्ध धर्म का प्रचार नहीं करता, बल्कि सभी धर्मों के अनुयायियों के लिए नैतिकता का पाठ प्रस्तुत करता है।
2. रोमिला थापर : प्रसिद्ध इतिहासकार रोमिला थापर का मानना है कि अशोक का धम्म धार्मिक और राजनीतिक विचारों का संगम था। थापर के अनुसार, अशोक ने अपने धम्म के माध्यम से न केवल बौद्ध धर्म का प्रसार किया, बल्कि इसे एक व्यापक नैतिक आचरण के रूप में पेश किया। अशोक का उद्देश्य अपने विशाल साम्राज्य को नैतिक और धार्मिक आधार पर एकजुट करना था। उन्होंने धम्म को राजनीति का एक हिस्सा बनाया, जिससे सामाजिक और धार्मिक सहिष्णुता को बढ़ावा मिल सके। थापर ने इस धम्म को एक ऐसा साधन माना जो अशोक को उनके साम्राज्य की स्थिरता और सामाजिक संतुलन बनाए रखने में सहायक सिद्ध हुआ।
3. डी. आर. भंडारकर : भंडारकर का मानना है कि अशोक का धम्म मुख्य रूप से बौद्ध धर्म से प्रभावित था, लेकिन इसका उद्देश्य केवल धार्मिक नहीं था। यह एक नैतिक आचरण का एक स्वरूप था, जिसे अशोक ने अपने शासन के अंतर्गत विभिन्न धार्मिक समुदायों में समान रूप से प्रचारित किया। भंडारकर के अनुसार, अशोक ने धम्म के माध्यम से समाज में शांति, सहनशीलता और अहिंसा की भावना को बढ़ावा दिया और एक नैतिक समाज की स्थापना की कोशिश की।
4. एच. जी. वैलबेल : वैलबेल ने अशोक के धम्म को राजनीति का एक उपकरण माना। उनके अनुसार, अशोक ने धम्म का उपयोग अपने विशाल साम्राज्य को एकजुट करने और उसे नैतिकता के आधार पर स्थिर रखने के लिए किया। वैलबेल का मानना था कि अशोक का धम्म केवल धार्मिक नहीं था, बल्कि इसका एक स्पष्ट राजनीतिक उद्देश्य भी था, जिससे साम्राज्य की एकता और शांति बनाए रखी जा सके।
5. वी. ए. स्मिथ : वी. ए. स्मिथ का मानना था कि अशोक का धम्म एक धार्मिक सुधार था, जिसमें अशोक ने बौद्ध धर्म को अपनाया और अपने धम्म के रूप में उसे प्रचारित किया। स्मिथ के अनुसार, अशोक का धम्म बौद्ध धर्म के सिद्धांतों का एक राजनीतिक विस्तार था, जिसे अशोक ने अपने शासनकाल के दौरान पूरे साम्राज्य में लागू किया। स्मिथ ने इसे अशोक के धार्मिक अभियान के रूप में देखा, जो उनके व्यक्तिगत नैतिक बदलाव का परिणाम था।
6. ए. एल. बाशम : बाशम ने अशोक के धम्म को एक नैतिक और सामाजिक शिक्षा के रूप में देखा। उनके अनुसार, अशोक का धम्म केवल बौद्ध धर्म के प्रचार तक सीमित नहीं था, बल्कि यह एक व्यापक नैतिक आचरण था जो सभी धर्मों के लिए समान रूप से महत्वपूर्ण था। बाशम ने इस पर बल दिया कि अशोक का धम्म एक सामाजिक सुधार आंदोलन था, जिसका उद्देश्य नैतिकता, अहिंसा और करुणा को समाज में फैलाना था।
7. आर. सी. मजूमदार : आर. सी. मजूमदार का मत था कि अशोक का धम्म बौद्ध धर्म से प्रभावित था, लेकिन इसे एक व्यापक नैतिक और सामाजिक सुधार के रूप में प्रस्तुत किया गया। उनके अनुसार, अशोक ने धम्म के माध्यम से एक नैतिक समाज का निर्माण करने की कोशिश की, जहां सभी लोग एक-दूसरे के प्रति सहिष्णुता और करुणा का व्यवहार करें। मजूमदार ने इसे एक सामाजिक सुधार का आंदोलन माना, जो अशोक के साम्राज्य में नैतिकता और शांति को बनाए रखने में सहायक था।
8. जवाहरलाल नेहरू : नेहरू ने अशोक के धम्म को भारतीय इतिहास में सहिष्णुता और नैतिकता के प्रतीक के रूप में देखा। उनके अनुसार, अशोक का धम्म केवल धार्मिक सुधार नहीं था, बल्कि यह एक नैतिक आचरण था जो भारतीय समाज को सहिष्णुता और अहिंसा के सिद्धांतों पर आधारित करने का प्रयास करता था। नेहरू ने इसे भारतीय सांस्कृतिक धरोहर का एक महत्वपूर्ण हिस्सा माना, जिसने सहिष्णुता, करुणा, और नैतिकता के उच्चतम मूल्यों का प्रचार किया।

अशोक के धम्म का प्रभाव

अशोक का धम्म न केवल भारत में बल्कि पूरे एशिया में नैतिकता और अहिंसा के सिद्धांतों के प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। अशोक के धम्म ने बौद्ध धर्म के प्रसार में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया, खासकर श्रीलंका, म्यांमार, थाईलैंड, और अन्य एशियाई देशों में। अशोक ने अपने धम्म के प्रचार के लिए शिलालेखों और स्तंभों का निर्माण कराया, जिनमें उनके नैतिक सिद्धांतों का उल्लेख था। इन शिलालेखों और स्तंभों के माध्यम से अशोक का धम्म सदियों तक जीवित रहा और आज भी भारतीय इतिहास और संस्कृति में महत्वपूर्ण स्थान रखता है।
अशोक का धम्म एक व्यापक नैतिक, सामाजिक और धार्मिक विचारधारा थी, जिसका उद्देश्य समाज में शांति, सहिष्णुता और नैतिकता को स्थापित करना था। विभिन्न इतिहासकारों ने इसे अलग-अलग दृष्टिकोणों से देखा है, लेकिन सभी इस बात पर सहमत हैं कि अशोक का धम्म भारतीय इतिहास का एक महत्वपूर्ण अध्याय है। चाहे इसे एक धार्मिक सुधार माना जाए या एक सामाजिक आंदोलन, अशोक का धम्म मानवता के उच्चतम मूल्यों का प्रतीक है, जो आज भी प्रासंगिक है।

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